भारत-जापान आपसी सहभागिता और साझेदारी की पेश करेंगे नई मिसाल

नई दिल्ली :-जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा भारत की दो दिन की यात्रा पर नई दिल्ली पहुंचे। केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने उनका स्वागत किया। इसके पश्चात प्रधानमंत्री किशिदा राजघाट स्थित गांधीजी के समाधि स्थल पर पहुंचे। वहां उन्होंने महात्मा गांधी की समाधि पर पुष्प अर्पित किए। इसके पश्चात वे राष्ट्रीय राजधानी स्थित हैदराबाद हाउस में पीएम मोदी से मुलाकात करने पहुंचे। इस दौरान दोनों नेताओं ने एक-दूसरे का अभिवादन किया और डेलिगेशन लेवल टॉक के लिए चले गए। फिलहाल, दोनों देश आपसी सहभागिता और साझेदारी की एक नई मिसाल कायम करने की कोशिश करेंगे। दोनों पक्षों के बीच आपसी हितों के द्विपक्षीय और क्षेत्रीय मुद्दों पर भी चर्चा भी होगी। वहीं बाद में दोनों नेता दिल्ली के बुद्ध जयंती पार्क में बाल बोधि वृक्ष के दर्शन भी करेंगे।

G20 और G7 के एजेंडे को लेकर करेंगे चर्चा

वे G7 और G20 के अपने-अपने प्रेसीडेंसी के लिए अपनी प्राथमिकताओं पर भी चर्चा करेंगे। दरअसल, यह यात्रा इस बात पर सहयोग करने और चर्चा करने का अवसर देती है कि कैसे G20 और G7 खाद्य और स्वास्थ्य सुरक्षा, ऊर्जा संक्रमण और आर्थिक सुरक्षा सहित महत्वपूर्ण वैश्विक मुद्दों पर प्राथमिकताओं को परिवर्तित करने पर एक साथ काम कर सकते हैं।

ये यात्रा सहयोग और चर्चा करने के देती है अनेक अवसर

याद हो, साल 2014 में भारत-जापान संबंधों को ‘विशेष रणनीतिक और वैश्विक साझेदारी’ तक उन्नत किया गया था। भारत-जापान साझेदारी में रक्षा और सुरक्षा, व्यापार और निवेश, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा से लेकर कई क्षेत्र शामिल हैं।

आज भारत-जापान सबसे महत्वपूर्ण स्तंभों में से एक

आज रक्षा और सुरक्षा सहयोग में भारत-जापान विशेष सामरिक और वैश्विक साझेदारी के सबसे महत्वपूर्ण स्तंभों में से एक के रूप में उभरा है। यह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति व स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण कारक साबित हो रहे हैं। दोनों देश 2015 में हस्ताक्षरित रक्षा उपकरण और प्रौद्योगिकी समझौते के तहत भी लगातार प्रगति कर रहे हैं।

जापान भारत में पांचवां सबसे बड़ा निवेशक

जानकारी के लिए बता दें, जापान भारत में पांचवां सबसे बड़ा निवेशक है। वहीं दोनों प्रधानमंत्रियों के बीच बैठक ऐसे महत्वपूर्ण समय में हो रही है, जब भारत और जापान G20 और G7 की अध्यक्षता कर रहे हैं। ऐसे में यह यात्रा इस बात पर सहयोग करने और चर्चा करने का अवसर देती है कि कैसे G20 और G7 खाद्य और स्वास्थ्य सुरक्षा, ऊर्जा संक्रमण और आर्थिक सुरक्षा सहित महत्वपूर्ण वैश्विक मुद्दों पर प्राथमिकताओं को परिवर्तित करने पर एक साथ काम कर सकते हैं।

इन सभी पहलुओं के मद्देनजर हमारे लिए यह जानना भी बेहद अहम रहेगा कि भारत-जापान के बीच मैत्री पूर्ण रिश्तों कैसा इतिहास रहा है। तो आइए विस्तार से जानते हैं .

भारत-जापान के बीच मैत्री पूर्ण रिश्तों का है लंबा इतिहास

गौरतलब हो, भारत और जापान के बीच मैत्री पूर्ण रिश्तों का एक लंबा इतिहास रहा है। यह रिश्ता आध्यात्मिक सोच में समानता और मजबूत सांस्कृतिक एवं सभ्यतागत रिश्तों पर आधारित है। दोनों आधुनिक देशों ने पुराने संबंध की सकारात्मक विरासत को आज भी जारी रखा है। ये लोकतंत्र, व्यक्तिगत आजादी तथा कानून के शासन में विश्वास के साझे मूल्यों से सुदृढ़ हुआ है। वर्षों से दोनों देशों ने इन मूल्यों को सुदृढ़ किया है और सिद्धांत एवं व्यवहार दोनों के आधार पर एक साझेदारी का निर्माण किया है। आज भारत एशिया में सबसे बड़ा लोकतंत्र है जबकि जापान एशिया का सबसे खुशहाल देश है।

ऐसे हुई थी दोनों देशों के मधुर रिश्तों की शुरुआत

उल्लेखनीय है कि जापान के साथ भारत का सबसे पुराना प्रलेखित सीधा संपर्क नारा में स्थित तुडाइजी मंदिर से था, जहां 752 ईस्वी में भारतीय बौद्ध भिक्षु बोधिसेना द्वारा गगनचुंबी भगवान बुद्ध की प्रतिमा का अभिषेक किया गया। समकालीन समय में, जापान से निकटता से जुड़े अन्य भारतीयों की बात करें तो इनमें हिंदू धर्म गुरु स्वामी विवेकानंद, नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर, उद्योगपति जे. आर. डी. टाटा, स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस और न्यायाधीश राधाबिनोद पाल महत्वपूर्ण हैं।

भारत-जापान हमेशा जरूरत के समय देते आए हैं एक-दूसरे का साथ

केवल इतना ही नहीं, करीब 1,400 साल पहले, भारत और जापान के बीच आरंभ हुए सभ्यतागत संपर्कों के बाद इतिहास के विभिन्न चरणों के दौरान दोनों देशों के बीच कभी प्रतिकूलताएं नहीं रहीं हैं। यानि दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंध किसी भी प्रकार के विवाद-वैचारिक, सांस्कृतिक या भौगोलिक से बिल्कुल मुक्त रहे हैं। दोनों देशों के संबंध इतने प्रगाढ़ हो चुके हैं कि ये इनकी एक-दूसरे के प्रति सम्मान उदार भावनाओं एवं भंगिमाओं में प्रकट होता है। ऐसे में दोनों देश हमेशा जरूरत के समय एक-दूसरे का साथ देते हैं। ज्ञात हो, 1903 में भारत-जापान संघ का गठन किया गया था। आज यह जापान में सबसे पुरानी अंतर्राष्ट्रीय मैत्री संस्थाओं में से एक है।

क्यों बढ़ी दोनों देशों में एक-दूसरे के प्रति रुचि ?

आज अनेक कारणों की वजह से भारत में जापान की रुचि लगातार बढ़ती जा रही है। दरअसल, इसमें भारत का विशाल एवं बढ़ता बाजार और इसके संसाधन, विशेष रूप से मानव संसाधन शामिल हैं। इसी क्रम में जापान की आधिकारिक विकास सहायता लंबे समय से दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों का आधार रही है। इस रिश्ते के चलते जापान ने भारत के अवसंरचना विकास के लिए दीर्घावधिक ऋृण प्रदान करने का अहम कार्य किया। आज भारत में मेट्रो नेटवर्क जापान की सहायता से ही तैयार हो रहा है। सबसे पहले इसने दिल्ली मेट्रो परियोजना की संकल्पना तैयार करने तथा निष्पादित करने में भारत की बड़ी मदद की। महज इतना ही नहीं पश्चिम समर्पित फ्रेट कोरिडोर (डी एफ सी), आठ नए औद्योगिक कॉरिडोर (सी बी आई सी) की मदद से जापान भारत के औद्योगिक क्षेत्र को भी बदलने में बड़ी मदद कर रहा है।

