25 हजार रुपये वेतन वाले अव्वल श्रेणी में

दिल्ली – अगर आप साल में तीन लाख रुपये कमाते हैं तो भारत में वेतन पाने वालों की शीर्ष 10 प्रतिशत आबादी में आपके शामिल होने के लिए यह पर्याप्त है। ये आंकड़े एक वैश्विक प्रतिस्पर्धा पहल संस्था, इंस्टीट्यूट फॉर कॉम्पिटिटिवनेस की भारत इकाई द्वारा तैयार की गई ‘भारत में असमानता की स्थिति’ की रिपोर्ट का हिस्सा है।
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष विवेक देबरॉय ने बुधवार को इसका विमोचन किया। इसने असमानता को कम करने के साधन के रूप में शहरी बेरोजगारी और सार्वभौमिक बुनियादी आमदनी के लिए एक योजना की सिफारिश की थी।
असमानता रिपोर्ट से जुड़े आंकड़ों पर गौर करने पर अंदाजा मिलता है कि किसी के काम की प्रकृति भी आमदनी में अंतर ला सकती है। आमदनी बढऩे के साथ ही वेतन पाने वाले श्रमिकों की हिस्सेदारी बढ़ जाती है जबकि अपना रोजगार करने वालों की हिस्सेदारी कम हो जाती है। इसमें बताया गया है कि एक लाख रुपये या उससे कम की वार्षिक आमदनी वाले लोगों में नियमित वेतन पाने वाले श्रमिकों की औसत हिस्सेदारी 18.43 प्रतिशत थी। एक लाख रुपये से अधिक की वार्षिक आमदनी वाले लोगों में नियमित वेतन वाले श्रमिकों की हिस्सेदारी बढ़कर 41.59 प्रतिशत हो गई है। सालाना आमदनी के तौर पर 1 लाख रुपये से अधिक कमाने वालों में से 43.99 प्रतिशत स्व-रोजगार करने वाले शामिल थे। इसके अलावा एक साल में 1 लाख रुपये से कम कमाने वाले स्व-नियोजित श्रमिकों की औसत तादाद 63.3 प्रतिशत थी।
रिपोर्ट में आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) 2019-20 के आंकड़ों पर भी गौर किया है और इससे यह निष्कर्ष निकला है कि हर महीने रोजाना 25,000 रुपये कमाने वाले एक श्रमिक को भारत में वेतन पाने वालों की शीर्ष 10 प्रतिशत की श्रेणी में रखा जाएगा। इसमें कहा गया है, ‘अगर वेतन पाने वालों की शीर्ष 10 प्रतिशत की श्रेणी में इतनी राशि शामिल है तब सबसे निचले स्तर की नीचे की स्थिति की कल्पना नहीं की जा सकती है। विकास के फायदे का वितरण समान रूप से किया जाना चाहिए।’
आयकर के आंकड़ों का भी जायजा लिया ताकि यह देखा जा सके कि वेतन की आय का वितरण किस तरह किया जा सकता है। आयकर के आंकड़ों में श्रेणियां व्यापक हैं। गैर-शून्य वेतन रिटर्न दाखिल करने वालों में निचले स्तर के 50 प्रतिशत लोगों की कुल वेतन आमदनी में केवल 22 प्रतिशत की हिस्सेदार रही। यह आकलन वर्ष 2018-19 के रिटर्न में वेतन आय पर आधारित है। आकलन वर्ष, उस वित्तीय वर्ष के एक वर्ष बाद आता है जिसमें आय कमाई जाती है। इसलिए यह वित्त वर्ष 2017-18 के लिए आय के अनुरूप होगा। यह वर्ष 2012-13 के आकलन वर्ष के लिए समान था जो वित्त वर्ष 2012 के अनुरूप है। निचले स्तर की 48 प्रतिशत आबादी को कुल वेतन आय का 18 प्रतिशत मिला। विस्तृत डेटा की कमी के कारण वित्त वर्ष 2018 के लिए सटीक तुलना संभव नहीं हो पाई।
हालांकि, व्यापक आय श्रेणियों के बारे में कुछ जानकारी मिली है। आयकर रिटर्न दाखिल करने वालों की हालत बेहतर है। राज्य की असमानता रिपोर्ट के मुताबिक देश के सभी कामगारों को 3 लाख रुपये की वेतन कमाई के आंकड़े की बदौलत शीर्ष 10 प्रतिशत की श्रेणी में रखा जा सकेगा। लेकिन वित्त वर्ष 2018 तक 70 प्रतिशत से अधिक वेतन वाले कर्मचारी हर साल 3.5 लाख रुपये से अधिक कमाते हैं।
इसका एक बड़ा हिस्सा 3.5 लाख रुपये से 10 लाख रुपये की श्रेणी तक ही केंद्रित है। कुल दाखिल किए गए आयकर रिटर्न में उनकी हिस्सेदारी 56.9 प्रतिशत हैं। केवल 2.3 प्रतिशत ही 25 लाख रुपये या उससे अधिक कमाते हैं।
पीएलएफएस के विभिन्न चरण के आंकड़ों की जांच करने वाली रिपोर्ट के अनुसार मजदूरी में असमानता बढ़ रही है। इस रिपोर्ट में कहा गया, ‘सर्वेक्षण के तीन चरण (2017-18, 2018-19 और 2019-20) के दौरान कुल आमदनी में शीर्ष 1 प्रतिशत की हिस्सेदारी बढ़ी है और यह 2017-18 के 6.14 प्रतिशत से बढ़कर 2018-19 में 6.84 प्रतिशत तक हो गई और 2019-20 में शीर्ष 1 प्रतिशत ने मामूली गिरावट दर्ज की।’
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