कठिन रहा है यह साल, अगला वर्ष भी होगा मुश्किल

नागपुर :- जब कोई कठिनाई भरा वर्ष समापन की ओर बढ़ता है तो लोग उम्मीद करते हैं कि आने वाले दिन बेहतर होंगे। परंतु लगता है आने वाला साल 2022 की तुलना में अधिक चुनौतीपूर्ण साबित होगा। इस वर्ष एक बड़ी समस्या यूक्रेन में अनसुलझा विवाद भी रहने वाला है। रूस और यूक्रेन के बीच जंगी हालात ने वैश्विक वृद्धि को बेपटरी कर दिया है। इसके चलते विकसित देशों में मुद्रास्फीति बढ़कर ऐसे स्तर पर पहुंच गई है जैसा कई दशकों में देखने को नहीं मिला था। इससे हाल के वर्षों में शुरू हुई अवैश्वीकरण की प्रक्रिया को और बल मिलेगा।

2023 में विश्व अर्थव्यवस्था की क्या स्थिति होगी यह काफी हद तक इस बात पर निर्भर करेगा कि यूक्रेन युद्ध का भविष्य क्या होता है? अब तक इस जंग के नतीजों और इसके चलने के समय को लेकर सभी अनुमान गलत साबित हुए हैं। फरवरी में विशेषज्ञों ने कहा था कि यह युद्ध कुछ सप्ताह में समाप्त हो सकता है क्योंकि रूस की सैन्य ताकत यूक्रेन से बहुत अधिक है।परंतु ऐसा नहीं हुआ।

रूस ने यूक्रेन की राजधानी कीव पर विशेष सैन्य हमले के साथ शुरुआत की। उसे लग रहा था कि यूक्रेन जल्दी हथियार डाल देगा। लेकिन यूक्रेन के प्रतिरोध के कारण रूस को पीछे लौटना पड़ा। नाटो ने यूक्रेन का समर्थन किया और उसे अरबों डॉलर की राशि के अलावा सैन्य और वित्तीय मदद दी।

पश्चिम ने रूस पर जमकर प्रतिबंध लगाए। पश्चिमी दुनिया के जानकारों ने कहा कि रूस की अक्षम सेना को शर्मनाक हार का सामना करना होगा, प्रतिबंधों के कारण रूस की अर्थव्यवस्था का पतन हो जाएगा और रूस में व्याप्त असंतोष के कारण व्लादीमिर पुतिन को हटना होगा।

ये जानकार एक बार फिर गलत साबित हुए। शुरुआती झटकों के बाद रूसी सेना ने कदम पीछे खींच लिए और डॉनबास इलाके के चार प्रांतों की आजादी पर ध्यान केंद्रित कर दिया। इन प्रांतों को बाद में रूस में मिला लिया गया। पुतिन सत्ता में बने हुए हैं। रूस की अर्थव्यवस्था भी प्रतिबंधों का अपेक्षाकृत मजबूती से सामना करने में कामयाब रही। अगर दुनिया की शीर्ष खुफिया एजेंसियां, रणनीतिक विश्लेषक और पत्रकार इतने गलत साबित हुए तो सवाल यह है कि क्या विशेषज्ञ किसी काम के हैं भी? यूक्रेन में छिड़े संघर्ष ने विश्व अर्थव्यवस्था पर गहरा असर डाला।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ का अनुमान है कि 2022 में वैश्विक वृद्धि की दर 3.2 फीसदी रहेगी जो 2021 के 6 फीसदी से काफी कम है। 2023 में वैश्विक वृद्धि के लिए उसने 2.7 फीसदी का लक्ष्य रखा है। वैश्विक वित्तीय संकट और कोविड-19 महामारी को छोड़ दें तो यह 2001 के बाद सबसे धीमी वृद्धि होगी।

भारत भी इन बातों से बेअसर नहीं रह सकता। विश्लेषक 2022-23 के वृद्धि अनुमानों को संशोधित करके सुधार रहे हैं जबकि 2023-24 के लिए इनमें कमी की गई है। यूक्रेन में संघर्ष छिड़ने के पहले भारत 2022-23 में 8 फीसदी की घरेलू सकल विकास दर हासिल करने की दिशा में बढ़ रहा था लेकिन अब यह 6.5-7 फीसदी तक सीमित रह सकता है।

