नागपुर :- आगामी लोकसभा चुनाव के लिए कुछ ही दिनों में आचार संहिता लागू हो जाएगी. इसे देखते हुए राजनीतिक दलों ने तैयारी तेज कर दी है. पार्टी संगठन को मजबूत करने के साथ-साथ सभी पार्टियां शहर और गांव स्तर पर मतदाताओं तक अनुमान लगाया जा रहा है कि चुनाव आचार संहिता 1 मार्च को लागू हो जाएगी. इसलिए अप्रैल के पहले सप्ताह से चुनावी शंखनाद हो जाएगा. सूत्रों के मुताबिक लोकसभा चुनाव 4 से 7 चरणों में होने की उम्मीद है. यही वजह है कि चुनाव से कुछ महीने पहले पार्टियों के बीच होड़ शुरू हो गई है. राजनीतिक माहौल को गर्म करना शुरू कर दिया है. पिछले 10 सालों से सत्ता में रहने और अकेले दम पर देश पर राज करने वाली बीजेपी इस वक्त सबसे आगे है.
हमेशा चुनावी मोड में रहने वाली ये पार्टी हर वक्त राजनीतिक रणनीति बनाने में जुटी रहती है. इसलिए पार्टी ने लोकसभा चुनाव से पहले एक नए चुनाव कार्यक्रम की योजना बनाई है ताकि चुनाव से पहले पार्टी की छवि बदल सके और दिखाया जा सके कि बीजेपी कितनी अच्छी पार्टी है. भले ही पार्टी संगठनात्मक स्तर पर मजबूत है लेकिन जहां कहीं कमजोर है, वहां पहुंचने की तैयारी अभी से शुरू कर दी गई है. ‘चलो गांव की ओर’ का नया नारा भी दिया गया है.
इसकी तुलना में कांग्रेस का खोया हुआ आत्मविश्वास अभी तक लौटा नहीं है. कांग्रेस के साथ कौन सी पार्टी रहेगी यह भी तय नहीं हो पा रहा है. हालांकि बीजेपी की तुलना में कांग्रेस का शहरों के साथ-साथ गांवों में भी बड़ा आधार है. शहरी पार्टी की इस छवि को खत्म करने के लिए बीजेपी कड़ी मेहनत कर रही है. इसके विपरीत कांग्रेस को शहर के साथ-साथ गांव में भी अपना पुराना आधार फिर से स्थापित करने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही है. आज भी देश का सबसे बड़ा मतदाता गांव में है. इसलिए यह गांव का विश्वास हासिल करने और इसे स्थायी रूप से अपना बनाने के प्रयास में बीजेपी जुट गई है.
पहुंचने की जल्दी में है. फ्रंटल पॉलिटिक्स भी पक रही है. बीजेपी ने जोर-शोर से तैयारी शुरू कर दी है. शहर से सीधे गांव जाने का एक बड़ा कार्यक्रम बनाया गया. उधर कांग्रेस शहर में ही विवादों में घिरी हुई है. नेताओं के साथ-साथ कार्यकर्ताओं में भी आपसी मतभेद सामने आ रहे है.
कांग्रेस में विवाद हार को लेकर
कांग्रेस को दूरदर्शी नेताओं की खान कहा जाता था लेकिन पिछले दशक की हार ने नेताओं के बीच आत्मविश्वास को कम कर दिया है. तर्क-वितर्क और असहमति भी बढ़ी. अनुभवी नेता अभी भी पार्टी में हैं. युवाओं को वे अवसर नहीं मिलते, जो वे चाहते हैं. इसके साथ ही शहर व ग्रामीण स्तर पर पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं के बीच विवाद की धार बढ़ती जा रही है. यह विवाद कांग्रेस के लिए नुकसानदेह साबित हो रहा है.