– आवेदकों को परेशान करने के लिए सूचना अधिकारियों का नया फंडा,कार्रवाई के लिए महासंघकी तयारी सुरु
नागपुर:- सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत सूचना के अधिकार आवेदन के किसी भी विषय की जानकारी आवेदक को तब तक नहीं दी जानी चाहिए जब तक कि राज्य सूचना आयोग कार्यालय में प्रथम अपील एवं द्वितीय अपील दायर नहीं की जाती ह,ऐसा आवेदकों को परेशान करने के लिए सूचना अधिकारियोंने नया फंडा आजमाना सुरु किया क्या यह सवाल लिखित रूप में सूचना अधिकार कार्यकर्ता महासंघ, महाराष्ट्र राज्य के कार्यकारी अध्यक्ष शेखर कोलते ने सरकार और प्रशासन के समक्ष उठाया है।
सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 को ब्रह्मास्त्र जैसे कानून को सरकार के कामकाज में पारदर्शिता लाकर सवाल पूछने और आम नागरिकों को जानकारी प्राप्त करने का एक संवैधानिक मंच के रूप में देखा जाता है। इस कानून के प्रयोग से सैकड़ों छोटे-बड़े भ्रष्टाचार के घोटालों का पर्दाफाश हुआ है तथा शासन-प्रशासन के अनेक भ्रष्ट अधिकारी-कर्मचारियों का पर्दाफाश हुआ है और उनमें से कुछ तो सेवा से निलम्बित होकर स्थायी रूप से बर्खास्त होकर घर बैठे हैं। लेकिन कुछ अधिकारी इन सब बातों को ठीक से न समझकर, अपनी कार्यप्रणाली में पारदर्शिता लाए बिना इस कानून को अपनी गर्दन का कांटा समझते हुए इसे कुतरने के लिए नए-नए हथकंडे अपना रहे हैं. सूचना को परिभाषित नहीं किया जाना, सूचना को समझा न जाना, व्यापक सूचना, गैर-सार्वजनिक हित, तीसरे पक्ष और व्यक्तिगत जानकारी, गोपनीय जानकारी, शुल्क की सूचना के बिना निरीक्षण के लिए बुलाना, आवेदन का देर से वर्ग करना, सूचना की अनुपलब्धता जैसी रणनीति का सहारा लेकर , सूचना के अधिकार आवेदन के किसी भी विषय पर आवेदक को राज्य सूचना आयोग कार्यालय में प्रथम अपील एवं द्वितीय अपील न दी जाये तबतक सूचना न देना यह जन सूचना अधिकारियों द्वारा आवेदकों को परेशान करने के लिए कोई नया फंडा या नियम तो नही लागू किया गया है ? यह सवाल कार्यकारी अध्यक्ष शेखर कोलतेने अपनी लिखित शिकायतमें सरकार एवं प्रशासन के समक्ष रखा है.
अपील के बिना कोई सूचना नहीं
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत, जन सूचना अधिकारियों को आवेदन दायर करने के तीस दिनों के भीतर नि: शुल्क या शुल्क के साथ जानकारी प्रदान करना अनिवार्य होता है, लेकिन जानकारी एकत्र करने में कठिनाई के कारण और बारबार जानकारी प्रदान करने का बोझिल काम होने की वजह से अब इन आवेदकों को सबक सीखने के उद्देश्य से इनको शारीरिक, मानसिक और आर्थिक परेशानी देने का फैसला इन अधिकारोयो ने लिया है। इसलिए कार्यालय में सूचना उपलब्ध होते हुए भी लोक सूचना अधिकारियों ने तीस दिन के बाद भी आवेदन वापस करने या जानबूझकर सूचना नहीं देने का अवैध कार्य शुरू कर दिया है। साथ ही प्रथम अधिकारी उसी कार्यालय का परिचित अधिकारी होनेसे , मामला राज्य सूचना आयोग में दो तीन साल से लम्बित रहने से , केवल पच्चीस हजार रुपये का जुर्माना आयोग द्वारा लगाया जानेसे अधिकारियों में इस कोई कानून का कोई डर नही रह गया है.
