१८ दिसंबर दत्त जयंती के उपलक्ष पर भगवान श्री दत्तात्रय के विषय मे अध्यात्मिक जानकारी लेख

श्री दत्तजयंती

१. दत्त

 मार्गशीर्ष पूर्णिमाके दिन मृग नक्षत्रपर सायंकाल भगवान दत्तात्रेयका जन्म हुआ, इसलिए इस दिन भगवान दत्तात्रेयका जन्मोत्सव सर्व दत्तक्षेत्रोंमें मनाया जाता है ।

 २. दत्तजयंतीका महत्त्व

दत्तजयंतीपर दत्ततत्त्व पृथ्वीपर सदाकी तुलनामें १००० गुना अधिक कार्यरत रहता है । इस दिन दत्तकी भक्तिभावसे नामजपादि उपासना करनेपर दत्ततत्त्व का अधिकाधिक लाभ मिलनेमें सहायता होती है ।

 ३. जन्मोत्सव मनाना

दत्तजयंती मनाने संबंधी शास्त्रोक्त विशिष्ट विधि नहीं पाई जाती । इस उत्सवसे सात दिन पूर्व गुरुचरित्रका पारायण करनेका विधान है । इसीको गुरुचरित्रसप्ताह कहते हैं । भजन, पूजन एवं विशेषतः कीर्तन इत्यादि भक्तिके प्रकार प्रचलित हैं । महाराष्ट्रमें उदुंबर (गूलर), नरसोबाकी वाडी, गाणगापुर इत्यादि दत्तक्षेत्रोंमें इस उत्सवका विशेष महत्त्व है । तमिलनाडुमें भी दत्तजयंतीकी प्रथा है । कुछ ब्राह्मण परिवारोंमें इस उत्सवके निमित्त दत्तनवरात्रिका पालन किया जाता है एवं उसका प्रारंभ मार्गशीर्ष शुक्ल अष्टमीसे होता है ।

 ४. दत्तजयंतीपर अनुभूति होना

दत्तजयंतीपर दत्तका भावपूर्वक पूजन करनेसे कैसी अनुभूतियां होती हैं, उसका एक उदाहरण आगे दिया है ।

५. दत्तयाग

इसमें पवमान पंचसूक्तके पुरश्चरण (जप) एवं उसके दशांशसे अथवा तृतीयांशसे घृत (घी) एवं तिलसे हवन करते हैं । कुछ स्थानोंपर पंचसूक्तके स्थानपर दत्तगायत्रीका जप एवं हवन करते हैं । दत्तयागके लिए किए जानेवाले जपकी संख्या निश्चित नहीं है । स्थानीय पुरोहितोंके परामर्श अनुसार जप एवं हवन किया जाता है ।

६. भगवान दत्तात्रेयकी उपासनाके अंतर्गतकुछ नित्यके कृत्योंके विषयमें ईश्वरसे प्राप्त ज्ञान

प्रत्येक देवताका विशिष्ठ उपासनाशास्त्र है । इसका अर्थ है कि प्रत्येक देवताकी उपासनाके अंतर्गत प्रत्येक कृत्य विशिष्ट प्रकारसे करनेका शास्त्राधार है । ऐसे कृत्यके कारण ही उस देवताके तत्त्वका अधिकाधिक लाभ होनेमें सहायता होती है । दत्त उपासनाके अंतर्गत नित्यके कुछ कृत्य निश्चितरूपसे किस प्रकार करने चाहिए, इस संदर्भमें सनातनके साधकोंको ईश्वरसे प्राप्त ज्ञान यहां प्रस्तुत सारणीमें दिया है । ये और ऐसे विविध कृत्योंका शास्त्राधार सनातन-निर्मित ग्रंथमाला ‘धर्मशास्त्र ऐसे क्यों कहता है ?’ में दिया है ।

उपासनाका कृत्य कृत्यविषयक ईश्वरद्वारा प्राप्त ज्ञान
१. दत्तपूजनसे पूर्व उपासक स्वयंको कौनसा तिलक कैसे लगाए ? श्रीविष्णुसमान खडी दो रेखाओंका तिलक लगाए ।
२. दत्तको चंदन किस उंगलीसे लगाएं ? अनामिकासे
३. पुष्प चढाना
अ. कौनसे पुष्प चढाएं ?
आ. संख्या कितनी हो ?
इ. पुष्प चढानेकी पद्धति क्या हो ?
ई. पुष्प कौनसे आकारमें चढाएं ?
जाही एवं रजनीगंधा
सात अथवा सात गुना
पुष्पोंका डंठल देवताकी ओर कर चढाएं ।
चतुष्कोणी आकारमें
४. उदबत्तीसे आरती उतारना
अ. तारक उपासनाके लिए
किस सुगंधकी उदबत्ती ?
चंदन, केवडा, चमेली, जाही एवं अंबर
४ आ. मारक उपासनाके लिए किस सुगंधकी उदबत्ती ? हीना
४ इ. संख्या कितनी हो ? दो
४ ई. उतारनेकी पद्धति क्या हो ? दाएं हाथकी तर्जनी एवं अंगूठेके बीच पकडकर घडीकी सुइयोंकी दिशामें तीन-बार पूर्ण गोलाकार घुमाकर उतारें ।
५. इतर (इत्र) किस सुगंधकी अर्पण करें ? खस
६. दत्तकी न्यूनतम कितनी परिक्रमाएं करें ? सात

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