RTE एडमिशन में फर्जीवाडा

– पैसेवालों के फ़र्ज़ी दस्तावेज वेल्कम.गरीब मांगे हक़ तो उसको बोलते करो भीड़ कम,डुप्लीकेट फॉर्म, फ़र्ज़ी दस्तावेज, डुप्लीकेट घर पत्ता फिर भी प्रवेश निश्चित,क्या शिक्षण विभाग भी है फर्जी वाड़े में लिप्त

नागपुर :- RTE का प्रावधान उन पालकों के लिए है जो अपने बच्चोको अच्छी निजी स्कूल में ८ वी कक्षा तक मुफ्त में पढाना चाहते है. मगर जांच करने पर देखा जा सकता है की अधिकांश साधन संपन्न लोग हि RTE के अंतर्गत फर्गी दस्तावेज लगाके प्रवेश निश्चित करवा रहे है.

यह देखा जा सकता है की बड़ी आसानी से जाती प्रमाण पत्र और ऐसे कई सरकारी प्रमाण पत्र बिना किसी पुरावे के भी एक मोटी रक्कंम दे कर आसानी से प्राप्त किये जा सकते है. इस का एक उधारण नीचे बताया गया है. ऐसी कई प्रकरणों की शिकायत जब शिक्षा विभाग से की गयी तो उन की टाल मटोल देख कर यह समझ आ गया की शिखा विभाग और RTE विभाग से जुड़े कई उच्च स्तर के आधिकारी भी इस फर्जीवाड़े के समर्थन में है. साक्ष्य दिखने पैर भी वे फर्जीवाड़े को नज़र अन्दाज करते हुए यह कह रहे थे की हमे सिर्फ दस्तावेज लेने की ही अनुमति है, अगर दस्तावेज दिए गए है तो दस्तावेज फ़र्ज़ी है की नहीं यह जाचना उनकी जवाबदारी नहीं. कई ऐसे आवेदन देखे जा सकते हैं जहा पालकों ने एक से ज्यादा ऑनलाइन अर्जीभर कर अपना चयन लाटरी में सुनिश्चित करने क लिए आवेदन भरे है, जो की RTE के नियम का उल्लंघन है.RTE के नियमअनुसार अगर किसी ने एक से ज्यादा ऑनलाइन अर्जी भरी है तो उस हालत में उस पालक की सभी अर्जी अवैध करार दी जाती है और ऐसी स्तिथि में RTE सीट के लिए चयन हो भी जाए तोह वोह रद्द कर दिया जाता है. जब ऐसे ही प्रकरण को शिक्षा विभाग क सामने लाया गया तब भी उन्होंने इस तरह के डुप्लीकेट फॉर्म को रद्द न करते हुए उस फर्जीवाडा करने वाले पालक के समर्थन में RTE के अंतर्गत एडमिशन दे दिया और किसी ज़रूरतमंद और गरीब के हक्क का हननं किया क्युकी1 से ज्यादा आवेदन भरना RTE के नियमों के खिलाफ है. यह फर्जीवाडा शहर के कुछ ही चुनिन्दा स्कूल में हर वर्ष उभर के आता है और बहुत आसानी से मामला दबा भी दिया जाता है.ज्ञात हो की ऐसे चुनिन्दा और नामचीन स्कूल की सीट की लिए 2 से ३ लाख रुपये की देन भी ले जाती है.जब शिक्षा विभाग को साक्ष्य दिखने के बाद भी यह फर्जीवाडा नहीं दिख रहा है तो इस का अर्थ आप समझ ही गए होंगे. दिखाती सी बात है की पालक ने यह गलत काम किया है फिर भी पड़ताडनी समिति को यह दिखाई नहीं दिखा या उन्हें नोटों की मोटी गड्डी के पीछेसे दिखाई ही नहीं देता ?

दूसरा प्रकरण है जहाँ पालक महाराष्ट्र का रहिवासी है ही नहीं और जाती प्रमाण पत्र भी उसका २०२२ में मध्य प्रदेश में बनवाया था.जब उसको बताया गया की मध्य प्रदेश का जाती प्रमाण पत्र मान्य नहीं है तो वहपालक ५ दिन बाद महाराष्ट्र का जाती प्रमाण पत्र ले कर आ गया और RTE के अंतर्गत फरेब करके किसी ज़रूरत मंद का हक्क छीन कर पैसे के दम पर अवैध रूप से मुफ्त की सीट ले कर चला गया. इस बार भी शिक्षण विभाग के पास बहाने बाजी का भंडार था और साक्ष्य देने क बावजूद उन्होंने यह फ़र्ज़ी एडमिशन रद्द नहीं किया. किसी भी राज्य का जाती प्रमाण पत्र पाने क लिए कम से कम ३५ साल का पुरावा देना पड़ता है, क्या शिक्षण विभाग के शिक्षित लोगो को यह समझ नहीं आया की मध्य प्रदेश का जाती प्रमाण पत्र देने वाला, ५ दिन के भीतर महारष्ट्र का जाती प्रमाण पत्र कैसे ले आया? यदि ऐसी बड़ी बड़ी गलतियों को नजर अंदाज किया जा रहा है तो यह चिंता के साथ साथ शिक्षण विभाग और पड़तालिनी समिति की निष्पक्ष कार्य प्रणाली पर संशय का भी विषय है. गरीब पालकोंका अधिकार छीन कर साधन संपन्न लोगों को दिया जा रहा है, अगर पड़ताडनी समिति निष्पक्ष होकर जाँच कर रही है तो ऐसे प्रकरण पर समिति कोई ठोस प्रक्रिया क्यों नहीं दे रही है? फिर ऐसी समिति के गठन करने का क्या फायदा? यदि कुर्सी पर बैठ कर ही दस्तावेज जाचने है और उसकी सत्यता की पुष्टि नहीं करनी है तो समिति का गठन क्यों किया जाता है ?

यही नहीं एक अन्य प्रकरण में जब शिक्षण विभाग को सूचित किया गया की एक पालक खलासी लाइन मोहन नगर का रहवासी न होते हुए जरीपटका का रहवासी है तो उस पर भी शिक्षण विभाग ने कोई संज्ञान नहीं लिया.साक्ष्य भी दिए गए और स्थानिक नागरिको ने भी पुष्टि की की यहाँ इस नाम का कोई परिवार नहीं रहता.जो पता पालक ने अर्जी में दिया है वह किसी रहने वाले घर जैसी जगह का है ही नहीं.

ज्ञात रहे की हर साल इन्ही कुछ नाम चीन स्कूलों के एडमिशन में धन्द्लेबजी और फर्जीवाड़ा देखा जा रहा है, पर इस के बावजूद यह फर्जीवाड़ा कायम है, क्या इस बात से यह निष्कर्ष नहीं निकला जा सकता है की फर्जीवाड़े और धन्द्लेबाज़ी में शिक्षण विभाग और फ़र्ज़ी पालको की मिली भगत है जो अपने निजी स्वार्थ के लिए ग़रीब और ज़रुरत्मन्दो का हक्क मार रहे हैं?क्या उपर बताये गए प्रकरण इस आरोप की पुष्टि नहीं करता?ऐसे अनेको प्रकरण है पर सब कुछ मल्लों होने पर पर अगर कोई मौन है तो निश्चित ही यह आरोप वास्तविकता है और इस बात का खंडन करना गलत ही होगा.

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