नागपुर :- ईर्षा भाव धारण करे यह धर्मोपदेश मुनिश्री स्वात्मनंदीजी गुरुदेव ने महावीरनगर स्थित श्री सैतवाल जैन संगठन मंडल के सभागृह में दिया।
सुखी, समाधानी जीवन जीने के लिए श्रावक श्राविकाओं ने ईर्षा भाव का त्याग कर समता भाव धारण करने का धर्मोपदेश देते हुए कहा अपने अपने कर्मो के अनुसार व्यक्ति की परिस्थिति बदलती हैं इसलिए दूसरों की ईर्षा कभी नहीं करना चाहिए। अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ का त्याग करना चाहिए।
धर्मसभा के प्रारंभ में तीर्थरक्षाशिरोमणी आचार्यश्री आर्यनंदी गुरुदेव के चित्र के समक्ष दीप प्रज्जवलन, गुरुदेव का चरण प्रक्षालन वास्तु शिल्पकार नारायणराव पलसापूरे, श्रीकांत तुपकर, प्रमोद राखे, रतनदीप गडेकर, पंकज आगरकर, सतीश सोनटक्के, अशोक वासकर, अक्षय कस्तूरे ने किया। जिनवाणी भेट विद्या राखे, सुनीता पोहरे, विजया बंड, सुनंदा मोहीकर, कल्याणी बंड ने दी। मंगलाचरण शैलेश जैन ने प्रस्तुत किया। धर्मसभा का संचालन सुभाष मचाले, आभार प्रकाश मारवडकर ने माना।
धर्मसभा में श्रीकांत मानेकर, विशाल चानेकर, अजीत कहाते, दिलीप जगताप, तुषार वेखंडे, बाबाराव मारवडकर आदि उपस्थित थे।