संविधान की नाव पर विपक्ष!

– “संविधान हत्या दिवस” बनेगा “संविधान बचाव” की काट

– स्कूलों में पढ़ाया जाए संविधान -डॉ. प्रवीण डबली

आजादी के 75 साल बाद भी संविधान की रक्षा व उसकी हत्या पर सत्ता पक्ष व विपक्ष चुनाव लड़ रहा है। जिसका फायदा भी कांग्रेस व अन्य दलों को हुआ। लोकसभा चुनाव में मिली सफलता के बाद तो विपक्ष को लगने लगा की “संविधान बचाव” की नाव पर ही सवार होकर आगे आने वाले चुनावों को लड़ा जाए। इसी वजह से विपक्ष हर जगह संविधान की प्रति लहराकर यह जताने का प्रयास कर रहा है की भाजपा आज नही तो कल संविधान बदलेगी!

विपक्ष की इस काट को काटने के लिए सत्ता पक्ष भी पूरी कोशिश कर रहा है। क्योंकि उसे भी अपने आकलन में यह समझ आ गया की “संविधान बचाव” से उन्हें काफी नुकसान हुआ है।

वास्तविक स्थिति का आकलन यदि किया जाय तो यह बात सामने आती है की कांग्रेस के शासन काल में करीब 100 बार संविधान संशोधन किया गया वह भी विपक्ष को दरकिनार कर…वही मोदी सरकार में करीब 8 संशोधन किए गए जिसमे कांग्रेस व अन्य दलों ने भी अपनी सहमति दी। जिसमें प्रमुख है महिला आरक्षण बिल, तीन तलाक, आर्थिक आधार पर आरक्षण जैसे संशोधन।

अब सवाल यह है की भाजपा के चार सौ पार के नारे और कुछ नेताओं की संविधान बदलने के लिए बहुमत की जरूरत वाली टिप्पणियों के सहारे विपक्ष ने सत्ता विरोधी नैरेटिव का कोलाज रच दिया। इसका उसे फायदा भी मिला। इसलिए विपक्ष चाहता है कि यह नैरेटिव जिंदा रहे और भाजपा सवालों के घेरे में रहे। वोटरों के मन में संदेह भी बना रहे। यानी संविधान बचाव की नाव डूबनी नही चाहिए।

नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी हों या अखिलेश यादव या फिर उनके अन्य साथी, वे अभी भी इसी नैरेटिव पर अटके हैं। जल्द ही महाराष्ट्र और हरियाणा में विधानसभा चुनाव होने हैं। उसके कुछ ही समय बाद झारखंड में भी चुनाव होंगे। इसलिए विपक्ष इस माहौल को भुनाए रखना चाहता है।

वही दूसरी ओर सत्ता पक्ष “संविधान बचाव” की काट तलाश रहा है। उसने आपातकाल की 50 वी बरसी पर संसद में प्रस्ताव पास कर दिया ताकि कांग्रेस को आइना दिखा सके। संसद में कांग्रेस को असहज होता देख सरकार ने 25 जून को “संविधान हत्या दिवस” मनाने का एलान कर दिया। उन्हे लगता है इससे कुछ हद तक लोगो में फैले भ्रम को कम किया जा सके।

सवाल उठता है कि क्या भाजपा सचमुच संविधान विरोधी है? अगर वह संविधान विरोधी है तो विपक्ष ने उसके द्वारा लाए गए संविधान संशोधन प्रस्तावों का साथ क्यों दिया?

