– पुस्तक ‘कृत्रिम बुद्धिमत्तेचे मायाजाल युग : तंत्रज्ञानाची प्रबळ सत्ता’ का चयन
नागपुर :- पत्रकार और वैचारिक लेखक मिलिंद कीर्ति को मुंबई मराठी साहित्य संघ ने वर्ष २०२२-२३ के लिए साहित्य पुरस्कार देने की घोषणा की है. संघ की साहित्यिक पुरस्कार चयन समिति ने उनकी पुस्तक ‘कृत्रिम बुद्धिमत्तेचे मायाजाल युग (खंड पहला) : तंत्रज्ञानाची प्रबळ सत्ता’ (२०२२) को भि. रा. जोशी वैचारिक साहित्य पुरस्कार के लिए चुना गया है. पुरस्कार वितरण २७ अक्टूबर को मुंबई में होगा.
मुंबई मराठी साहित्य संघ ने इस साल के साहित्य पुरस्कारों की घोषणा कर दी है. उसमें संघ के साहित्यिक शाखा कार्यवाह अशोक बेंडखले, पद्माकर शिरवाडकर और प्रतिभा सराफ की चयन समिति ने लोकतांत्रिक तरीके से नीलिमा भावे पुरस्कृत भि. रा. जोशी वैचारिक साहित्य पुरस्कार के लिए ‘कृत्रिम बुद्धिमत्तेचे मायाजाल युग : तंत्रज्ञानाची प्रबळ सत्ता’ पुस्तक का चयन किया हैं.
इस पुरस्कार के रूप में १० हजार रुपये नकद और प्रमाण पत्र दिया जाएगा. यह पुरस्कार वितरण संस्था की वर्षगांठ पर २७ अक्टूबर को दुबई के अल आदिल ग्रुप के चेयरमैन और जाने-माने उद्योगपति धनंजय दातार द्वारा वितरित किया जाएगा. इसके अलावा मुंबई साहित्य संघ का चंद्रगिरि पुरस्कार अनुराधा कुलकर्णी, नाटक पुरस्कार प्रतिभा रत्नाकर मटकारी, चित्रकला पुरस्कार विजयराज बोधनकर और उद्यमिता पुरस्कार धनंजय दातार को देने की घोषणा की गई हैं.
पत्रकार मिलिंद कीर्ति ने ‘कृत्रिम बुद्धिमत्तेचे मायाजाल युग’ यह किताब दो खंडों में लिखी हैं. इस पुस्तक के पहले खंड ‘तंत्रज्ञानाची प्रबळ सत्ता’ में सूचना प्रौद्योगिकी, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, सूचना और संचार प्रौद्योगिकी, रोबोटिक्स, इंटरनेट ऑफ थिंग्स और कृत्रिम जन्म से लेकर कृत्रिम मृत्यु तक विकसित विभिन्न तकनीकी के मानव जीवन में फायदें और आर्थिक विकास के बारे में विस्तार से चर्चा की गई हैं. इस पुस्तक का दूसरा खंड, ‘सहमतीची हुकूमशाही : एरिस्टोक्रेसी टू टेक्नोक्रेसी’, का विमोचन महात्मा गांधी के परपोते तुषार गांधी द्वारा नागपुर में हाल ही में किया गया था. अब तक, मिलिंद कीर्ति की ‘दहशतवाद : न्यूयॉर्क ते खैरलांजी’ (२००८, सुगावा प्रकाशन, पुना), ‘नवयान: विषमताअंताचा लढा’ (२०१२, लोकवाङमय गृह प्रकाशन, मुंबई), ‘मोहरा महाराष्ट्रचा’ (२०२२, संपादित, ग्रंथाली प्रकाशन, मुंबई) और ‘सहमतीची हुकूमशाही: एरिस्टोक्रेसी टू टेक्नोक्रेसी’ (२०२३, लोकवाङमय गृह प्रकाशन, मुंबई) जैसी किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं।