व्यंग्य : आपके अवलोकनार्थ, प्रतिक्रिया की अभिलाषा

“ऑमिक्रोन जुकाम” – डॉ. प्रवीण डबली

“जुकाम” कई तरह के होते हैं। मौसमी जुकाम हर मौसम में अपना असर दिखाता है। सीधे-साधे आदमी के नाक भी सीधी नहीं रह पाती। जुकाम और खांसी में जुगलबंदी चल रही होती है। लेकिन इस बार तो जुकाम का रंग कुछ अलग राग गा रहा है। अब तो लोग खांसी और जुकाम के नाम से डरने लगे है। जिसे जुकाम या खासी है वह भी छुपा रहा है। लोग भी दूर भाग रहे है। अपने ही अपनों को ‘ कोरोना वायरस ‘ के रूप में दिखाई दे रहे है। मन में डर है की खासा तो कहीं “ऑमिक्रोन का जुकाम” तो नहीं ऐसा लोग न समझ ले! लोग भी ऐसे लोगो को पकड़ कर सरकारी तबेले में भेज रहे है।

खांसी – जुकाम का डर इतना था जिसने पूरी दुनिया को लॉक डॉउन कर दिया था। अपने ही देश में ट्रेन, बस, विमान चलना बंद के आदेश देने पड़े थे। लोगों को डर ने घर में कैद कर दिया था..बच्चे बूढ़े..बाहर नो एंट्री!

बहरहाल, जुकाम व खांसी की एक संस्कृति होती है, जब होती है, तो होती चली जाती है। जुकाम से जुकाम होता चला जाता है।खांसी से खांसी, वैसे ही आज कल “ऑमिक्रोन से ऑमिक्रोन” होते चले जा रहा है। गुलजार घर भी खांसी- जुकाम से सराबोर हो रहा है। साधे जुकाम में रुमाल कि खपत बढ़ जाती हैं , लेकिन “ऑमिक्रोन जुकाम” में मास्क की खपत बढ़ गई…सड़कों पर मास्क की दुकानें सज गई।

बहरहाल, कहीं सूखा जुकाम, तो कहीं गीला होता है। इसमें कोई जड़ी बूटी भी काम नहीं आ रही है। इस प्रकार की अनैसर्गिक जुकाम में आजकल राजनीतिक – सामाजिक जुकाम भी शामिल हो गया है।

जुकाम का असर साफ दिख रहा है। बहुदलीय व बहु विचारधारा की सरकार बनने पर सत्ता का जुकाम पाले है। तो सत्ता से दूर होने वाले खिसियाई जुकाम पाले है।
इधर “देवू” व “ऊधू” दोनों ही आधी रात में “जुकाम” की तकलीफ़ से उठ बैठते है। उन्हें इन दिनों बुरे – बुरे सपने आ रहे है। जो मिलता है वो कहता है कुछ लेते क्यों नहीं? अब बेचारे ये क्या – क्या लें? रोज इतने सारे रिस्क तो ले ही रहे है।

इन दिनों लग रहा है पूरी कैबिनेट को ही जुकाम हो गया हो गया है। सब अपनी अपनी तरह से खास रहे हैं। विरोधी भी खासने में पीछे नहीं है। उनके रोज आ रहे वक्तव्य अलग अलग तरह की खांसी ही है। खांसी के डर ने राजनीतिक हलचल तेज कर दी है। राजा को कुर्सी का डर सताने लगा है। राजा को जुकाम तो राजा ने प्रजा के जुकाम की चिंता में सोमरस रूपी चवनप्राश ही प्रजा के लिए खोल दिया। “ऑमिक्रोन जुकाम” भी सरकार की लंबी योजनाओं कि तरह लंबा खींच रहा हैं। राजा सहित पूरा मंत्रिमंडल ही परेशान है। किसी को उसका तोड़ नहीं मिल रहा है। वैसे भी यह नैसर्गिक नहीं है। होता तो कुछ दिनों में वीरगति को प्राप्त हो जाता। लेकिन लगता है ये अपने साथ सरकार को भी ले जाएगा!

वैसे “ऑमिक्रोन जुकाम” से घबराना नहीं चाहिए। अब यह राष्ट्रीय नहीं तो अंतरराष्ट्रीय रोग बन गया है। पूरा विश्व इसकी चपेट में हैं। एक को होता है, दूसरे को होता है, तीसरे को होता है फिर पूरे परिवार को… आगे संबंधी व मित्र परिवार को होते हुए पूरे देश में अपने पैर जमा रहा है। कहीं ये आपको तो नहीं…नहीं तो सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखो…”ऑमिक्रोन जुकाम” को दूर रखो!

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