बूटीबोरी MIDC: 5,500 की नौकरी गई, 500 को मिली; फैबवर्थ, इंडोवर्थ के बाद मोरारजी पर भी गाज 

कई बड़े उद्योगों में लग गए ताले, आने वाले का प्रमाण कम, जाने वाले का अधिक

नागपुर :- बूटीबोरी में निवेश अबूझ पहेली बन गया है. यहां जितने उद्योग आते हैं, उससे अधिक बंद हो जाते हैं. इससे जितना रोजगार खत्म होता है उसकी तुलना में रोजगार सृजन महज 20 फीसदी ही हो पाता है.

पिछले कुछ समय में ही बूटीबोरी में बड़े-बड़े ब्रांड बंद होने से बूटीबोरी औद्योगिक क्षेत्र की स्थिति दयनीय हो गई है.

खासकर टेक्सटाइल सेक्टर के 3 बड़े ब्रांड बंद होने से पूरा का पूरा बूटीबोरी हिल गया है. इंडोवर्थ, फैबवर्थ के बाद मोरारजी पर तालाबंदी की नौबत आ गई है. इसमें से एक इकाई पूरी तरह से निर्यात कारोबार से जुड़ी थी तो दूसरी देश के बड़े-बड़े दिग्गजों को परिधान आपूर्ति करती थी. ऐसी कंपनियों का बंद होना बूटीबोरी के लिए पोषक वातावरण नहीं कहा जा सकता है.

3-4 कंपनियों के बंद होने से रोजगार का संकट

जानकारों ने बताया कि बूटीबोरी में मोरारजी में कम से कम 3,000-3,500 श्रमिक कार्यरत हैं. इसी प्रकार इंडोवर्थ और फैबवर्थ को मिलाकर 3,000 कर्मचारी कार्यरत थे. इन तीन कंपनियों के बंद होने से ही 5,500 के आसपास नौकरी खत्म हो गई है. इसके अलावा रिलायंस पावर भी बंद हो चुका है.

यहां पर कार्यरत लगभग 400-450 कर्मचारी भी इधर यहां पर कार्यरत लगभग 400-450 कर्मचारी भी इधर-उधर हो चुके हैं. बड़े-बड़े अधिकारी से लेकर कर्मचारियों तक पर संकट आ गया है. इसी प्रकार दो बड़े रोलिंग मिल के बंद होने की भी जानकारी है. इनमें से भी कम से कम 1,000 लोगों की छुट्टी हो गई है. बंद होती कंपनियां बूटीबोरी औद्योगिक क्षेत्र के लिए संकट पैदा कर रहे हैं.

आने वालों की रफ्तार कम

उद्यमियों का कहना है कि जिस रफ्तार में कंपनियां बंद हुईं हैं उसकी तुलना में फैक्ट्रियों के आने का स्पीड कम है जो कंपनियां आ रही हैं, उसका स्केल इतना बड़ा नहीं है. एमएसएमई, मध्यम उद्योग ही आ रहे हैं जिसमें 500-700 लोगों को रोजगार लगा है. साज फूड, गोयल प्रोटीन, सिएट सहित कुछ मध्यमवर्गीय फैक्ट्री ही रोजगार सृजित कर पाईं हैं.

250 इकाई बंद होने की आशंका

बूटीबोरी मैन्युफैक्चर्स एसोसिएशन (बीएमए) के अध्यक्ष नितिन लोणकर कहते हैं कि बूटीबोरी में 600-650 इकाई बूटीबोरी मैन्युफैक्चर्स एसोसिएशन (बीएमए) के अध्यक्ष नितिन लोणकर कहते हैं कि बूटीबोरी में 600-650 इकाई होने का दावा किया जाता है. इनमें से बीएमए के सदस्य 350 हैं. 50-75 लोगों ने सदस्यता नहीं ली होगी यानी यह आंकड़ा 400-425 तक हो सकती है लेकिन 250 से अधिक इकाइयों का कोई अता-पता नहीं है न तो वे कभी मिले हैं और न ही जुड़े हैं. इससे अंदेशा होता है कि लगभग 250 कंपनियां अस्तित्व में नहीं हैं. अगर होती तो निश्चित रूप से बीएमए के संपर्क ‘क्षेत्र’ में होती. इससे ही संदेह होता है.

BEL में भी हलचल नहीं

भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) ने अतिरिक्त बूटीबोरी में बड़ा भूखंड ली है लेकिन बाउंड्री वॉल होने के बाद से कोई हलचल नहीं है. इस क्षेत्र में गोयल प्रोटीन ही कार्यरत इकाई है. बालकृष्णा लि. एक बड़ा समूह है. उन्होंने जमीन ली है लेकिन गतिविधि शुरू नहीं हुई है. ऐसे कई अन्य हैं जिन्हें जमीन तो मिली है लेकिन कार्य शुरू नहीं हुए हैं . इससे प्रगति-गति का आंकलन किया जा सकता है.

वेरान, स्टार क्लिप का प्रोजेक्ट भी बंद

स्टार क्लिप ने बूटीबोरी और उमरेड में इकाई लगाई थी. उमरेड रोड प्रकल्प बड़े आकार का था जानकारी है कि यह इकाई बंद गई है. यहां भी काम रुक गया है. बड़े पैमाने पर लोग प्रभावित हुए हैं. इसी प्रकार चंद्रपुर रोड पर वेरान ऑटो कास्ट ने भी 100 एकड़ में इकाई लगाई थी जो अब बंदी की हालत में है. अगर इसी प्रकार इकाइयां बंद होती रहीं तो औद्योगिकीकरण का सोचना मुश्किल होगा.

मूल निचोड़ खोजना जरूरी : लोणकर

बूटीबोरी में उद्योग क्यों नहीं आ रहे हैं, इस पर गहराई से शोध करने की जरूरत है अब बूटीबोरी समृद्धि से भी जुड़ गया है. ऐसे में हमें सकारात्मकता की उम्मीद है. पर राजनीति एक बार क्रक्स निकालें और फिर बूटीबोरी को चमन बनाने की पहल करें. अन्यथा बंद-चालू वाले माहौल को पॉजिटिव करना मुश्किल जा रहा है.

नितिन लोणकर ( अध्यक्ष बीएमए)

इकोसिस्टम के लिए कर रहे काम

उद्योग तभी आएंगे जब इकोसिस्टम होगा. बुनियादी ढांचा बनने से काम आसान हुआ है. श्रमिकों की समस्या नहीं है लेकिन हाई लेबल में व्यक्ति को अभी नागपुर लाना मुश्किल होता है. हम सभी कई मंचों पर मुद्दों को उठा रहे हैं. एक माहौल बनाने का प्रयास कर रहे हैं. जल्द ही माहौल बनेगा और विदर्भ गतिमान होगा.

मिलिंद कानडे (सचिव फेडरेशन ऑफ इंडस्ट्रीज एसोसिएशन ऑफ विदर्भ)

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