अंधभक्ति एक सशक्त लोकतान्त्रिक राष्ट्र को कमजोर करती हैं – अनिल चौहान

भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जहाँ लोकतंत्र की बुनियादी संरचना नागरिकों के अधिकारों, कर्तव्यों और स्वतंत्रता पर आधारित है। लोकतंत्र का एक अहम हिस्सा यह है कि यहां लोग अपनी राय व्यक्त करने, आलोचना करने और स्वच्छंद रूप से अपने विचारों को प्रकट करने में सक्षम होते हैं। जब लोगों की भक्ति अपने नेताओं, हीरो, खिलाड़ियों या पूंजीपतियों के प्रति देशभक्ति से बड़ी हो जाती है, तो यह लोकतंत्र और समाज की स्वतंत्रता के लिए एक गंभीर चुनौती बन सकती है।

*अंधभक्ति और लोकतंत्र की सीमा*

भारत में अक्सर यह देखा जाता है कि लोग किसी विशेष नेता, अभिनेता या खेल हस्ती के प्रति अंधभक्ति में लीन हो जाते हैं। यह अंधभक्ति तब खतरनाक हो जाती है जब यह विचारधाराएं राष्ट्रीय हितों से ऊपर हो जाती हैं। ऐसे में, व्यक्ति अपनी स्वतंत्र सोच और आलोचनात्मक दृष्टिकोण को छोड़कर केवल एक व्यक्ति या समूह के प्रति अनन्य रूप से निष्ठा दिखाता है। यह स्थिति एक स्वस्थ लोकतांत्रिक समाज के लिए खतरनाक हो सकती है, क्योंकि इसका प्रभाव न्याय, समानता और स्वतंत्रता के मूल्यों पर पड़ता है।

दूसरी तरफ, जब लोग किसी व्यक्ति की अंधभक्ति में लीन हो जाते हैं, तो वे उस व्यक्ति की गलतियों और कमी को भी नज़रअंदाज कर देते हैं। इससे समाज में एक सांस्कृतिक और मानसिक गुलामी का वातावरण बनता है, जहाँ लोग अपने स्वतंत्र विचारों और आलोचनात्मक दृष्टिकोण को त्याग देते हैं। यह असल में लोकतांत्रिक आजादी की हत्या करता है, क्योंकि लोकतंत्र तभी फल-फूल सकता है जब लोग विचारों की स्वतंत्रता के साथ-साथ सही-गलत का भेद कर सकें और जिम्मेदारी के साथ अपने नेताओं और निर्णयों पर सवाल उठा सकें।

*देशभक्ति: का असली अर्थ क्या हैं?*

देशभक्ति केवल राष्ट्रीय ध्वज के सामने खड़ा होकर या भारत के नारे लगाने तक सीमित नहीं होनी चाहिए। असली देशभक्ति का अर्थ है अपने देश की प्रगति और कल्याण के लिए सोचने और काम करने की भावना रखना। इसका मतलब है अपने समाज की समस्याओं को पहचानना, उनके समाधान के लिए प्रयास करना और देश के संविधान के सिद्धांतों का पालन करते हुए एक बेहतर समाज की ओर अग्रसर होना।

देशभक्ति का असली रूप यह है कि हम अपने नेताओं, खेल हस्तियों या किसी भी सार्वजनिक व्यक्ति की अंधभक्ति के बजाय अपने राष्ट्र के मूल्यों और उद्देश्यों के प्रति निष्ठावान हों। इसका मतलब है कि हमें यह समझना होगा कि किसी व्यक्ति की असफलताएं और गलतियां राष्ट्र के लिए एक बडी सीख हो सकती हैं। हमें सिर्फ व्यक्तित्व के बजाय राष्ट्र के हितों को प्राथमिकता देनी चाहिए।

*देशभक्ति को जागरूक करने के उपाय*

1. शिक्षा और जागरूकता: सबसे पहली और सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता यह है कि समाज में लोकतांत्रिक और संवैधानिक मूल्यों के प्रति जागरूकता बढ़ाई जाए। लोगों को यह समझाना होगा कि असली देशभक्ति अपने अधिकारों और कर्तव्यों का पालन करने में है, न कि किसी व्यक्ति या समूह के प्रति अंधभक्ति में। स्कूलों, विश्वविद्यालयों, और अन्य सार्वजनिक मंचों पर इन विषयों पर चर्चा होनी चाहिए।

2. स्वतंत्र सोच और आलोचना: देशभक्ति को बढ़ावा देने के लिए यह जरूरी है कि हम स्वतंत्र विचार रखने के लिए प्रोत्साहित करें। लोग केवल एक नेता या खेल हस्ती के प्रभाव में ना आएं, बल्कि हर मुद्दे पर अपने विचार स्वतंत्र रूप से रखें। इसके लिए आलोचनात्मक सोच और स्वस्थ बहस की आवश्यकता है।

3. समाज में नायकत्व का पुनर्निर्माण: हमें समाज में नेताओं और हस्तियों का पुनर्निर्माण करना होगा। यह नायक केवल वही नहीं होते जो लोकप्रिय होते हैं, बल्कि वे लोग भी होते हैं जो समाज में सच्ची सेवा करते हैं, जो समाज की भलाई के लिए कार्य करते हैं। हमें ऐसे व्यक्तित्वों को महत्व देना चाहिए जो देश और समाज के लिए प्रेरणास्त्रोत बनें।

4. राष्ट्रीय एकता और विविधता की समझ: भारत एक विविधता से भरा देश है, और हमारी सबसे बड़ी ताकत हमारी विविधता में छिपी हुई है। हमें यह समझना चाहिए कि देशभक्ति का मतलब केवल एक विचारधारा का पालन करना नहीं है, बल्कि यह है कि हम अपनी विविधताओं को सम्मान दें और एकता के साथ राष्ट्र निर्माण में योगदान करें।

*निष्कर्ष*

भारत जैसे विशाल और विविधता से भरे लोकतांत्रिक देश में देशभक्ति का असली रूप तभी फल-फूल सकता है जब लोग केवल एक व्यक्ति या समूह की भक्ति में न डूबकर अपने राष्ट्र की प्रगति और समृद्धि के लिए काम करें। असली देशभक्ति का मतलब है अपने राष्ट्र की भलाई के लिए जिम्मेदारी से काम करना, लोकतांत्रिक मूल्यों का पालन करना और आलोचनात्मक सोच को बढ़ावा देना। अंधभक्ति राष्ट्र के लिए कभी लाभकारी नहीं हो सकती, और हमें यह समझना होगा कि केवल देशभक्ति ही एक राष्ट्र को सशक्त और स्वतंत्र बना सकती है।

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