– जांच समिति कागजों तक सीमित,सीनेट सदस्यों ने राज्यपाल से कुलगुरू को हटाने की मांग
चंद्रपुर :- गोंडवाना विश्वविद्यालय में रिक्त पदों की भर्ती हुई, जिसमें धांधली हुई। इस मामले को गंभीरता से लेते हुए पिछले वर्ष 20 नवंबर 2023 को हुई सीनेट की बैठक में तत्कालीन कुलगुरु ने उक्त मामले की जांच के लिए 4 सदस्यी जांच समिति की घोषणा की। लेकिन आज तक इस जांच समिति की एक भी बैठक नही हुई।
उक्त मामले को लेकर सीनेट सदस्य प्राध्यापक दिलीप चौधरी ने उक्त धांधली का पर्दाफाश किया। तत्कालीन कुलगुरु ने पद भर्ती प्रक्रिया के सदस्य सचिव डीन डॉक्टर अनिल चिताडे को ही जांच समिति में नियुक्त कर जांच में बाधा पहुंचाने की कोशिश की है,इस विवादास्पद नियुक्ति का अन्य सीनेट सदस्यों ने विरोध दर्ज करवाया। 14 मार्च 2024 को गोंडवाना विश्वविद्यालय का बजट पेश हुआ। इस बजट में अनावश्यक जरूरतों पर प्रावधान दर्शाया गया,जिसका सीनेट सदस्यों ने विरोध भी किया। पिछले वर्ष के बजट में विद्यार्थी विकास विभाग के लिए 725.15 लाख रुपए का प्रावधान किया गया परंतु मात्र 20.72 लाख रुपए ही खर्च किए गए।
ज्वलंत सवाल यह है कि पिछले आर्थिक वर्ष में विद्यार्थियों के हित में किए गए प्रावधानों का खर्च क्यों नहीं किया गया। इसलिए सीनेट सदस्यों ने वर्तमान बजट को अवास्तविक के बजाय वास्तविक बजट पेश करने की पुरजोर मांग की थी। बजट विद्यार्थी सह शिक्षण हित में होना चाहिए। विडंबना यह है कि सीनेट सदस्यों की विद्यार्थी विकास और कल्याण हित की मांग को बजट सभी/बैठक की अध्यक्षता कर रहे कुलगुरु प्रशांत बोकारे ने बदलाव करने के मामले को सिरे से नकार दिया। बोकारे के जवाब से क्षुब्ध होकर उपस्थित सीनेट सदस्य ने सीनेट की बैठक से उठ कर चले गए, इनमें अजय लोंढे,नीलेश बेलखेड़े,मिलिंद भगत,सतीश कन्नाके,दीपक धोपटे,प्रवीण होगी,विवेक शिंदे,संजय साबले, एन एस वाढवे आदि का समावेश था।
उल्लेखनीय यह है कि विश्वविद्यालय के सीनेट सभा का कामकाज महाराष्ट्र एकरूप परिणियम क्रमांक 4 के अनुसार किया जाता है। लेकिन इस नियम को नजरंदाज कर नियमित विश्वविद्यालय के कुलकुरु बोकारे नए नए नियम बताकर स्वार्थपूर्ति करते रहे है।
पिछले दीक्षांत समारोह के लिए 15 लाख रुपए का प्रावधान होने के बावजूद 1करोड़ 9 लाख रुपए खर्च किए गए। उक्त अवैध खर्च को सीनेट सभा की मान्यता नही होने की जानकारी मिली है। शासन की मान्यता न होने के बावजूद वित्त व लेखा अधिकारी की नियुक्ति की गई। इन्हे गैरकानूनी तरीके से 11.70 लाख रुपए का भुगतान किया गया। बाद में उक्त लेखा व वित्त अधिकारी से इस्तीफा लिया गया। उन्हें दिया गया एडवांस विपास नही लिया गया,जबकि पूर्ण जवाबदारी कुलगुरु की थी।
– राजीव रंजन कुशवाहा