मंदिर में वस्त्रसंहिता पर झूठा प्रचार न करें; यह केवल महिलाओं के लिए नहीं, बल्कि सभी के लिए है!

– वकीलों के लिए अंग्रेज़ी शैली की काली ड्रेसकोड मान्य है, तो मंदिर में ड्रेसकोड पर आपत्ति क्यों? – ‘रणरागिणी’ का सवाल

मुंबई के प्रसिद्ध श्री सिद्धिविनायक मंदिर में वस्त्रसंहिता (ड्रेस कोड) लागू करने का अत्यंत सराहनीय निर्णय मंदिर प्रशासन ने लिया है। महाराष्ट्र के सभी मंदिरों की ओर से हम इस निर्णय का स्वागत करते हैं और इसे पूरा समर्थन देते हैं। यह वस्त्रसंहिता केवल महिलाओं के लिए नहीं, बल्कि सभी भक्तों के लिए लागू की गई है। इसलिए अधिवक्ता गुणरत्न सदावर्ते की बेटी झेन सदावर्ते द्वारा ‘महिलाओं पर अन्याय’ के रूप में महिला आयोग में की गई शिकायत झूठा प्रचार मात्र है। झेन सदावर्ते के माता-पिता स्वयं अधिवक्ता हैं, और उन्हें न्यायालय में काले वकीली ड्रेसकोड का पालन करना स्वीकार है, तो फिर मुंबई के श्री सिद्धिविनायक मंदिर में वस्त्रसंहिता पर ही आपत्ति क्यों? क्या सदावर्ते ने कभी न्यायालय में काले वकीली ड्रेसकोड को हटाने की मांग की है? यह सवाल हिंदू जनजागृति समिति की ‘रणरागिणी’ शाखा की प्रतिक्षा कोरगांवकर ने उठाया है।

न केवल मंदिरों में, बल्कि देशभर की कई मस्जिदों, चर्चाें, गुरुद्वारों और अन्य धार्मिक स्थलों में भी वस्त्रसंहिता लागू है। न्यायालय, पुलिस, अस्पताल, विद्यालय, महाराष्ट्र के सरकारी कार्यालयों में भी वस्त्रसंहिता वर्षों से लागू है। इसलिए केवल हिंदू मंदिरों में महिलाओं पर प्रतिबंध लगाया जा रहा है, यह तर्क गलत है। एयर होस्टेस को कम कपड़े पहनने के लिए बाध्य किया जाता है, तब किसी को आपत्ति नहीं होती और न ही कोई शिकायत करता है; लेकिन मंदिर में संस्कृति पालन के लिए बनाए गए नियमों पर आपत्ति करना निंदनीय है।

मंदिरों में दर्शन के लिए अधूरे या अशिष्ट वस्त्र पहनकर जाना ‘व्यक्तिगत स्वतंत्रता’ नहीं हो सकता। सार्वजनिक स्थानों और अपने घरों में कौन से कपड़े पहनने हैं, यह व्यक्ति की स्वतंत्रता हो सकती है, लेकिन मंदिर एक धार्मिक स्थल है। वहां भक्तिमय वातावरण और पवित्रता को ध्यान में रखकर आचरण किया जाना चाहिए। वहां व्यक्तिगत स्वतंत्रता से अधिक धार्मिक अनुशासन महत्वपूर्ण है। इसलिए यदि मंदिर प्रशासन दर्शन के लिए उत्तेजक और अनुचित वस्त्र पहनकर आने से मना करता है, तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है।

मस्जिदों और चर्चों में भी वस्त्रसंहिता लागू है; क्या सदावर्ते या अन्य आधुनिकतावादीओं ने कभी इसके विरोध में आवाज उठाई है? मद्रास उच्च न्यायालय ने भी ‘मंदिरों में प्रवेश के लिए सात्त्विक वेशभूषा अनिवार्य होनी चाहिए’ को स्वीकार किया और 1 जनवरी 2016 से राज्य में वस्त्रसंहिता लागू की।

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