नागपूर :-जिला परिषद की 513 शालाओं को सोलर बिजली से युक्त करने और 250 शालाओं को डिजिटलाइजेशन करने के लिए खनिज निधि से करीब 17 करोड़ रुपये जिला परिषद को मिले थे लेकिन जिप के पूर्व पदाधिकारियों द्वारा की गई लेटलतीफी और राज्य में सत्ता के बदलते ही डीपीसी व खनिज निधि के सारे प्रस्तावित विकास कार्यों पर स्टे लगा देने के चलते काम ही लटक गया.
परिणाम यह हुआ कि अब 11.10 करोड़ रुपयों के करीब निधि खर्च नहीं हो पायी और उसे सरकारी खजाने में लौटाने की नौबत आ गई है. जिलाधिकारी ने अखर्चित खनिज निधि मेडा को लौटाने का पत्र जिप शिक्षा विभाग को दिया है और निधि लौटाने की प्रक्रिया चल रही है. हालांकि विभाग के अधिकारी का कहना है कि उक्त लौटाई जा रही निधि मेडा को नये प्रस्ताव भेजकर वापस मिलेंगे लेकिन शालाओं के डिजिटलाइजेशन व सोलर पैनल लगाने का कार्य अब लंबे से लटक गए हैं.
ऐसे मिली थी निधि
बताते चलें कि तत्कालीन पालक मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले ने जिप की सभी शालाओं की बिजली समस्या को स्थायी तौर पर खत्म करने के लिए सोलर पैनल लगाने का कार्य शुरू किया था. उन्होंने खनिज निधि से 7.18 करोड़ रुपये मंजूर किये थे. पहले चरण में डीपीसी फंड से 287 शालाओं में मेडा के माध्यम से उक्त प्रकल्प सफलतापूर्वक पूरा किया गया. उसके बाद खनिज निधि से जो 7.18 करोड़ मंजूर किया उससे और 720 शालाओं में पैनल लगाने थे. तब 2.93 करोड़ रुपये जिप को दिये गये थे. उसके बाद डिजिटलाइजेशन के लिए वर्ष 2017 बावनकुले ने 8 करोड़ रुपये मंजूर किये और पूरी निधि जिप को प्राप्त हो गई थी. उससे 250 शालाओं का डिजिटलाइजेशन होना था. जिप ने दो बार निविदा प्रस्ताव तैयार किया लेकिन सरकार ने नकार दिया. उसके बाद सरकार ने जिप को अपने स्तर पर प्रक्रिया करने का निर्देश दिया था लेकिन तब के तत्कालीन पदाधिकारियों ने अपना स्वार्थ साधने के लिए लेटलतीफी कर दी.
सारी निधि वापस मांगी
अब जब जिलाधिकारी ने अखर्चित निधि लौटाने का पत्र दिया है तो जिप ने मेडा को दी गई 2.72 करोड़ की निधि वापस मांगी है. इसके साथ ही डिजिटलाइजेशन के लिए मिले 8 करोड़ रुपये भी लौटाना होगा. अधिकारी के अनुसार करीब 11.10 करोड़ की निधि इसमें से जल्द ही वापस लौटाया जाएगा. उन्होंने बताया कि भविष्य में उपरोक्त सभी कार्यों के लिए नये सिरे से प्रस्ताव मंगवा कर निधि दी जा सकती है लेकिन हकीकत यह है कि सरकार से निधि लाना टेढ़ी खीर होता है और यहां प्राप्त निधि समय पर खर्च नहीं किये जाने के चलते लौटाने की नौबत आ गई है. इसके लिए पूर्व पदाधिकारियों के साथ ही अधिकारियों को भी जिम्मेदार समझा जा रहा है.