75 वें वार्षिक निरंकारी संत समागम में दिया गया रुहानियत और इंसानियत का संदेश, मुंबई एवं महाराष्ट्र से हजारों श्रद्धालु भक्तों ने भाग लिया

हरियाणा :-  16 से 20 नवंबर के मध्य निरंकारी आध्यात्मिक स्थल, समालखा (हरियाणा) में आयोजित 75वां वार्षिक निरंकारी संत समागम स्वयं में दिव्यता एवं भव्यता की एक अनुठी मिसाल बना जिसमें देश-विदेशों से लाखों की संख्या में श्रद्धालु भक्तों ने सम्मिलीत होकर सत्गुरु के पावन दर्शन एवं अमृतमयी प्रवचनों का आनंद प्राप्त किया। मानवता का यह महाकुम्भ सम्पूर्ण निरंकारी मिशन के इतिहास में निश्चय ही एक मील का पत्थर रहा जो सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत बना।

रुहानियत और इंसानियत संग संग

इस वर्ष के समागम का मुख्य विषय रहा ‘रुहानियत और इंसानियत संग संग’। समागम स्थल की ओर जाते समय स्थान स्थान पर लगाये गये होर्डिंग्ज एवं बैनर्स में कोई भी समागम के इस बोध वाक्य को पढ़ सकता था। समागम के इस मुख्य विषय पर ही वक्ताओं ने अपने भावों को विभिन्न विधाओं के माध्यम द्वारा व्यक्त किया।

सत्गुरु माता सुदीक्षा महाराज ने रुहानियत एवं इन्सानियत के संदेश पर अपने आशीर्वचनों में कहा कि आध्यात्मिकता मनुष्य की आंतरिक अवस्था में परिवर्तन लाकर मानवता को सुंदर रूप प्रदान करती है। हृदय में जब इस परमपिता परमात्मा का निवास हो जाता है तब अज्ञान रूपी अंधःकार नष्ट हो जाता है और मन में व्याप्त समस्त दुर्भावनाओं का अंत हो जाता है। परमात्मा शाश्वत एवं सर्वत्र समाया हुआ है जिसकी दिव्य ज्योति निरंतर प्रज्ज्वलित होती रहती है। जब ब्रह्मज्ञानी भक्त अपने मन को परमात्मा के साथ इकमिक कर लेता है तब उस पर दुनियावी बातों का कोई प्रभाव नहीं पडता।

सत्गुरु माता ने कहा कि भक्ति करने के लिए उम्र की कोई सीमा नहीं होती यह किसी भी उम्र और अवस्था में की जा सकती है। वास्तविक रूप में भक्ति ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति के उपरान्त ही सम्भव है।

शांति एवं अमन के संदेश की महत्ता को समझाते हुए सत्गुरु माता ने कहा कि इन संदेशों को दूसरों को देने से पूर्व हमें स्वयं अपने जीवन में धारण करना होगा। किसी के प्रति मन में वैर, ईष्र्या का भाव न रखते हुए सबके प्रति सहनशीलता एवं नम्रता जैसे गुणों को अपनाते हुए सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत बनना होगा।

सत्गुरु माता ने अपने आशीर्वचनों में कहा कि ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति के उपरान्त जब संत विवेकपूर्ण जीवन जीते हैं तभी वास्तविक रूप में वह वंदनीय कहलाते हैं। फिर वह पूरे संसार के लिए उपयोगी सिद्ध हो जाते हैं। ऐसे संत महात्मा ब्रह्मज्ञान की दिव्य ज्योति का स्वरूप बन जाते हैं और अपने प्रकाशमय जीवन से समाज में व्याप्त भ्रम-भ्रांतियों के अंधकार से मुक्ति प्रदान करते हैं। ज्ञान के दिव्य चक्षु से संत महात्माओं को संसार का हर एक प्राणी उत्तम एवं श्रेष्ठ दिखाई देता है और समदृष्टि के भाव को अपनाते हुए हृदय में किसी के प्रति नकारात्मक भाव नहीं रखते।

सेवादल रैली

निरंकारी संत समागम के इतिहास में ऐसा प्रथम बार हुआ कि जब एक पूरा दिन सेवादल को समर्पित किया गया। समागम में आयोजित इस रंगारंग सेवादल रैली में प्रतिभागियों ने शारीरिक व्यायाम, खेलकूद, मानवीय मीनार एवं मल्लखंब जैसे करतब दिखाए। इसके अतिरिक्त वक्ताओें, गीतकारों एवं कवियों ने समागम के मुख्य विषय ‘रूहानियत एवं इन्सानियत’ पर आधारित विभिन्न कार्यक्रम प्रस्तुत किए जिसमें व्याख्यान, कवितायें, ‘सम्पूर्ण अवतार बाणी’ के पावन शब्दों का गायन, समूह गीत एवं लघुनाटिकाओं का सुंदर समावेश था।

