– संवाददाता से लेकर संचालक तक ‘पैक’, एक भी न्यूज़ ‘फ्री’ में नहीं छप रही
नागपुर :- कोई भी चुनाव हो या बड़ा त्यौहार उनके एक माह पहले से मीडिया एक्टिव हो जाती है,ज्यादा से ज्यादा विज्ञापन के नाम ‘मलाई’ अर्जित करने में.जहाँ तक चुनाव का सवाल हैं ,चुनाव का स्तर देख ‘दर’ तय हो जाता है.जहाँ तक मीडिया कर्मियों को खुश करने का मामला हो,मीडिया संगठन के पदाधिकारी मध्यस्थता करते हैं या कर रहे हैं,वह भी शत-प्रतिशत व्यवहार नगदी में हो रहा है,उक्त घटनाक्रम से चुनाव आयोग वाकिफ होने के बावजूद चुप्पी साधे सिर्फ खानापूर्ति कर रहे हैं.
याद रहे कि वर्षो पूर्व उक्त प्रथा शुरू हुई थी,क्यूंकि यह अवैध कमाई है इसलिए इसे किसी भी सरकारी व्यवहार में नहीं दिखा सकते,इससे प्रकाशित करने वाला और प्रकाशित करवाने वाले दोनों अड़चन में आ सकते है,इसलिए इस व्यवहार को नगदी में किया जाता रहा,जो आज भी कायम हैं.
इस व्यवसाय में जो भी मीडिया हो,उसके संचालक द्वारा सक्षम प्रतिनिधित्व तय किया जाता है,उसे उम्मीदवार के अनुसार ठहराए गए ‘दर पत्रिका और उसके अनुरूप सेवाएं’ की सूची दी जाती है,वह तय उम्मीदवार से सीधे या उसके खासमखास प्रतिनिधि से सीधा बात,व्यवहार कर ‘फ़ाइनल’ करता है,जिस उम्मीदवार ने जिस मीडिया को जितने का ‘पॅकेज’ दिया उसके अनुसार उसकी खबर अमूमन एक ही साइज में रोजाना या एक दिन आड़ प्रमुखता से तय पन्ने पर प्रकाशित की जाती हैं.क्यूंकि तय व्यवहार ‘एडवांस’ में होता है इसलिए समाचार प्रमुखता से प्रकशित होती हैं.
इसके अलावा मीडिया समूह खुद के द्वारा लेख,समीक्षा भी प्रकाशित करती है,जिसमें ‘पैकेज’ देने वाले उम्मीदवारों के पक्ष में ‘पॉजिटिव’ खबर होती हैं.
दूसरा क्रम जो उल्लेखनीय यह है कि मीडिया के दलाल, संगठनों के पदाधिकारी एक ‘रिंग’ बनाकर उम्मीदवारों को घेरते है,उम्मीदवारों को अपने अपने सोर्स के आधार पर बाँट लेते है और उनसे मीडिया के संपादक,शहर संपादक,ग्रामीण संपादक, चीफ रिपोर्टर,राजनैतिक समाचार संकलन करने वाले रिपोर्टर की अलग अलग सूची बनाकर उम्मीदवारों के इच्छानुसार सभी के लिए पॅकेज संकलन कर,कुछ हिस्सा सभी में से अपना अपना निकाल कर वितरित कर देते हैं.
इस श्रेणी में मीडिया संगठन के तीन दिग्गज सक्रिय है,जो दो अंग्रेजी और एक हिंदी समाचार पत्रों से सम्बन्ध रखते है.शेष पदाधिकारी चुप्पी साधे अपने हिस्से के मलाई खाने में मदमस्त रहते हैं.
इनमे से कुछ बिल्डर लॉबी के लिए सक्रिय है,जो विशालकाय ऊंची इमारत निर्माण,रि-डेवलपमेंट आदि के काम करवाकर अपना रोजी रोटी सेक रही हैं.
इस ओर चुनाव आयोग का रत्तीभर भी ध्यान नहीं,इस चुनावी माहौल में एक भी समाचार एक भी मीडिया फ्री में नहीं प्रकशित करता है,यह कड़वा सत्य है,क्यूंकि चुनाव आयोग महज दिखावा करती है ,वर्ना देश में इतनी बड़ी बड़ी जाँच एजेंसी है,उसका सदुपयोग करे तो मीडिया की पोल और उम्मीदवारों का अवैध खर्च का पर्दाफाश हो सकता हैं.