रामटेक लोस : शिंदे,अजित,भाजपा – उद्धव,शरद,कांग्रेस सभी असमंजस में 

 – अबतक शिवसेना और कांग्रेस के मध्य सीधी भिड़ंत हुआ करती थी,सेना व एनसीपी में दो फाड़ होने के कारण समीकरण बिगड़ा  

नागपुर (रामटेक) :- रामटेक लोकसभा क्षेत्र वैसे कांग्रेस का गढ़ रहा है लेकिन पिछले 2 टर्म से भाजपा की मदद से शिवसेना का कब्ज़ा हैं.शिवसेना के साथ भाजपा तो कांग्रेस के साथ एनसीपी का क्रमशः युति व गठबंधन था.लेकिन पिछले साल शिवसेना फिर एनसीपी में फाड़ होने के बाद दोनों पक्षों का बड़ा धड़ा केंद्र में सत्ताधारी भाजपा के साथ मिल गया और राज्य में सत्ता-पलट का सत्ता हासिल कर लिए.नतीजा इस लोकसभा चुनाव में सम्पूर्ण राज्य के लोकसभा क्षेत्रों का परंपरागत समीकरण बदल गया,इसी क्रम में नागपुर जिले का रामटेक लोकसभा का भी समीकरण में बड़ा बदलाव आया.

रामटेक लोकसभा के सांसद मूल रूप से शिवसेना के है,लेकिन शिवसेना में फाड़ होने के बाद वे शिंदे सेना में आ गए,शिंदे सेना में रामटेक के निर्दलीय विधायक भी आ गए.लेकिन रामटेक लोकसभा क्षेत्र में भाजपा के 2 विधायक हैं.इसलिए भाजपा की सोच है कि इस बार क्यूंकि एनसीपी में भी फाड़ हो जाने के कारण भाजपा इस बार लोकसभा चुनाव में अपने पक्ष का उम्मीदवार उतारने के लिए मंथन कर रही है लेकिन सक्षम हिन्दू SC उम्मीदवार नहीं मिल रहा हैं.

शिंदे गुट के वर्त्तमान सांसद का 2 टर्म होने के बावजूद कोई उल्लेखनीय कार्यकाल नहीं रहा इसलिए भाजपा अपना पक्ष का आंकड़ा बढ़ाने के उद्देश्य से चिंतन-मनन कर रही हैं.

वहीं नागपुर शहर में भाजपा के पास हिन्दू SC कार्यकर्ता है,जैसे पूर्व महापौर राजेश तांबे,क्या इन पर भाजपा दाव खेल सकती है ?

समय पर भाजपा ने चाहा कि उसे ही रामटेक लोकसभा से अपना ही उम्मीदवार उतारना है तो वे नागपुर के पूर्व नगरसेवक मृतभाषी संदीप गवई पर सकारात्मक विचार कर सकती है,जिसके लिए देवेंद्र व नितिन दोनों सहमत हो सकते हैं ?

इसके अलावा भी कई दलित पदाधिकारी इच्छुक है,अपने अपने स्तर से सक्रिय है,देखें किसका राजयोग हैं !

मुकुल सा हो कांग्रेसी उम्मीदवार,वर्ना पुनः हार निश्चित

कांग्रेस के तथाकथित नेता नितिन-विलास-सतीश पुनः एक हो गए है,तीनों को अपने अपने उत्तराधिकारी के राजनितिक भविष्य की चिंता सता रही हैं.क्यूंकि तीनों के उत्तराधिकारी खुद के बल पर ग्रामसेवक,नगरसेवक,जिलापरिषद का चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे,इन्हें सीधा विधायक या सांसद बनने का ख्वाब सजाए हुए हैं.

दूसरी तरफ पूर्व विधायक सुनील के पास जिलापरिषद का कब्ज़ा हैं,उन्हें उक्त तीनों के उम्मीदवार नहीं चलते।इन्होने भी अपने गुट से पूर्व जिलापरिषद अध्यक्षा के लिए उम्मीदवारी मांगी हैं,इनके एक रिश्तेदार भी स्वयं को जिले का तथाकथित नेता मानते हुए उम्मीदवारी की इच्छा जाहिर कर चुके है,दूसरे रिश्तेदार रेत माफिया हैं.

तीसरा गुट मुकुल वासनिक का है,इनके पास कई जिलापरिषद सदस्य,जिला-प्रदेश स्तर के पदाधिकारी हैं,यह गुट भी केदार से दुरी बनाए हुए है.लेकिन खुद मुकुल वासनिक रामटेक से दोबारा चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे क्यूंकि उन्होंने अपने पहले टर्म में काफी अंदरूनी कलह देख ली थी,उसी के कारण दूसरी बार स्थानीय तथाकथित नेताओ ने मुकुल वासनिक को निपटा दिए.

ऐसे में उक्त तीन तीन गुट के मध्य तीनों को चलने वाला मुकुल स्तर का प्रभावी उम्मीदवार को कांग्रेस ने उम्मीदवारी देनी चाहिए,फिर चाहे वह महाराष्ट्र का हो या दिल्ली स्तर का

उल्लेखनीय यह है कि लोकल उम्मीदवार दिए तो गुटबाजी होगी या फिर सौदेबाजी।इस चक्कर में हार कांग्रेस की होगी,क्यूंकि कांग्रेस के जितने भी जिला स्तर के नेता है,वे अमूमन सभी भाजपा नेताओं के संपर्क में हैं या उनके बेहद करीबी।

बावजूद इसके तीनों गुटों के आपसी सहमति से उम्मीदवार तय हुआ तो इस बार उम्मीद की जा सकती है कि कांग्रेस उम्मीदवार संसद सदस्य बन सकता है,बशर्ते एनसीपी का पूर्ण साथ मिले।

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