नागपूर :- हाल ही के बजट में मोदी सरकार ने घोषणा की है कि 2047 तक हमारा देश सिकल सेल मुक्त हो जायेगा। उसके लिए सिकलसेल मिशन के तहत 2027 तक 7 करोड़ लोगों की जांच की जाएगी। यह एक स्वागत योग्य कदम है और हमारे देश में सिकलसेल रोग की रोकथाम पर इसका बड़ा प्रभाव पड़ेगा, पिछले कुछ वर्षों से सिकलसेल रोग को विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम 2017 की सूची में शामिल किया गया है। इस बीमारी को विकलांगता सूची में शामिल करने से इस बीमारी से पीड़ित बच्चों को शिक्षा में आरक्षण मिलता है, लेकिन कड़े मापदंड के कारण सिकलसेल रोग के कई रोगियों को विकलांगता प्रमाण पत्र नहीं मिल रहा है। इसलिए हमारे संस्था ने सरकार से अनुरोध किया है कि सभी सिकलसेल रोगियों को जल्द से जल्द विकलांगता प्रमाण पत्र जारी करने की प्रक्रिया में तेजी लाएं व मापदंड मे परिवर्तन किया जाए। हमने सरकार से सिकलसेल रोग को भी शिक्षा के अलावा नौकरियों में आरक्षण पाने वाले विकलांगों की सूची में शामिल करने का अनुरोध किया है। डॉ. विंकी रुघवानी, अध्यक्ष थैलेसीमिया एंड सिकलसेल सोसाइटी ऑफ इंडिया और उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र मेडिकल काउंसिल ने कहा कि सिकलसेल के रोगियों को मेडिकल कॉलेजों के अलावा ग्रामीण अस्पतालों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में सिकलसेल रोग की दवाएं मिलनी चाहिए। उन्होंने संजय गांधी निराधार योजना के तहत सिकलसेल रोग के रोगियों को दी जाने वाली राशि में वृद्धि करने का भी अनुरोध किया है। डॉ. रुघवानी ने कहा कि सिकलसेल रोग को नियंत्रित करने के लिए एक कदम के रूप में विश्वविद्यालय के किसी भी स्नातक पाठ्यक्रम में प्रवेश लेने वाले प्रत्येक छात्र को सिकलसेल के लिए अनिवार्य परीक्षण किया जाना चाहिए। हाल ही में संकल्प इंडिया फाउंडेशन की मदद से थैलेसीमिया एंड सिकलसेल सोसाइटी ऑफ इंडिया ने डागा वूमेंस हॉस्पिटल, नागपुर में एक परियोजना शुरू की है, जिसके तहत गर्भावस्था के पहले तिमाही में सभी गर्भवती महिलाओं का एचपीएलसी परीक्षण किया जाता है। जो लोग थैलेसीमिया माइनर या सिकलसेल ट्रेट के लिए पॉजिटिव पाए जाते हैं, उनके जीवनसाथी का भी परीक्षण किया जाता है। यदि पति और पत्नी दोनों पॉजिटिव हैं तो 12 सप्ताह की गर्भावस्था में सीवीएस परीक्षण की सलाह दी जाती है। जिससे थैलेसीमिया मेजर और सिकलसेल रोग बच्चे के जन्म को रोका जा सके। आगे विदर्भ के सभी जिल्हों मे यह परियोजना सुरु की जाएगी ऐसा डॉ. रूघवानी ने कहा।
डॉ. विंकी रुघवानी ने इस बीमारी की जानकारी देते हुए कहा कि सिकलसेल एक अनुवांशिक और खतरनाक बीमारी है। यह अनुवांशिक रोग बौद्ध, तेली, महार, कुनबी और आदिवासी समुदाय में अधिक है। आमतौर पर यह रोग लगभग सभी समुदायों में किसी न किसी हद तक पाया जाता है। इस बीमारी से पीड़ित लोगों को भारत के कुछ हिस्सों में अधिक देखा जा सकता है। विदर्भ ऐसी ही एक जगह है। सिकलसेल रोग से पीड़ित रोगी को हाथ-पैर, पेट और पूरे शरीर में बार-बार दर्द होता है। इस बदन दर्द के लिए इन मरीजों को कई बार अस्पताल में भर्ती कराना पड़ता है। हीमोग्लोबिन का स्तर कम होने के कारण मरीजों को कभी-कभी रक्त चढ़ाना पड़ता है। इन रोगियों को जीवन भर हाइड्रोक्सीयूरिया, फोलिक एसिड और अन्य दवाएं लेनी पड़ती हैं। उन्हें अक्सर रक्त परीक्षण, सोनोग्राफी आदि से भी गुजरना पड़ता है। उम्र बढ़ने के साथ, रोगी रोग की जटिलताओं से पीड़ित होते हैं। सिकलसेल रोग का स्थायी इलाज बोन मैरो ट्रांसप्लांटेशन है जिसकी लागत लगभग 14 से 15 लाख है। बोन मैरो ट्रांसप्लांटेशन के लिए एचएलए मैच करवाना भी मुश्किल है। इसके अलावा पूरी प्रक्रिया बहुत जोखिम भरी है।
उन्होंने बचाव का जिक्र करते हुए कहा कि अगर सही तरीका अपनाया जाए तो इस बीमारी पर पूरी तरह से काबू पाया जा सकता है। यह रोग पूरी तरह से रोके जाने योग्य है। सिकलसेल रोग (एसएस पैटर्न) के बच्चे का जन्म तभी होता है जब उसके माता-पिता दोनों में सिकलसेल ट्रेट हो। सिकलसेल ट्रेट वाले व्यक्ति बिल्कुल सामान्य हैं। जब सिकलसेल ट्रेट वाले लड़के का विवाह सिकलसेल ट्रेट वाले लड़की से होता है तो सिकलसेल रोग वाले बच्चे के जन्म होने की संभावना होती है। इसलिए शादी से पहले लड़के और लड़कियों के लिए सिकलसेल ट्रेट का परीक्षण करवाना आवश्यक है। यह परीक्षण इस बीमारी को रोकने में काफी मददगार साबित हो सकता है।