फ्री जेनेटिक डिजिटल ब्लड मैच ऐप से होगी थैलेसीमिया व सिकलसेल रोग की रोकथाम – डॉ. विंकी रूघवानी

8 मई विश्व थैलेसीमिया दिवस

नागपूर :- हाल ही में थैलेसीमिया एंड सिकलसेल सोसाइटी ऑफ इंडिया द्वारा एक नए इनोवेशन के रूप में फ्री जेनेटिक डिजिटल ब्लड मैच ऐप लाया गया है जिसका उद्घाटन आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत के हाथों किया गया। यह ऐप देश में थैलेसीमिया और सिकलसेल रोग के प्रति जागरूकता, परामर्श और रोकथाम में मदद करेगा। यह ऐप थैलेसीमिया मेजर और सिकलसेल रोग से पीड़ित बच्चे के जन्म को रोकने में मददगार सिद्ध होगा।

थैलेसीमिया मेजर एक गंभीर और अनुवांशिक बीमारी है। इस बीमारी से पीड़ित बच्चे या मरीज को जीवन भर रक्त देने की जरूरत पड़ती है। शुरुआत में महीने में एक बार और धीरे-धीरे जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, ब्लड की जरूरत भी बढ़ती जाती है। बड़े बच्चों और वयस्क मरीजों को भी एक माह में चार यूनिट ब्लड देना पड़ता है। उन्हें ब्लड के अलावा कई महंगे टेस्ट से भी गुजरना पड़ता है। महंगी दवाएं भी लेनी पड़ती हैं। इस बीमारी का एक ही स्थायी और स्थायी इलाज है वो है बोन मैरो ट्रांसप्लांटेशन जो बहुत महंगा है। इसकी कीमत करीब 15 लाख रुपए है और साथ ही इसमें रिस्क भी है। हम कल्पना कर सकते हैं कि जिस परिवार में थैलेसीमिया मेजर का बच्चा होगा उस परिवार के सदस्यों की मानसिक स्थिति और आर्थिक स्थिति कैसी होगी। इसलिए यह आवश्यक है कि हमारे परिवार, समुदाय और हमारे देश में ऐसे बच्चे और रोगी पैदा न हों और यह संभव है क्योंकि थैलेसीमिया मेजर पूर्ण रूप से रोका जा सकता है। थैलेसीमिया मेजर वाला बच्चा तभी पैदा होता है जब उसके माता-पिता दोनों थैलेसीमिया माइनर हों। थैलेसीमिया माइनर पूरी तरह से सामान्य व्यक्ति होता है, लेकिन जब एक थैलेसीमिया माइनर पुरुष थैलेसीमिया माइनर महिला से शादी कर लेता है तो उनकी संतान को थैलेसीमिया मेजर जैसी घातक बीमारी हो जाती है। जिसे जीवन भर कष्ट सहना पड़े। इसलिए जरूरी है कि हर लड़के और लड़की को शादी से पहले थैलेसीमिया माइनर की जांच जरूर करानी चाहिए ताकि उनके घर में थैलेसीमिया मेजर का बच्चा पैदा न हो।

थैलेसीमिया एंड सिकलसेल सोसाइटी ऑफ इंडिया, सिकलसेल और थैलेसीमिया रोगियों के कल्याण और देश में विशेष रूप से भारत के मध्य भाग में इस बीमारी की रोकथाम के लिए 23 से अधिक वर्षों से काम कर रही है, जिससे हजारों परिवारों को लाभ हो रहा है। डॉ. विंकी रूघवानी इस संस्था के संस्थापक अध्यक्ष हैं। संस्था में चिकित्सक व सामाजिक कार्यकर्ताओ का समाविष्ट है। संस्था ने नागपुर (महाराष्ट्र) में सभी आधुनिक तकनीकों के साथ सिकलसेल और थैलेसीमिया बच्चों के लिए एक केंद्र की स्थापना की। सिकलसेल और थैलेसीमिया मेजर डिजीज से पीड़ित बच्चों को मुफ्त चिकित्सा सेवा, मुफ्त परामर्श, मुफ्त दवाएं (जरूरतमंद और गरीब मरीजों को) और मुफ्त ब्लड ट्रांसफ्यूजन की सुविधा दी जाती है। महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और कई अन्य राज्यों के मरीज केंद्र में उपलब्ध सुविधाओं का उपयोग करते हैं। कोविड-19 महामारी के दौरान स्वैच्छिक रक्तदान शिविरों की कमी के कारण सिकलसेल एवं थैलेसीमिया के मरीजों को रक्त नहीं मिल पा रहा था। थैलेसीमिया एंड सिकलसेल सोसाइटी ऑफ इंडिया के प्रयासों और संघर्ष के कारण भारत के मध्य भाग में महामारी के दौरान विभिन्न रक्तदान शिविर आयोजित किए गए और ब्लड ट्रांसफ्यूजन की प्रतीक्षा कर रहे इन रोगियों की मदद की गई, जिसकी स्टेट ब्लड ट्रांसफ्यूजन कौंसिल, महाराष्ट्र सरकार द्वारा प्रशंसा पत्र जारी किया गया। संस्था के अथक प्रयासों से सिकलसेल और थैलेसीमिया रोग को विकलांग व्यक्तियों की सूची में शामिल किया गया। संस्था ने केंद्र सरकार के साथ (सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री के माध्यम से), (महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के माध्यम से) मामले को आगे बढ़ाया। सिकलसेल और थैलेसीमिया रोगियों को शिक्षा में 5% आरक्षण का लाभ प्राप्त हुआ। संस्था के प्रयासों से 50 से अधिक बच्चों का बोन मेरो ट्रांसप्लानटेशन निशुल्क कराया गया। संस्था द्वारा महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ व अन्य राज्यों में रोकथाम शिबिरो का आयोजन किया गया जिसमे ५५००० युवक युवतियों का परीक्षण किया गया।

खुशनसीब हैं वो परिवार जिनका बच्चा थैलेसीमिया से पीड़ित नहीं है। मध्य भारत में ऐसे कई बच्चे हैं जिन्हें नियमित रूप से रक्त चढ़ाने की आवश्यकता होती है। वर्ष में कम से कम एक बार रक्तदान करके दुर्भाग्यशाली लोगों की उनकी दुर्दशा को साझा करें ताकि उनके बच्चों को जीवित रखा जा सके क्योंकि भगवान उन्हें अगले दिन सूरज उगते हुए देखना चाहते हैं।

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