1988 साल के बेचने रेलवे मेन्स स्कूल के परिसर में अपनी आधी सदी पूरी की !

– 35 साल बाद हुआ भूले-बिसरे दोस्तों का संगीत कार्यक्रम

नागपुर :- रेलवे मेन्स हाईस्कूल द्वारा 1988 बेंच के जीवन में अर्धशतक तक पहुंचने के बाद हर रन के लिए संघर्ष होता है, आसानी से लगाया गया चौका, स्कूल जीवन में दीवारों के पीछे से झांकता हुआ चौका सबसे कीमती होता है। उन्हें हमेशा याद आता है।जब पारिवारिक, आर्थिक और सामाजिक जिम्मेदारियाँ दूर हो जाती हैं तो मन को फिर वही स्कूल की कक्षा याद आ जाती है। स्कूल के दोस्त, स्कूल के टीचर, किस क्लास में किस बेंच पर बैठकर और अपने दोस्तों साथ बिताये गये पल याद आते है। इसवी तरह का अहसास पचास की उम्र पार करने के बाद एक सहपाठी विनोद सयाम को हुआ । यह उन्होंने अपने सहपाठी प्रमोद ठाकरे को बताया फिर दोनों ने दोस्त ढूंढने की बहुत कोशिश की और उनकी कोशिश सफल रही और दोस्तों की एक शृंखला बन गई। लेकिन नारी क्लासमेट ढूंढना थोड़ा मुश्किल काम था, क्योंकि शादी के बाद स्त्री के नाम बदल जाते है।फिर ऐसे मे पुणे में रहरही नीलिमा पराते नाम की एक सहपाठी का फोन नंबर मिल गया, उसकी मदद से दिल्ली में अनीता पाटिल का पता मिल गया, नागपुर में सुनीता भोंगाड़े को फोन किया। वह दूसरे दोस्तों की तलाश करने लगी, कभी सहपाठी के मायके का पत्ता लगाकर उनके घर जाती, कभी सड़क पर, कभी ऑफिस में। वह मेरे कॉलेज भी आई और मुझसे मिली । इंटरनेट का प्रयोग भी कम अधिक मात्रा में किया गया। इस शृंखला में अब तक 32 मोती मिल चुके हैं। व्हाट्सएप ग्रुप बनाया गया । चर्चा की गई । योजना प्रारंभ हुई । 3 सितंबर का अलग दिवस तय किया। नरेंद्र पोटे, विनोद भोसले, शैलेश गारोडे, विवेक सोनटक्के ने रिसॉर्ट के बारेमे जानकारी निकालकर जगह तय की। प्रथम मुलाखात के लिए हमने रेलवे मेन्स स्कूल, नागपुर का परिसर तय किया गया । जहाँ हमने अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की। दूर-दूर से मुंबई, पुणे, दिल्ली और लखनऊ जैसे विभिन्न शहरों से सहपाठी दो दिन पहले ही नागपुर में शामिल हो गए। जबकि कुछ ने इसमें भाग लेने के लिए छुट्टियाँ लीं, अन्य लोग स्वास्थ्य समस्याओं के बावजूद इसमें भाग लेने के लिए दृढ़ थे। 3 सितम्बर को सभी लोग रेलवे मेन्स स्कूल के प्रांगण में उपस्थित थे । 35 साल बाद 1988 की क्लास सुबह 9 बजे शुरू हुई । सभी ने स्कूल यूनिफॉर्म में स्कूल में प्रवेश किया, मंदा लांडगे, रूपाली कांबले, मनीषा लांबट, अर्चना राधुशे, अंजलि बोरकर ने भाग लिया। विजया झोडे, अविनाश तांबे और फालके तब भी आये जब उनकी तबीयत ठीक नहीं थी। जैसे ही दोस्त प्रकट हुए, वे सभी खुशीसे हाथ मिलाते हुए आये। सबसे पहले इसकी शुरुआत राष्ट्रगान से हुई । इसके बाद दिवंगत शिक्षकों व मित्रों को श्रद्धांजलि देकर गुरुजन को नमन किया गया । क्लास शुरू हुई । उपस्थितियों की रजिस्टर में अनुसार नाम लेकर सभी का स्वागत किया गया और प्रत्येक ने अपने करियर का सिंहावलोकन प्रस्तुत किया। विजयकुमार राव ने “सलामत रहे दोस्ताना हमारा” गाना गाया और उसके बाद केक काटा गया। थोड़ी देर में गप्पों की महफ़िल सजी। जिसमें पुरानी और नई यादें, जो घटनाएं घटीं, जो बदलाव हुए और फिर हम अपने शिक्षक बोरकुटे के घर गए और उनसे आशीर्वाद मांगा और उनके स्वास्थ्य के बारे में जानकारी ली। हमने उन्हें आश्वासन दिया कि हम हमेशा आएंगे। मधुकर भापकर और प्रकाश राऊत ने इसके लिए प्रयास किया । अनिल अंबडकर, राजेश डोंगरे, रवींद्र टेटे ने अपने व्यस्त कार्यक्रम से भाग लिया और एक सुंदर गीत संगीतमय कार्यक्रम का मंचन किया। कविता पाठ किया गया. संगीता रेंगे-पोथारे ने ‘कवि अनंत राऊत’ की कविता ‘मित्र’ प्रस्तुत की। हम सभी दर्शनीय स्थलों पर गए और अविस्मरणीय क्षण को याद करते हुए दोपहर के भोजन का आनंद लिया। जिसमें मुंबई से आए भूषण भाके ने सभी वित्तीय व्यवस्थाएं उचित तरीके से कीं। दूर से आए मित्रों को प्रणाम कर सबने पुनः मिलने के संकल्प के साथ विदा ली। ऐसी जानकारी डॉ. संगीता रेंगे-पोथारे ने दी |

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