कान्स में भारत का ऐतिहासिक प्रदर्शन- पायल कपाड़िया ने अपनी फिल्म ‘ऑल वी इमेजिन एज लाइट’ के लिए ग्रांड प्रिक्स पुरस्कार जीता

– “सनफ्लावर्स वेयर द फर्स्ट वन्स टू नो” – एफटीआईआई के अंतिम वर्ष के छात्र चिदानंद एस नाइक (निदेशक) की फिल्म को ‘ला सिनेफ’ पुरस्कार मिला

– ‘ऑल वी इमेजिन ऐज़ लाइट’- भारत-फ्रांस सह-निर्माण ने कान्स में इतिहास रचा

– एफटीआईआई के पूर्व छात्र संतोष सिवन, पायल कपाड़िया, मैसम अली, चिदानंद एस नाइक सहित अन्य ने कान्स में अपनी चमक बिखेरी

नवी दिल्ली :- 77वें कान्स फिल्म फेस्टिवल में भारत का प्रदर्शन अभूतपूर्व रहा है तथा 2 फिल्म निर्माता, एक अभिनेत्री और एक सिनेमैटोग्राफर दुनिया के अग्रणी फिल्म महोत्सव में शीर्ष पुरस्कार विजेता बने हैं। एक प्रतिष्ठित फिल्म उद्योग के साथ सबसे बड़े फिल्म निर्माता राष्ट्रों में से एक के रूप में, भारतीय फिल्म निर्माताओं ने इस वर्ष के कान्स में काफी प्रशंसा अर्जित की है।

30 वर्षों में पहली बार, एक भारतीय फिल्म, पायल कपाड़िया की ‘ऑल वी इमेजिन ऐज़ लाइट’, जो दो नर्सों के जीवन पर केंद्रित है, को महोत्सव में सर्वोच्च पुरस्कार, पाल्मे डी’ओर के लिए नामांकित किया गया था। कपाड़िया की फिल्म ने ग्रांड प्रिक्स श्रेणी में दूसरा स्थान हासिल किया। इस जीत के साथ एफटीआईआई की पूर्व छात्रा पायल कपाड़िया यह प्रतिष्ठित पुरस्कार पाने वाली पहली भारतीय बन गईं हैं। यह अवसर 30 वर्षों के बाद आया है, जब शाजी एन करुण की ‘स्वहम’ ने सर्वोच्च सम्मान के लिए प्रतिस्पर्धा की थी।

पायल की फिल्‍म को भारत और फ्रांस के बीच हस्ताक्षरित ऑडियो-विज़ुअल संधि के अंतर्गत, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने आधिकारिक इंडो-फ़्रेंच सह-उत्पादन का दर्जा दिया था। महाराष्ट्र (रत्नागिरी और मुंबई) में मंत्रालय ने भी फिल्म की शूटिंग की अनुमति दे दी थी। फिल्म को आधिकारिक सह-उत्पादन के लिए भारत सरकार की प्रोत्साहन योजना के तहत योग्यता सह-उत्पादन व्यय के 30 प्रतिशत की अंतरिम मंजूरी प्राप्‍त हुई।

फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के छात्र चिदानंद एस नाइक ने कन्नड़ लोककथा पर आधारित 15 मिनट की लघु फिल्म “सनफ्लॉवर्स आर द फर्स्ट वन्स टू नो” के लिए ला सिनेफ सेक्शन में पहला पुरस्कार जीता। यह एफटीआईआई फिल्म एफटीआईआई के टीवी विंग के एक साल के कार्यक्रम का निर्माण है, जहां विभिन्न विषयों यानी निर्देशन, इलेक्ट्रॉनिक सिनेमैटोग्राफी, संपादन, ध्वनि के चार छात्रों ने साल के अंत में समन्वित अभ्यास के रूप में एक परियोजना के लिए एक साथ काम किया। 2022 में एफटीआईआई से जुड़ने से पहले, चिदानंद एस नाइक को 53वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) में 75 क्रिएटिव माइंड्स में से एक के रूप में भी चुना गया था, जो सिनेमा के क्षेत्र में उभरते युवा कलाकारों को पहचानने और सहयोग करने के लिए सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की एक पहल थी। इस बात की भी चर्चा करना जरूरी है कि भारत में जन्मी मानसी माहेश्वरी की एक एनिमेटेड फिल्म बनीहुड, ने ला सिनेफ चयन में तीसरा पुरस्कार जीता।

