श्रद्धा भक्ति और आस्था का केंद्र है कामरूप का मां कामाख्या मंदिर शक्तिपीठ 

भक्तगणों ने भाजपा प्रदेशाध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले का आभार माना 

कामरुप :- असम के गुवाहाटी से दो मिल दूर पश्चिम में नीलगिरि पर्वत पर स्थित सिद्धि पीठ को कामाख्या मंदिर के नाम जाना जाता है। इसका उल्लेख कालिका पुराण में मिलता है। कामाख्या मंदिर को सबसे पुराना शक्तिपीठ माना जाता है। मां कामाख्या देवी के दर्शन एवं गंगासागर स्नान करके लौटे पत्रकार टेकराम सनडिया शास्त्री ने बताया कि भाजपा के महाराष्ट्र प्रदेशाध्यक्ष एवं पूर्व ऊर्जा मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले की सिफारिश पत्र के अधार पर नागपुर विदर्भ तथा मध्यप्रदेश के विभिन्न जिलों से करीबन 165 भक्तजनों का जत्था को कामाख्या मंदिर देवालय पंहुचा जहां उन्हे अस्थाई धर्मशाला (टैन्ट) मे ठहरने की उत्तम व्यवस्था की गई थी।12 से 13 जनवरी तक मां की पूजा अर्चना एवं परिक्रमा किया । इस अवसर पर सभी भक्तगणों ने भाजपा नेता बावनकुले की भूरि भूरि प्रशंसा की और उन्हे उनके जन्म दिवस उपलक्ष्य मे शुभकामनाएं दी और उनका आभार माना। पश्चात भक्तों का जत्था वापस कामाख्या रेलवे स्टेशन से कांचन गंगा एक्सप्रेस में सयालदह स्टेशन कोलकाता पंहुचा।

खामाख्या मंदिर के महंत पं कमलकांत के अनुसार पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, माता सती के योनि का भाग कामाख्या नामक स्थान पर गिरा था। इसके उपरांत इस स्थान पर देवी के पावन मंदिर को स्थापित किया गया। कामाख्या देवी मंदिर मां दुर्गा के शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ है। इस मंदिर में तांत्रिक अपनी सिद्धियों को सिद्ध करने आते हैं।

कैसे हुआ कामाख्या शक्तिपीठ का निर्माण

माता सती के पिता राजर्षि दक्ष प्रजापति ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया था जिसमे उन्होंने सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया परंतु भगवान शिव को न्योता नहीं भेजा।तब माता सती ने अपने पिता के इस अपमान से क्रोधित होकर अपने शरीर को हवन कुंड की अग्नि में समर्पित कर दिया था। तब भगवान महादेव उनके पार्थिव शरीर को कंधे पर रखकर तांडव करने लगे थे।, जिससे संसार में प्रलय की स्थिति बन गई थी। तब संसार को प्रलय से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को कई हिस्सों में काट दिया, जिस जगह भी ये टुकड़े गिरे, वे स्थान शक्तिपीठ कहलाए। माता सती का योनि(भगनाशा) का भाग कामाख्या स्थान पर गिरा था। इसी वजह से इसको कामाख्या देवी के नाम से जाना जाता है। माता सती के कुल 52 शक्तिपीठ हैं, लेकिन एक शक्तिपीठ पाकिस्तान में स्थित है। उसे हिंगलाज भवानी माता के नाम से जाना जाता है एवं भारत में कुल 51 शक्तिपीठ हैं।

देवी कामाख्या कुंड की होती है पूजा

51 शक्तिपीठ में से सिर्फ कामाख्या मंदिर को महापीठ का दर्जा हासिल है, लेकिन इस मंदिर में मां दुर्गा और मां जगदंबा का कोई चित्र और मूर्ति नहीं है। भक्त मंदिर में बने एक कुंड पर फूल अर्पित कर पूजा करते हैं। इस कुंड को फूलों से ढककर रखा जाता है क्योंकि कुंड देवी सती की योनि का भाग माना जाता है, जिसकी पूजा-अर्चना भक्तगण करते हैं। इस कुंड मे भूगर्भ से हमेशा पानी का रिसाव होता रहता है। इसी वजह से इसे फूलों से ढ़ककर रखा जाता है।

रजस्वला के समय ब्रम्हपुत्र नदी का पानी हो जाता है लाल

मान्यता के अनुसार, ब्रह्मपुत्र नदी का पानी तीन दिन के लिए लाल हो जाता है। इसका कारण कामाख्या देवी मां के रजस्वला होने को बताया जाता है। ऐसा हर साल अम्बुवाची मेले के समय ही होता है। इन तीन दिनों में भक्तों का बड़ा सैलाब इस मंदिर में उमड़ता है। भक्तों को प्रसाद के रूप में लाल रंग का सूती कपड़ा भेंट किया जाता है

गोलाकार आकार के इस कामाख्या देवी मंदिर परिसर में मंत्र श्लोकों को सिद्ध करने के उद्देश्य से दूर दूर से आने वाले अवधूत अघोरी नांगा-साधु संत महात्माओं का आगमन प्रस्थान लगा रहता है।कामाख्या देवी मंदिर मे आने वाले सभी भक्तों की मुरादें पूरी होती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार यहां यह राजर्षि महर्षियों और तपस्वियों की तपो भूमि मानी जाती है। श्रद्धिलुओं को मनोकामनाएं पूरी करने वाली कामाख्या कामेश्वरी देवी मंदिर परिसर की भूमि की रज को तिलक के रुप मे लगाते हैं।यहां विविध प्रकार के नव-रत्न रुद्राक्ष की मालाओं तथा हवन पूजन सामग्रियों की आकर्षक दुकानों की शोभा का वर्णन नहीं किया जा सकता है। नीलगिरी पहाडी की सुंदरता पर्यटको को बेहद आकर्षित करती है।

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