मुंबई :- डॉ. दाभोलकर हत्या की जांच आरंभ से ही पूर्वग्रह पद्धती से एकांगी एवं राजनीतिक विचारों से की गई । अध्यात्म प्रसार एवं सामाजिक कार्य करनेवाली सनातन संस्था को दाभोलकर हत्या प्रकरण में दोषी ठहराने का दुर्भाग्यपूर्ण प्रयास किया गया । ‘दाभोलकर का खून सनातन के साधकों ने किया है’, ऐसा अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति द्वारा कहने से पुलिस ने उस दृष्टि से जांच की । इस प्रकरण में सनातन के 700 साधकों की पुलिस जांच की गई; परंतु कुछ भी हाथ न लगा । जांच का आरंभ होने से पूर्व ही प्रथम आरोपी कौन, यह निश्चित किया गया एवं उस दृष्टि से जांच कर झूठे साक्ष्य एकत्रित किए गए । इस में आगे दो बार आरोपी एवं साक्षी का परिवर्तन किया गया । इस कारण दाभोलकर हत्या की जांच पूर्णतः भटकाने के लिए दाभोलकर परिजन एवं तत्कालीन नेता उत्तरदायी हैं, ऐसा प्रतिपादन सनातन संस्था के राष्ट्रीय प्रवक्ता चेतन राजहंस ने किया है । सनातन संस्था की ओर से ‘तथाकथित विवेकवादी डॉ. दाभोलकर हत्या प्रकरण : प्रचार एवं सत्यता’ इस विषय पर आयोजित विशेष संवाद में वे ऐसा बोल रहे थे ।
इस समय राजहंस ने आगे कहा कि, लोगों को डॉ. दाभोलकर का ‘महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन ट्रस्ट’ ज्ञात है; परंतु उनका ‘परिवर्तन’ नामक ट्रस्ट है, जिसमें उनके परिवार के अधिकांश सदस्य ट्रस्टी हैं । यह ट्रस्ट सच्चे अर्थ में उनका ‘परिवार’ ट्रस्ट है । यह जानकारी समाज में उजागर नहीं हुई है । कश्मीर को भारत का भाग न दिखानेवाले ‘स्वीस एड फाउंडेशन’ नामक विदेशी संगठन द्वारा इस परिवर्तन ट्रस्ट को ऑर्गेनिक खेती के नाम से करोडों रुपए की देन दी जाती थी । ऑर्गेनिक खेती का एवं दाभोलकर का जरासा भी संबंध नहीं था । साथ ही समाचार पत्र चलानेवालें विदेश से धन नहीं ले सकतें, ऐसा कानून होते हुए भी वे विदेशी धन ले रहे थे । इस संदर्भ में परिवाद करने पर डॉ. दाभोलकर के ट्रस्ट का ‘एफ.सी.आर.ए.’ आज्ञापत्र (लाईसेंस) सरकार ने रद किया था । साथ ही पूर्व की अंनिस ट्रस्ट में भी अनेक झूठे व्यवहार हुए थे । इस कारण उस पर प्रशासक नियुक्त करने की अनुशंसा धर्मादाय कार्यालय द्वारा की गई थी । इन सभी प्रकरणों के कारण अंनिस ट्रस्ट पर कार्यरत अनेक प्रतिष्ठित मान्यवरों की अपकीर्ति (बदनामी) हुई थी । यदि डॉ. दाभोलकर की हत्या न हुई होती, तो आज वे कारागृह में होते; क्योंकि दाभोलकर के विरुद्ध हमारे पास दृढ साक्ष्य थे, परंतु दुर्भाग्य से उस समय उनकी हत्या हो गई । साथ ही इस वित्तिय घोटाले से अथवा उनके संगठन के नक्सलियों के साथ रहे संबंधों द्वारा भी उनकी हत्या हुई है क्या, इस दिशा में जांच क्यों नहीं की गई ? ऐसा प्रश्न भी राजहंस ने उठाया ।
जिहादी आतंकवाद का चित्र सर्वत्र दिख रहा है, ऐसा होते हुए भी मुस्लिमो के तुष्टीकरण हेतु तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने वर्ष 2006 के उपरांत उस समय ‘भगवा आतंकवाद’ का झूठा चित्र खडा किया । पहले मालेगांव में हिन्दुओं को फंसाया गया । ‘गांधी की हत्या के उपरांत इस देश में केवल दाभोलकर, पानसरे, कलबुर्गी एवं गौरी लंकेश इन चारों की ही हत्याएं हुईं एवं वे हिन्दूत्ववादियों ने ही की’ ऐसा प्रचार आज भी चालू है । यह प्रचार एवं चर्चा जारी रखकर जिहादी एवं साम्यवादियों को पूरे देश में की गई हिन्दुत्ववादियों की हत्याओं को छुपाना जारी है । उसमें सनातन संस्था को बलि देने का प्रयास चालू है, ऐसा चेतन राजहंस ने अंत में कहा ।