सावनेर :- शहरके हिन्दी बाहुल क्षेत्र पुरातन हेमाडपंथी शिव मंदीर झंडा चौक परिसरमे हिंदी भाषीक लोधी, कीराड़, काछी, छीपा, ठाकुर, ब्राह्मण आदी समाज भाईयोने अपने पारंपरिक भुजलीया उत्सव उत्साह से मनाया.हिंदी श्रावण मास की समाप्ती व रक्षाबंधन के दुसरे दिवस यह भुजलीया उत्सव मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, बुंदेलखंड, मालवा, महाकौशल आदी क्षेत्रोके साथ साथ सभी हिंदी बाहुल क्षेत्रमे यह भुजलीया उत्सव बडे ही धुमधामसे मनाया जाता है.इस अवसर पर महीलाये पारंपरिक परिधान धारण कर घरो लगाई गयी भुजलीया बाजे गाजे के साथ मुख्य चौराहेपर एकत्रीत होकर सभी महिला पुरुष नदीके कीनारे पहुचकर भुजलीया की विधीवत पुजन कर वापस उसी स्थानपर पहुचकर महिलाये दो गुटोमे विभाजीत होकर पारंपरिक लोकगीतो के मधुर धुनोके साथ आपसी सौहार्दपूर्ण वातावरण मे भुजलीया खेली जाती है.पश्चात एक दुसरोको भुजलीया देकर आपसी भाईचारे के साथ साथ आपसी मनमुटाव दुर करणेका प्रयास कीया जाता है.
भुजलीया उत्सव का उल्लेख अनेक पौराणिक ग्रंथोमे भी मीलता है. आल्हा ग्रंथ नुसार आल्हा उदल की बहन चंदा विवाहके पश्चात जब पहले सावनमे अपने नैनीहाल आती है तो ग्रामवासी उनका स्वागत भुजलीया उत्सव मनाकर करने का उल्लेख है. तो वही घरोमे लगाई गयी भुजलीया का स्वरूप देखकर खेत खलीयानोमे लगाई गयी फसलोका अंदाजा लगाया जाता है.
भुजलीया उत्सव के सफलतार्थ सभी समाज बांधव,महीला, युवक, युवतीया अथक परिश्रम लेकर भुजलीया उत्सव परिसरको रंगोली, तोरण पताका आदीसे सुशोभित करते है
उत्साहसे मनाया भुजलीया उत्सव
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