सरकारी मेडिकल कॉलेजों को भी मिले ऑटोनॉमी

– केवल प्राइवेट संस्थाओं को मिल रहा दर्जा 

नागपूर :- सरकार द्वारा शिक्षा क्षेत्र में स्वायत्तता को बढ़ावा दिया जा रहा है. सरकार की पहल के बाद राज्य में कई इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट सहित अन्य संकायों के कॉलेजों को स्वायत्त संस्था (डीम्ड यूनिवर्सिटी) का दर्जा दिया गया.

इतना ही नहीं प्राइवेट डीम्ड यूनिवर्सिटी की भी संख्या लगातार बढ़ती जा रही है लेकिन इतने वर्षों बाद भी राज्य में किसी भी सरकारी मेडिकल कॉलेज को स्वायत्ता या फिर डीम्ड यूनिवर्सिटी का दर्जा नहीं दी गई.

राज्य में स्वतंत्रता काल से पहले के भी मेडिकल कॉलेज कार्यरत है. सरकार द्वारा स्वायत्ता का दर्जा दिये जाने से सरकारी मेडिकल कॉलेजों को विकास की दृष्टि से नई दिशा मिल सकती है. जनहित में अनुसंधान होने से समाज को सीधे तौर पर लाभ मिलेगा. राज्य में संचालित सभी मेडिकल कॉलेज हेल्थ यूनिवर्सिटी नासिक से संलग्नित है. साथ ही नेशनल मेडिकल काउंसिल की गाइड लाइन्स के अनुसार चलते हैं.

सरकार मेडिकल कॉलेजों पर सरकार द्वारा हर वर्ष करोड़ों रुपये खर्च किया जाता है. यह कॉलेज स्वास्थ्य सेवा की रीड बने हुये हैं, लेकिन पूरी तरह से राज्य सरकार के अधिन होने से किसी भी विकास कार्यों के लिए चक्कर काटना पड़ता है. स्वायत्तता मिलने से कॉलेज प्रबंधन को खुद के निर्णय लेने में आसानी होती है. साथ ही पाठ्यक्रम को अपग्रेड करने में भी मदद मिलती है. साथ ही अनुसंधान भी हो सकेगा वर्तमान में राज्य के सरकारी मेडिकल कॉलेजों पर स्वास्थ्य सेवा का भार बढ़ता जा रहा है. इस वजह से अनुसंधान की दिशा में कार्य कम हो गया है.

रिसर्च को मिलेगा बढ़ावा

मुंबई का टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल सर दोराबजी ट्रस्ट द्वारा 1941 में शुरू किया गया था. बाद में 1962 में केंद्र सरकार के अणु ऊर्जा विभाग के अधिक हो गया है. अस्पताल में कैंसर पर बेहतरीन अनुसंधान कार्य होता है. कुछ वर्ष पहले राज्य के सबसे पुराने कॉलेजों में शामिल नागपुर मेडिकल कॉलेज, पुणे के बीजे कॉलेज और मुंबई के जेजे हॉस्पिटल को ऑटोनॉमस बनाने के लिए चर्चा शुरू हुई थी लेकिन प्रशासनिक और राजकीय इच्छा शक्ति के अभाव में मामला आगे नहीं बढ़ सका.

छत्तीसगढ़ के जगदलपुर में ऑटोनॉमस मेडिकल कॉलेज कार्यरत है लेकिन महाराष्ट्र इतने वर्षों बाद भी पीछे रह गया है. कॉलेज को ऑटोनॉमी या फिर डीम्ड का दर्जा मिलने से प्राध्यापकों की भर्ती जैसी समस्या का निवारण हो सकता है. साथ ही अस्पताल अपने आय के स्रोत भी तैयार कर सकता है. सरकार द्वारा इस दिशा में गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए. जब इंजीनियरिंग संस्थाओं को ऑटोनॉमस का दर्जा दिया जा सकता है तो फिर मेडिकल कॉलेजों के लिए दिक्कतें नहीं आएंगी.

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