सेवादल रैली में सम्मिलित हुए स्वयंसेवकों को अपना पावन आशीर्वाद प्रदान करते हुए सत्गुरु माता ने कहा कि सेवाभाव से युक्त होकर की गई सेवा ही वास्तविक रूप में सेवा कहलाती है। सेवा का अवसर केवल कृपा होती है, यह कोई अधिकार नहीं होता।

सत्गुरु माता सुदीक्षा महाराज गांधी ग्लोबल फैमिली द्वारा शांतिदूत सम्मान से विभूषित

समागम के दौरान 19 नवंबर को गांधी ग्लोबल फैमिली द्वारा निरंकारी सत्गुरु माता सुदीक्षा महाराज को शांतिदूत सम्मान से विभूषित किया गया। गांधी ग्लोबल फैमिली के अध्यक्ष पद्मभूषण गुलाम नबी आज़ाद ने मुख्य मंच पर विराजमान सत्गुरु माता को यह सम्मान प्रदान किया। इस अवसर पर उनके साथ संस्था के उपाध्यक्ष पद्मश्री डाॅ.एस.पी.वर्मा एवं सुप्रीम कोर्ट की पूर्व न्यायमूर्ति इंदिरा बैनर्जी उपस्थित थी। सम्मान प्रदान करने के उपरान्त अपने भाव व्यक्त करते हुए  गुलाम नबी आज़ाद ने कहा कि सत्गुरु माता सुदीक्षा महाराज की पावन छत्रछाया में इस दिव्य संत समागम में सम्मिलित हुए भक्तगण केवल प्रेम का संदेश देने हेतु एकत्रित हुए हैं।

विश्व शांतिदूत सम्मान के प्रति अपने भाव प्रकट करते हुए सत्गुरु माता सुदीक्षा ने अपने प्रवचनों में कहा कि यह उपलब्धि इन संतों की ही देन है जो इस एक प्रभु को जानकर एकत्व के सूत्र में बंध गए हैं।

बहुभाषीय कवि दरबार

निरंकारी संत समागम में एक मुख्य आकर्षण रहा बहुभाषीय कवि दरबार, जिसका शीर्षक था ‘रुहानियत और इंसानियत संग संग’। इस विषय पर आधारित बहुभाषीय कवि दरबार में देश विदेशों से आये हुए अनेक कवियों ने हिंदी, पंजाबी, उर्दू, हरियाणवी, मुलतानी, अंग्रेजी, मराठी एवं गुजराती भाषाओं के माध्यम से काव्यपाठ किया। सारगर्भित भावों से युक्त इन कविताओं की मंच पर हो रही सुंदर प्रस्तुति को देखकर श्रोताओं ने करतल ध्वनि से अपना आनंद व्यक्त करते हुए कवि दरबार की भरपूर प्रशंसा की। इसके अतिरिक्त समागम के हर दिन एक लघु कवि दरबार भी आयोजित किया गया जिसमें आध्यात्मिकता एवं मानवता के पहलुओं पर प्रकाश डाला गया।

स्वास्थ्य सेवा के प्रबंध

स्वास्थ्य सेवाओं के अंतर्गत समागम स्थल पर 5 एलोपैथिक और 4 होम्योपैथिक डिस्पेन्सरियां थी। इसके अतिरिक्त 14 प्राथमिक चिकित्सा केंद्र, 1 कायरोप्रैक्टिक चिकित्सा पद्धति शिविर तथा 4 एक्युप्रैशर/फिजियोथेरेपी सुविधा केन्द्र बनाये गए। समागम स्थल पर मंडल की ओर से 12 एवं हरियाणा सरकार की ओर से 20 एम्बुलैन्स की व्यवस्था की गई थी। इसके अतिरिक्त एक 100 बैड का अस्पताल भी जरुरतमंद भक्तों की सेवा कर रहा था।

सुरक्षा एवं यातायात व्यवस्था

संत समागम की सुरक्षा हेतु मिशन के सैंकड़ों सेवादार दिन-रात ट्रैफिक कंट्रोल की सेवाओं में कार्यरत रहे। समागम मे यातायात प्रबंधन के लिए प्रशासन एवं भारतीय रेलवे ने नियमित आवागमन की यात्रा हेतु दिल्ली के आनंद विहार, हजरत निजामुद्दीन व पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भक्तों को उचित सुविधाएं उपलब्ध करवाई। समागम स्थल के निकट भोड़वाल माजरी रेलवे स्टेशन पर आम दिनों में न रुकने वाली ट्रेनों को भी समागम के दिनों में रुकवाने की व्यवस्था रेलवे प्रशासन द्वारा की गई थी।