महोत्सव में विश्व प्रसिद्ध निर्देशक श्याम बेनेगल के सृजन का उत्सव मनाया गया। भारत में रिलीज होने के 48 साल बाद, बेनेगल की ‘मंथन’ को कान्स में क्लासिक सेक्शन में प्रदर्शित किया गया, जिसे भारत के राष्ट्रीय फिल्म अभिलेखागार (सूचना और प्रसारण मंत्रालय के तहत एनएफडीसी-एनएफएआई) में संरक्षित किया गया और फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन द्वारा पुनर्स्थापित किया गया।

भारतीय सिनेमा में अपने समृद्ध कार्य के लिए प्रसिद्ध सिनेमैटोग्राफर संतोष सिवन अपने “करियर और कार्य की असाधारण गुणवत्ता” के लिए 2024 कान्स फिल्म फेस्टिवल में प्रतिष्ठित पियरे एंजनीक्स ट्रिब्यूट पुरस्कार से सम्मानित होने वाले पहले एशियाई बन गए। एक अन्य व्यक्ति जिसने कान्स में इतिहास रचा वह अनसूया सेनगुप्ता हैं, जो ‘द शेमलेस’ में ‘अन सर्टन रिगार्ड’ श्रेणी में अपने प्रदर्शन के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार जीतने वाली पहली भारतीय बनीं।

कान्स में अपनी जगह बनाने वाले एक अन्य स्वतंत्र फिल्म निर्माता मैसम अली भी एफटीआईआई के पूर्व छात्र थे। उनकी फिल्म “इन रिट्रीट” को एसीआईडी कान्स साइडबार कार्यक्रम में प्रदर्शित किया गया था। 1993 में अपनी स्थापना के बाद से ऐसा पहली बार हुआ, जब एसोसिएशन फॉर द डिफ्यूजन ऑफ इंडिपेंडेंट सिनेमा द्वारा संचालित सेक्शन में एक भारतीय फिल्म प्रदर्शित की गई।

जैसा कि हमने 77वें कान्स फिल्म महोत्सव में भारतीय सिनेमा के लिए एक ऐतिहासिक साल के गवाह बने हैं, भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान (एफटीआईआई) के पास अपनी उपलब्धियों का उत्सव मनाने का एक विशेष कारण है क्योंकि, पायल कपाड़िया, संतोष सिवन, मैसम अली और चिदानंद एस नाइक जैसे इसके पूर्व छात्रों की प्रतिभा कान्स में चमक रही हैं। एफटीआईआई, भारत सरकार के सूचना व प्रसारण मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त संस्थान है और केंद्र सरकार से वित्तीय सहायता प्राप्त कर एक सोसायटी के रूप में कार्य करता है।

केंद्र सरकार की प्राथमिकता विभिन्न सुविधाओं के माध्यम से फिल्म क्षेत्र को बढ़ावा देना है। इनमें एकल सुविधा केंद्र की स्वीकृति, विभिन्न देशों के साथ संयुक्त फिल्म निर्माण, अपने स्वायत्त संस्थानों जैसे कि- भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान व सत्यजीत रे फिल्म और टेलीविजन संस्थान के माध्यम से सिनेमा के क्षेत्र में शिक्षा का समर्थन करना और भारत को विश्व के कंटेंट हब (केंद्र) के रूप में स्थापित करने के बहुआयामी प्रयास शामिल हैं। ये सभी प्रयास राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंच पर सकारात्मक प्रभाव उत्पन्न कर रहे हैं।

@ फाईल फोटो

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