वित्त वर्ष 2023-24 में वृद्धि दर 5-6 फीसदी के दायरे में रह सकती है या इससे कम। यह वित्त मंत्री के लिए सरदर्द बन सकता है क्योंकि वह आने वाले वर्ष का बजट बना रही हैं। आईएमएफ ने अक्टूबर 2022 में जो अनुमान जताया था उसमें कहा गया था कि यूक्रेन विवाद बढ़ेगा नहीं। अब जबकि हम नए साल की ओर बढ़ रहे हैं तो यह संघर्ष चरम पर है।

रूस ने जब यूक्रेन के दक्षिणी शहर खेरसान से दूरी बनाई तो पश्चिमी थिंक टैंक यूक्रेन को लेकर सकारात्मक बातें करने लगे। उन्होंने कहा कि यूक्रेन अब आगे बढ़कर अपने उन प्रांतों को दोबारा हासिल कर सकता है जो रूस ने उससे छीन लिए थे। कहा यह भी गया कि यूक्रेन क्राइमिया पर भी कब्जा कर सकता है जो रूस के लिए रणनीतिक दृष्टि से बहुत अहम है। स्वतंत्र विश्लेषकों ने, जिनमें से कई का सैन्य और खुफिया अतीत रहा है, उन्होंने तत्काल इन बातों को खारिज कर दिया।

उन्होंने कहा कि पांच लाख सैनिकों के साथ रूस कहीं अधिक तगड़ा हमला करने की स्थिति में है। रूस की मिसाइलें और ड्रोन हमलों ने यूक्रेन की आधी से अधिक बिजली क्षमताओं को बंद कर दिया है। यूक्रेन को बातचीत पर विवश करने में नाकाम रहने के बाद पुतिन अब तब तक शांत नहीं होंगे जब तक कि वह यूक्रेन को सैनिक दृष्टि से तबाह नहीं कर देते। असली खतरा यह है कि नाटो रूस की निर्णायक जीत हजम नहीं कर पाएगा। शायद वह अप्रत्यक्ष हस्तक्षेप करने का प्रयास करे।

तब यह लड़ाई अलग स्तर पर पहुंच जाएगी। तीसरी आशंका जो अमेरिकी खुफिया विभाग के निदेशक ने भी जताई है वह यह है कि शायद लड़ाई बेनतीजा रहे और 2023 में भी चलती रहे। अगर लड़ाई तेज होती है या लंबी खिंचती है यह विश्व अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा संकेत नहीं होगा। गैस की महंगाई यूरोप को प्रभावित कर रही है।

अब ऐसा लगता है कि तेल कीमतों के 85 डॉलर प्रति बैरल तक घटने के बाद अब इनमें भी इजाफा होगा। इस सप्ताह यूरोपीय संघ और जी7 ने रूसी कच्चे तेल पर 60 डॉलर प्रति बैरल की सीमा तय कर दी। इन देशों की नौवहन और बीमा कंपनियों को इससे महंगी दर पर रूसी कच्चे तेल को ढोने से मना किया गया है।

रूस ने कहा है कि वह उन देशों को आपूर्ति नहीं करेगा जो मूल्य सीमा पर नियंत्रण को मानेंगे। अगर रूस की तेल आपूर्ति बाजार में कम हुई तो कीमतें बढ़ेंगी। यह विश्व अर्थव्यवस्था को एक और झटका होगा। यूक्रेन में छिड़े संघर्ष में काफी कुछ दांव पर लगा हुआ है। यह मामला केवल पश्चिम और रूस का नहीं है। दुनिया की दूसरी सबसे ताकतवर सेना वाला रूस और दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था यानी चीन मिलकर अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के उन नियमों को नए सिरे से लिखने की कोशिश में हैं जो पश्चिम के पक्ष में झुके हुए हैं।

रूस और चीन दोनों पश्चिम से दूरी और शेष विश्व से करीबी पसंद करेंगे। गैर डॉलर कारोबार तथा वैकल्पिक भुगतान व्यवस्था की बात जोरों पर है। रूस अब पश्चिम के साथ अस्तित्व के संघर्ष में है। एक नई विश्व व्यवस्था उत्पत्ति की ओर है। आने वाले दिनों में दुनिया को इस संघर्ष की वजह से अभी और दुख झेलने होंगे।

 

 

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