आवेदक की जेबपर भारी बोझ
सूचना के अधिकार के लिए आवेदन करते समय नियमानुसार आवेदन शुल्क के रूप में आवेदन पर दस रुपये की कोर्ट फि स्टाम्प लगानी होती है, उसके बाद दो रुपये प्रति पृष्ठ नुसार सूचना शुल्क के रूप में भरकर आवश्यक जानकारी लेनी होती है। लेकिन अगर झूठी और भ्रामक जानकारी दी गई है या जानकारी नही दी गई है, तो आवेदक को बीस रुपये के शुल्क के साथ उसी कार्यालय में प्रथम अपील आवेदन करना होगा। चूंकि प्रथम अपीलीय अधिकारी उसी कार्यालय से है, तो इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि अपीलकर्ता संतुष्ट होगा, किसी कारण से, राज्य सूचना आयोग में दूसरी अपील करना मतलब फिर से बीस रुपए आवेदन शुल्क भरना पड़ेगा , यदि कार्यालय तहसील या जिला स्तर पर है, तो आपको आवेदन और अपील दाखिल करने के लिए यात्रा खर्च भी झेलना पड़ेगा , सुनवाई या सूचना के लिए कार्यालय जाना होगा, और अंत में दो या तीन साल बाद, जब आपको राज्य सूचना आयोग में सुनवाई करनी होगी तब वहाँ भी दिन भर काम छोड़कर तपस्या करनी पड़ती है, सूचना और न्याय की मांग के इस प्रक्रिया में पीड़ित आवेदक को पता ही नहीं चलता कि एक आवेदन पर करीब 400 से 500 रुपये कैसे खर्च हो जाते हैं.
अधिकारी द्वारा पचास नियमों का उल्लंघन
आपको यह जानकर बड़ा झटका लगेगा कि आरटीआई अधिनियम 2005 के तहत सूचना के अधिकार के आवेदन पर कार्यवाही न करके जन सूचना अधिकारी लगभग पचास से साठ नियमों का नियमित रूप से उल्लंघन कर रहा है, लेकिन यह सच है। आरटीआई अधिनियम 2005, महाराष्ट्र सार्वजनिक अभिलेख अधिनियम 2005, भारतीय साक्ष्य अधिनियम, राज्य सिविल सेवा और अखिल भारतीय सिविल सेवा अधिनियम, सेवा हमी अधिनियम, नागरिक सनद, भारतीय दंड संहिता, दंड संहिता , सूचना का अधिकार अधिनियम के संबंध में राज्य सरकार, केंद्र सरकार, मुख्य सूचना आयुक्त, राज्य सूचना आयुक्त, उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के आदेश, निर्णय, दिशानिर्देश, नियम, परिपत्रक , कार्यालयके आदेश आदि कानूनों का व्यापक रूप से अधिकारी उल्लंघन कर रहे हैं और लोक सूचना अधिकारी के पास पूरी जानकारी होने के बावजूद वह जानबूझकर भारतीय संविधान के अधीनस्थ इन कानूनों और विनियमों का उल्लंघन कर उनका अपमान कर रहा है ,ऐसी प्रतिक्रिया शेखर कोलतेने दी .
ऐसे अधिकारियों को सेवा से करे बर्खास्त
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत सूचना के अधिकार आवेदन पत्र पर कार्रवाई न करके लगभग पचास से साठ नियमों का उल्लंघन करने वाले लोक सूचना अधिकारी के कार्यालय से वर्ष 2005 से 2023 तक सूचना के अधिकार आवेदन पत्र, प्रथम अपील आयोग में द्वितीय अपील, धारा 18(1) के तहत शिकायत, आयोग द्वारा दण्ड एवं अर्थदण्ड के आदेश के अनुसार शासन प्रशासन के विरुद्ध दर्ज शिकायतों की संख्या एवं दस्तावेजों का सम्पूर्ण अभिलेख एकत्रित कर विभागीय जाँच करायी जाय। लोक सूचना अधिकारी के विरूद्ध कार्यवाही की जाये तथा उसे सेवा से निलम्बित अथवा स्थायी रूप से बर्खास्त करने की कार्यवाही की जाये एवं प्रशासन द्वारा परिवाद में मामला दर्ज किया गया है, ऐसी कार्यकारी अध्यक्ष शेंखर कोलते इन्होंने अपनी शिकायत में माँग की है.