– ‘शरीफ’ के मुरीद हैं BRC,URC कमिटी सह जिला शिक्षणाधिकारी व समकक्ष
नागपुर :- RTE की संकल्पना और उसे कानून बनाकर अमल में लाने का मुख्य और एकमात्र उद्देश्य यही था कि सभी को शिक्षा ग्रहण करने का अवसर मिले,फिर लाभार्थी सक्षम हो या फिर असक्षम,सभी को शिक्षण का समान अधिकार मिले।इसलिए सरकारी मदद/सहयोग/अनुदान लेने वाले किसी भी स्कूल के 3 किलोमीटर के अधीन रहने वाले आर्थिक रूप से असक्षम विद्यार्थी को शाला में प्रवेश दिलवाने के लिए कानून सह नियमावली बनाई गई.
RTE के तहत जरूरतमंद गरजू विद्यार्थी को निकटतम 10 विद्यालय का नाम अंकित कर RTE का आवेदन जमा करवाना होता है,जो नियम हैं.आवेदन की पुष्टि करने के लिए जहाँ तक नागपुर जिले का सवाल हैं,प्राथमिक शिक्षणाधिकारी के नेतृत्व में शहर के लिए 2 समिति(URC) और ग्रामीण के लिए 1 समिति (BRC) बनाई गई.जो पिछले एक दशक से अधिक समय से सक्रिय हैं.इन समितियों में 18 स्कूल संचालक/प्राचार्य तो अन्य 2 स्वयंसेवी संस्था से जुड़े प्रतिनिधियों का समावेश होता हैं.
पिछले एक दशक से RTE अंतर्गत प्रवेश दिलवाने के नाम पर शिक्षण विभाग,URC व BRC को अपनी जेब में लिए मनचाही स्कूलों में प्रवेश दिलवाने वाले माफिया/शरीफ सक्रिय है.इनके मुरीद शिक्षणाधिकारी,स्कूल प्रबंधन हैं.क्यूंकि प्रत्येक फर्जी RTE प्रवेश से होने वाली INCOME संबंधितों में तय शर्तों के अनुसार बंटती हैं.
फर्जी RTE ADMISSION के लिए ‘शरीफ’ द्वारा शराफत से फर्जी DOCUMENT तैयार कर SUBMIT की जाती है,फिर शिक्षणाधिकारी,URC-BRC से सम्बंधित सदस्यों को शिफारिश/समझौते कर आवेदन को स्वीकृत करवाया जाता हैं.इसके एवज में लाभार्थी विद्यार्थी के पालक से कम से कम एक साल या फिर पालक के सक्षमता के अनुसार उनसे प्रवेश पूर्व तय रकम वसूल ली जाती हैं.
‘शरीफ’ जैसे RTE में प्रवेश दिलवाने वाले माफियाओं के चपेट में आने वाले पालक मुंहमांगी खर्च किये तो काम बन भी जाता है,इसमें दर्जनों को रोजगार देने वाले व्यवसायिओं का समावेश है जो सक्षम होने के साथ ही साथ स्कूल से कोसो दूर रहते है,मनचाहे स्कूल के फर्जी डॉक्यूमेंट के आधार पर अपने बच्चों को फ्री में शिक्षा दिलवा रहे.
‘शरीफ’ जैसे माफिया भी ऐसे पालकों को अपने मकड़जाल में फंसाये रखते है,लाभार्थी पालक वर्ग भी 7 साल का फी फ्री करवाने के एवज में एक साल का फी शरीफ को देने में भलाई समझते है,यह और बात है कि इस गोरखधंधे से गरजू/जरूरतमंद बच्चों का हक्क छीना जा रहा हैं.
उक्त गोरखधंधे से स्कूल संचालक सफेशपोश भलीभांति वाकिफ है,वे अपना मुख इसलिए बंद रख नज़रअंदाज कर रहे है क्यूंकि उक्त अवैध/फर्जी RTE प्रत्येक प्रवेश से उन्हें भी आर्थिक लाभ के साथ सरकार से RTE अंतर्गत बच्चों को पढ़ाने के लिए वार्षिक तय शुल्क भी मिल रहा हैं.