मोदी सरकार ने शुरुआत में ही राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग गठित करने को लेकर संविधान संशोधन किया, बाद ही सुप्रीम कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया।जीएसटी लागू करने लिए भी संविधान संशोधन किया गया। मोदी सरकार का तीसरा संविधान संशोधन प्रस्ताव ‘पिछड़ा वर्ग आयोग’ को संवैधानिक दर्जा देने से संबंधित था। चौथा आर्थिक आधार पर आरक्षण देने वाला कानून भी संविधान संशोधन के ही दायरे में आता है। संसद और विधानसभाओं में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण और एससी-एसटी आरक्षण की समयसीमा बढ़ाने वाले संविधान संशोधन को भी संसदीय मंजूरी मिली। इसी तरह राज्यों को अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग की सूची में जातियों को जोड़ने का जो अधिकार दिया गया, वह भी संविधान संशोधन ही था। मोदी सरकार ने वित्त आयोग के अधिकारों में परिवर्तन को लेकर भी संविधान संशोधन प्रस्तुत किया।

विवादित 42वें संविधान संशोधन को छोड़ दें तो ज्यादातर मौकों पर विपक्ष और सत्ता पक्ष ने मिलकर ही संविधान संशोधन किए हैं। संविधान संशोधन का मुद्दा भी बहुत पेचीदा है। किसी भी सत्तारूढ़ राजनीतिक दल के लिए संविधान में बदलाव विपक्ष को साथ लिए बिना बहुत आसान नहीं है।

मामले को देखते हुए सरकार ने भी इस नैरेटिव के संदर्भ में विपक्ष को आक्रामक अंदाज में जवाब देना शुरू कर दिया है।

केंद्र सरकार ने 25 जून को संविधान हत्या दिवस के रूप में मनाए जाने की अधिसूचना जारी कर यही स्पष्ट किया कि वह विपक्षी दलों और विशेष रूप से कांग्रेस की ओर से किए जा रहे इस दुष्प्रचार की काट करने के लिए कोई कोर कसर नहीं उठा रखेगी कि भाजपा संविधान बदलने का इरादा रखती है।

सोचने वाली बात तो यह है की संविधान बचाव वाले मुद्दे ने देश के अन्य मुद्दों को नगण्य कर दिया है। चुनाव में महंगाई, बेरोजगारी, भ्रटाचार जैसे अन्य संवेदनशील मुद्दे मानो खत्म हो गए है। वैसे भी राम मंदिर , तीन तलाक, 370 धारा जैसे मुद्दे पहले ही खत्म हो चुके है। अब बचा है सिर्फ “संविधान बचाव” ।

अब समझने वाली बात तो यह है की संविधान को किसे खतरा है। 75 वर्षो से यह देश संविधान के आधार पर ही चल रहा है। संविधान में दिए प्रस्तावों पर ही बदलाव की भूमिका तत्कालीन सरकार ले रही है। फिर संविधान को खतरा किस्से है?

उन नेताओं से जो हर वर्ष दल बदल रहे है…या फिर उनसे जो पुनः कुछ दिन दूसरे पार्टी में रह कर वापस पहली पार्टी में आ रहे है। किन नेताओ पर देश व जनता भरोसा करे? कभी भाजपा की तारीफ करने वाली शिवसेना अब उसे देशद्रोही व संविधान बदलने की आरोपी करार दे रही है। या फिर राष्ट्रवादी पार्टी जिस पर प्रधानमंत्री भ्रष्टाचार के आरोप लगाए और दूसरे दिन अपने समर्थन में महायुति में शामिल हो जाए…या नीतीश बाबू की पार्टी कभी लालूजी के साथ तो कभी भाजपा के साथ। उधर ममता दीदी को हाल भी सब जानते है। सपा की भी राजनीतिक भूमिका से सब परिचित है। ऐसे में कांग्रेस की स्थिति का जिम्मेदार कौन है खुद कांग्रेस?

जो भी हो देश की राजनीति अब भी संविधान बचाव की नाव पर ही सवार दिख रही है। जनता संविधान में क्या लिखा है यह नहीं जानती…उन्हे जो नेताओ द्वारा बताया जाता है उस पर विश्वास करती है। ऐसे में सरकार द्वारा नई शिक्षा नीति के अंतर्गत सभी स्कूलों में संविधान में लिखे तथ्यों को पढ़ाया जाना चाहिए ताकि हमारी युवा पीढ़ी संविधान को समझ सके व किसी भी झूठे नेरेटिव में न फस कर लोकशाही का जतन कर सके!

– डॉ. प्रवीण डबली

(वरिष्ठ पत्रकार, राजनीतिक विश्लेषक)

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