परीक्षा, रिजल्ट में ही उलझ गये प्राध्यापक; विवि के पीजी विभागों को ऑटोनॉमस करने के बाद से नई दिक्कतें 

– 40 पीजी विभाग

– 243 प्राध्यापकों के पद मंजूर

– 50 फीसदी प्राध्यापकों के पद खाली

– 90 दिन बाद सेमेस्टर परीक्षा

नागपुर :- आरटीएम नागपुर विश्वविद्यालय ने पिछले वर्ष अपने सभी स्नातकोत्तर विभागों को ऑटोनॉमस का दर्जा दे दिया था.

इसके बाद से विभागों को पाठ्यक्रम अपग्रेड करने, परीक्षा लेने, मूल्यांकन करने के अधिकार मिल गये लेकिन पहले से ही मैन पॉवर की कमी से जूझ रहे स्नातकोत्तर विभागों के लिए अब सिरदर्द बढ़ने लगा है. अधिकांश समय परीक्षा लेने और परिणाम घोषित करने में ही जा रहा है. इतना ही नहीं, पढ़ाई के अलावा छात्रों की अन्य गतिविधियां भी बंद हो गई हैं.

अमरावती रोड स्थित कैम्पस में विवि के स्नातकोत्तर विभाग हैं. इसके अलावा अन्य हिस्सों में भी कुछ विभाग हैं. करीब 40 विभाग विवि द्वारा चलाये जाते हैं जहां स्नातकोत्तर सर्टिफिकेट और डिग्री प्रोग्राम चलाया जाता है. पिछले वर्ष विवि ने अपने सभी विभागों को स्वायत्त घोषित कर दिया था. इससे पहले विभागों की परीक्षा संलग्नित महाविद्यालयों के साथ ली जाती थी.

दरअसल स्वायत्तता देने का एकमात्र उद्देश्य गुणवत्ता को स्तरीय बनाना था लेकिन यह स्वायत्तता ऐसे वक्त दी गई जब विभागों में मैन पॉवर की कमी है. सभी विभागों में अब भी करीब 50 फीसदी प्राध्यापकों के पद खाली हैं. कुछ विभागों में तो एचओडी ही नहीं हैं. कुछ जगह केवल अंशकालीन प्राध्यापकों के भरोसे व्यवस्था चलाई जा रही है . लगभग सभी विभागों में अंशकालीन प्राध्यापक रखे गए हैं. विवि हर वर्ष अंशकालीन प्राध्यापकों पर करोड़ों रुपये खर्च करता है. वहीं ठेकेदारी पद्धति पर भी प्राध्यापकों को रखा गया है. ठेकेदारी प्राध्यापकों का कार्यकाल महज 11 माह का होता है. इसके बाद नई भर्ती की जाती है.

आधे से ज्यादा पद खाली

आरटीएम विवि के स्नातकोत्तर विभागों में प्राध्यापकों के 243 मंजूर पद हैं. इनमें करीब आधे से ज्याद पद अब भी खाली हैं. नियमानुसार सेमेस्टर पैटर्न में कोई भी एग्जाम 90 दिन के शैक्षणिक कामकाज के बाद लिया जाता है. विभाग अपनी परीक्षा खुद लेते हैं. इस हालत में प्राध्यापकों को ही पेपर सेट करना पड़ता है. परीक्षा होने के तुरंत बाद मूल्यांकन भी करना पड़ता है. इसके पश्चात 45 दिन के भीतर परिणाम घोषित करना होता है. यदि कोई छात्र अनुत्तीर्ण हो गया तो उसकी परीक्षा परिणाम के 15-20 दिन बाद ली जाती है. यानी प्राध्यापकों का अधिकांश समय इन्हीं गतिविधियों में चला जा रहा है. अनुसंधान सहित अन्य कार्यों में पिछड़ते जा रहे हैं. साथ ही सेमेस्टर पैटर्न होने से स्पोर्ट्स, कल्चरल सहित तमाम तरह की गतिविधियों के लिए भी समय नहीं मिलता. फिलहाल मौजूदा व्यवस्था व्यवस्था से प्राध्यापक भी नाराज हैं.

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