URC-BRC के सिफारिशों की जाँच हो
पिछले एक दशक से RTE में प्रवेश की पुष्टि करने वाली URC-1,URC-२ और BRC के सदस्यों द्वारा RTE के प्रवेश की पुष्टि प्रकरण की स्वतंत्र जाँच एजेंसी से जाँच की मांग ‘एमओडीआई फाउंडेशन’ ने राज्य के शिक्षण मंत्री, मुख्यमंत्री, गृहमंत्री,कानून मंत्री से की है,अन्यथा जल्द ही उच्च न्यायालय में सबूत सह याचिका दाखिल कर जाँच सह दोषियों पर क़ानूनी कार्रवाई सह आर्थिक नुकसान भरपाई की मांग की जाएगी।
प्रत्येक वर्ष URC-BRC समिति में RTE अंतर्गत आवेदनों की सत्यता के नाम पर खानापूर्ति की जाती हैं,समिति की प्रत्येक बैठक से आधे से अधिक सदस्य नदारत पाए जाते हैं.प्रत्येक वर्ष शिक्षणाधिकारी द्वारा समिति सदस्यों को यह निर्देश दिया जाता है कि बारीकी से आवेदनों की जाँच पड़ताल करने के बजाय सरसरी तौर पर जाँच कर OK कर विषय समाप्त करो.
गड़बड़ समिति से धांधली हो रही
समिति सदस्यों की जिम्मेदारी है कि वे सभी आवेदनों की जाँच सूक्ष्मता से करें। लेकिन तीनों समितियों में 20-20 सदस्य होने के बावजूद लगभग आधे ही आते हैं.आवेदनों के हिसाब से SPOT VERIFICATION तो हो नहीं पता इसलिए सक्षम का जुगाड़ शरीफ जैसे की शराफत से हो जाता,जिसको सुशील जैसे का पूर्ण सहयोग मिल रहा हैं.दूसरी ओर सही मायने में RTE के गरजू रह जाते हैं.
अर्थात RTE समिति की कार्य प्रणाली संदिग्ध हैं.और इसे संदिग्ध बनाने में BRC,URC-१,URC-2 से जुड़े शिक्षणाधिकारी/शिक्षण विभाग से जुड़े दिग्गज अधिकारी अहम् भूमिका निभा रहे हैं.
विडम्बना यह है कि तीनों समिति के सर्वेसर्वा शिक्षण विभाग के अधिकारी सक्रीय समिति सदस्यों को साफ़ साफ़ निर्देश दे चुके है कि दिए गए आवेदनों को सूक्ष्मता से न जांचे,जो नहीं मान रहा उसे छोटे-मोटे स्कूलों से सम्बंधित आवेदनों को जांचने दिया जा रहा हैं.
वेरिफिकेशन ऑफिसर वॉलंटरी
यह वेरिफिकेशन कमेटी में जितने भी ‘वेरिफिकेशन ऑफिसर’ है,उनका काम वॉलंटरी है,जिसके लिए उनको किसी भी तरह का कोई भी मानधन या पारितोषिक नहीं दिया जाता तो ऐसे में कोई SPOT पर जाकर ‘वेरिफिकेशन’ क्यों करेगा और क्योंकि ‘वेरिफिकेशन’ मनमाने तरीके से होता है इसीलिए अधिकांश नामचीन निजी स्कूलों में होने वाली RTE की प्रवेश BOGUS होती है,जरूरतमंद बच्चों के बजाय साधन संपन्न लोगों को लाभ दिलवाया जाता है.इतना ही नहीं गोर-गरीब के बच्चों का आवेदन रद्द कर संपन्न घरानों के बच्चों को प्रवेश दिया जाता है,जिसे शिक्षण विभाग के सम्बंधित अधिकारियों का शह हैं.
गौरतलब यह है की ‘वेरिफिकेशन कमिटी’ के अधिकांश सदस्य किसी ना किसी स्कूल के प्राचार्य या किसी स्कूल प्रबंधन से जुड़े होते हैं इसलिए कोई भी सदस्य शिक्षण अधिकारी से पंगा नहीं लेता हैं,क्यूंकि लगभग हर स्कूल में कुछ न कुछ त्रुटियाँ होती ही हैं इसलिए समिति सदस्य शिक्षणाधिकारी के मर्जी के हिसाब से आवेदनों का वेरिफिकेशन करते देखे गए.
खासकर पिछले 4 साल में सभी बड़े निजी नामचीन स्कूलों की RTE में होने वाले प्रवेश की जांच की जाए तो 80 % से ज्यादा इन स्कूलों की सीटों पर साधन संपन्न लोगों को मौका दिया गया है.इससे होने वाले लाभ का बड़ा हिस्सा शिक्षणाधिकारी और समकक्ष अधिकारियों ने उठाया हैं.