लंगर एवं कैन्टीन

समागम में आये हुए सभी श्रद्धालु भक्तों के लिए समागम स्थल के चारों मैदानों पर लंगर की उचित व्यवस्था की गई थी। इसके अतिरिक्त 22 कैन्टीनों का भी समुचित प्रबंध किया गया था जिसमें सभी भक्तों के लिए रियायती दरों पर चाय, काॅफी, शीतपेय एवं अन्य खाद्य सामग्रीयां उपलब्ध करवाई गई।

स्वच्छता के प्रबंध

समागम स्थल पर स्वच्छता का विशेष रूप से ध्यान दिया गया जिसमें लंगर को केवल स्टील की थालियों में ही परोसा गया तथा कैन्टीनों में भी चाय, काॅफी के लिए स्टील के कपों का इस्तेमाल किया गया ताकि वातावरण की शुद्धता एवं स्वच्छता को किसी प्रकार की कोई क्षति न पहुंचे और समागम का सुंदर स्वरूप बना रहे। कचरे का यथायोग्य निपटान करने हेतु भी समुचित प्रबंध किया गया।

निरंकारी प्रदर्शनी

निरंकारी संत समागम का एक मुख्य आकर्षण ‘निरंकारी प्रदर्शनी’ रहा। 1972 से यह प्रदर्शनी निरंकारी सन्त समागमों का अभिन्न अंग बनती आई है। इसमें मिशन के इतिहास, उसकी विचारधारा एवं समाजिक गतिविधियों को दर्शाया गया था। इस वर्ष यह प्रदर्शनी समागम का मुख्य आकर्षण बनी रही और समागम के दौरान हर दिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु भक्त इस प्रदर्शनी का अवलोकन करते रहे।

इस वर्ष प्रदर्शनी को छः मुख्य भागों में दर्शाया गया था एवं उसमें आधुनिक तकनिकी का बखुबी इस्तेमाल करके इसे अत्यंत प्रभावशाली बनाया गया था। इन छः भागों में एक मुख्य प्रदर्शनी थी जबकि अन्य भागों में स्टुडियो डिवाईन, बाल प्रदर्शनी, स्वास्थ्य एवं समाज कल्याण विभाग प्रदर्शनी, थिएटर और डिज़ाईन स्टुडियो इत्यादि का सुंदर समावेश था।

समागम के मुख्य विषय ‘रुहानियत और इन्सानियत संग संग’ के साथ साथ 75 समागमों का इतिहास इस वर्ष निरंकारी प्रदर्शनी में प्रभावशाली ढंग से दर्शाया गया था जिसे देखकर दर्शकों ने अति प्रसन्नता व्यक्त की।

समागम के समापन सत्र में समागम के समन्वयक जोगिंदर सुखिजा ने सत्गुरु माता सुदीक्षा महाराज एवं निरंकारी राजपिता रमित का हृदय से आभार प्रकट किया। इसके साथ ही सभी सरकारी विभागों एवं प्रशासन का हार्दिक धन्यवाद किया जिन्होंने समागम को सफल बनाने में अपना भरपूर योगदान दिया।

कायरोप्रैक्टिक शिविर

पिछले करीब 10 वर्षों से निरंकारी सन्त समागम में इस कायरोप्रैक्टिक शिविर का आयोजन किया जा रहा है जिसमें प्रतिदिन सैंकड़ों की संख्या में लोग उपचार करवाकर लाभान्वित होते आ रहे हैं। इस वर्ष इस शिविर में विभिन्न देशों से लगभग 55 डॉक्टरों की टीम अपनी निष्काम सेवाओं द्वारा लोगों का उपचार कर रही थी जिसमें कनाडा, यूएसए, आॅस्ट्रेलिया, फ्रांस, स्पेन, जर्मनी, चीन, ताईवान एवं स्विज़रलैन्ड इत्यादि देशों के विशेषज्ञ डॉक्टरों का समावेश है। इंडियन कायरोप्रैक्टिक असोसिएशन के अध्यक्ष माननीय जिम्मी नंदा ने इस शिविर में पिछले मिली सफलता पर अति प्रसन्नता व्यक्त की है। पूर्ण समागम के दौरान हजारों लोगों ने इस शिविर से लाभ प्राप्त किया। संत निरंकारी चैरिटेबल फाउंडेशन एवं सेवादल के क्रमशः 250 एवं 150 स्वयंसेवक इस शिविर में डाॅक्टरों की सहायता कर रहे थे।

 

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