शनिशिंगणापुर :- श्रीक्षेत्र शनिशिंगणापुर में श्री शनैश्चर मंदिर के मुख्यद्वार पर टंगा महाघंटा देवस्थान के कार्यालय में बाधा आती है, इसलिए गत 3-4 वर्षाें से बांधकर रखा गया था । मूलत: घंटा बजाना, यह मंदिर का एक महत्त्वपूर्ण धार्मिक आचार है । घंटा बजाने से देवतातत्त्व जागृत होता है और वातावरण में सात्त्विकता प्रक्षेपित होती है, ऐसा धर्मशास्त्र है । ऐसा होते हुए भी केवल कार्यालय में बाधा आती है, इसलिए उसे बंद रखना सर्वथा अयोग्य है । इसलिए हिन्दुओं के संवैधानिक धार्मिक अधिकारों का विचार कर श्री शनि मंदिर में महाघंटा बजाने की परंपरा पुन: आरंभ की जाए, ऐसी मांग निवेदन द्वारा ‘महाराष्ट्र मंदिर महासंघ’की ओर से श्री शनैश्चर देवस्थान के अध्यक्ष भागवत बानकर एवं उपाध्यक्ष विकास बानकर एवं विश्वास (मामा) गडाख को दी गई । इस निवेदन पर तत्काल कार्रवाई करते हुए बानकर ने मंदिर के मुख्यद्वार पर बांधकर रखे गए महाघंटा को श्रद्धालुओं के लिए खुलवा दिया । इस पर श्रद्धालुओं ने ‘हर हर महादेव’का जयघोष करते हुए घंटानाद किया । महासंघ के आवाहन के उपरांत देवस्थान द्वारा तत्परता से कृति करने के लिए में ‘महाराष्ट्र मंदिर महासंघ’के समन्वयक सुनील घनवट ने देवस्थान का आभार व्यक्त किया है ।
यह निवेदन देने के लिए ‘विघ्नहर्ता प्रतिष्ठान’के योगेश सोनवणे, ‘श्री शिवप्रतिष्ठान हिन्दुस्थान’के बापू ठाणगे, ‘हिन्दू जनजागृति समिति’के रामेश्वर भुकन, साथ ही ज्ञानेश्वर जमदाडे, सागर खामकर, सतीश बावरे, अमोल तांबे, अशोक मैद, अमोल वांढेकर एवं सुरज गागरे उपस्थित थे ।
घनवट ने आगे कहा, ‘‘हिन्दू मंदिरों में धार्मिक पूजापद्धति अनुसार मंदिर में घंटा बजाना, शंख बजाना अथवा आरती करना शास्त्रशुद्ध धार्मिक आचार है । श्री शनि मंदिर का महाघंटा बंद होने से हिन्दुओं की प्रथा, परंपरा एवं भक्तों की धार्मिक भावनाओं का प्रश्न निर्माण हुआ था । मंदिर का घंटा बजाना तुरंत आरंभ किया जाए, ऐसी मांग मंदिर महासंघ की ओर से दिए गए निवेदन में की गई थी । इससे पूर्व भी हिन्दुओं के भाग्यनगर (हैद्राबाद) के प्रसिद्ध आराध्यस्थान श्री भाग्यलक्ष्मीदेवी मंदिर के घंटे से धर्मांधों को कष्ट होता है, अत: इसीप्रकार उसे बंद कर दिया गया था ।
इस संदर्भ में भाग्यनगर में देवीभक्त उच्च न्यायालय गए । तब न्यायालय ने कहा था मंदिर में घंटावादन भक्तों की प्रथा परंपरा का मुख्य भाग है, जो कि भारतीय संविधान की धारा 25 अंतर्गत उनका मूलभूत अधिकार है । मंदिरों की प्रथा-परंपराएं, धार्मिक आचारों पर प्रतिबंध लगाए जाएंगे, तो मंदिर महासंघ उसका विरोध करता रहेगा ।’’