भारत और जापान का द्विपक्षीय व्यापार 20.75 अरब डॉलर

ज्ञात हो वित्त वर्ष 2013-14 में भारत और जापान के बीच द्विपक्षीय व्यापार 16.31 बिलियन अमरीकी डॉलर का था जबकि बीते वर्ष दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार 20.75 अरब डॉलर का रहा। यह अब तक का सबसे अधिक व्यापार रहा है। दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार लगातार बढ़ रहा है। बताना चाहेंगे भारत की ओर से जापान को जिन वस्तुओं का निर्यात किया जाता है, उनमें मुख्य रूप से पेट्रोलियम, उत्पाद, रसायन, एलिमेंट, कंपाउंड, गैर मैटेलिक मिनरल वेयर, मछली एवं मछली के पकवान, मेटफेरस, अयस्क एवं स्क्रैप, कपड़ा एवं एसेसरीज, लोहा एवं इस्पात के उत्पाद, टेक्सटाइल यार्न फैब्रिक एवं मशीनरी आदि शामिल हैं।

जापान में भारतीयों के पहुंचने की ऐसे हुई थी शुरुआत

व्यवसाय और वाणिज्य हितों के लिए 1870 के दशक में जापान में भारतीयों के पहुंचने की शुरुआत हुई थी। उस दौरान भारतीयों ने याकोहामा और कोबे के दो प्रमुख बंदरगाहों से इसकी शुरुआत की थी। इसके पश्चात प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अधिक भारतीय जापान में प्रवेश कर पाए क्योंकि तब जापान के उत्पादों को मांग में अंतर को पाटने के लिए मंगाया गया जिसे युद्ध त्रस्त यूरोप पूरा नहीं कर पा रहा था। 1923 में भयंकर कांटो भूकंप के बाद याकोहामा में रहने वाले अधिकांश भारतीय उस क्षेत्र को छोड़कर कंसाई क्षेत्र जिसे आज ओसाका-कोबे के नाम से जाना जाता है, वहां चले गए। आज जापान के इस शहर में सबसे ज्यादा प्रवासी भारतीय रहते हैं।

याकोहामा के प्राधिकारियों ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद कांटों में अपने पुराने बेस को फिर से जिंदा करने करने के लिए भारतीय समुदाय को विशेष प्रोत्साहन की पेशकश की। इसी का नतीजा यह निकला कि भारतीय समुदाय ने 1929 में याकोहामा में भारतीय सौदागर संघ (आईएमएवाई) का गठन किया। पहले जहां भारत केवल टेक्सटाइल, पण और इलेक्ट्रॉनिक्स के व्यापार पर फोकस कर रहा था, बाद में रत्न और जवाहरात पर भी काम करने लगा। यह जापान में एक नया भारतीय समुदाय बनकर उभरा।

हाल के वर्षों की बात करें तो जापान में भारी संख्या में प्रोफेशनल्स के पहुंचने की वजह से भारतीय समुदाय की संरचना में बदलाव आ गया है। इनमें आईटी प्रोफेशनल और इंजीनियर आदि शामिल हैं जो भारत एवं जापान की फर्मों के लिए काम कर रहे हैं। ये प्रोफेशनल प्रबंधन, वित्त, शिक्षा तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी अनुसंधान में काम कर रहे हैं, जिन्हें बहुराष्ट्रीय संगठनों के अलावा भारतीय एवं जापानी संगठनों द्वारा नियुक्त किया गया है। टोक्यो में इन्हीं प्रोफेशनल की बदौलत निशिकसाई क्षेत्र लघु भारत के रूप में उभर चुका है। उनकी संख्या की वृद्धि की वजह से ही टोक्यो एवं याकोहामा में दो भारतीय स्कूल खोलने की आवश्यकता उत्पन्न हुई। भारत और जापान के प्रगाढ़ रिश्तों के इसी इतिहास को देखते हुए आगे भी ये उम्मीद की जा सकती हैं दोनों देशों के रिश्तों को और अधिक मजबूती मिलती रहेगी।

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