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नेताजी रात में चुनाव की चर्चा में लीन होकर नींद के आगोश में समा गए….सपने में भी कुछ बड़ा करने की बात को दोहराते रहे….पत्नी भी उनकी नींद में बड़बड़ाने की आदत से तंग आकर रात जाग कर बीता गई। नेता जी की नींद खुली तो पहला फरमान पीए के नाम हाजिर होने का छोड़ दिया। पीए के हाजिर होते ही उससे कहा, “इस बार कुछ बड़ा करना है। चुनाव घोषित हुए हैं और जनता को भरोसा दिलाना है कि हम उनके साथ हैं। कुछ ऐसा प्लान करो जिससे हमारे सोशल मीडिया पर लाइक्स की बौछार हो जाए!”
पीए भी बीरबल की सोच का था…, अचानक उसकी आँखों में चमक आ गई। “नेता जी, इस बार दलित-आदिवासी के घर चलिए खाना खाने! मीडिया में खूब सुर्खियाँ बटोर लेंगे और जनता भी खुश हो जाएगी।”
नेता जी ने जोरदार ठहाका लगाया, “वाह! क्या आइडिया है। अब तो जीत पक्की समझो। बस, ध्यान रखना कि कैमरा एंगल अच्छे हों और खाने का सेटअप शानदार दिखे!”
कुछ ही घंटों में मीडिया टीम, पीआर एजेंसी और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स का पूरा काफिला तैयार हो गया। दलित-आदिवासी बस्ती में नेता जी का शानदार स्वागत हुआ। गली में नया रंग-रोगन हो चुका था और साफ-सफाई तो ऐसे की गई जैसे बस्ती अब स्वर्ग का हिस्सा बनने वाली हो।
नेता जी एक बुजुर्ग दलित किसान के घर पहुंचे। चारों ओर मीडिया कैमरों की फ्लैश लाइट्स चमकने लगीं। किसान और उसकी पत्नी थोड़ी सहमे-सहमे थे। नेता जी ने मुस्कराते हुए कहा, “अरे, आज हम आपके घर का खाना खाकर समाज को एक नई दिशा देंगे।”
खाने की थाली सामने आई, जिसमें देसी पकवानों की महक थी। नेता जी ने पहला निवाला उठाया और कैमरे की ओर देखते हुए बोले, “यह खाना तो राजा-महाराजाओं जैसा है!” पीछे से पीए फुसफुसाया, “नेता जी, याद रखिए कि चम्मच का इस्तेमाल करना है, हाथ से मत खाइए, तस्वीरें खराब हो जाएंगी।”
खाना खाते वक्त नेता जी ने कैमरे की तरफ कुछ गंभीर बातें भी कीं—”हमारे देश का असली विकास तब होगा, जब हर कोई एक साथ मिलकर खाएगा, जब जात-पात खत्म होगी।”
अगले दिन अखबारों में बड़ी-बड़ी हेडलाइंस छपीं, “नेता जी ने दलित-आदिवासी के घर खाकर किया सामाजिक समरसता का आह्वान!” सोशल मीडिया पर हज़ारों लाइक्स और रीट्वीट्स हुए। जनता ने सोचा, “नेता जी कितने महान हैं!”
पर दूसरी ओर, उसी बस्ती में वो किसान जो कल नेता जी के साथ बैठे थे, आज फिर से वही पुरानी समस्याओं में घिरा था—पानी की कमी, शिक्षा का अभाव, स्वास्थ्य सेवाओं का न होना। नेता जी का काफिला जा चुका था, और साथ ही उम्मीदें भी।
नेता जी अगली सभा में गरजते हुए बोले, “हमने समाज के सबसे निचले तबके के साथ बैठकर खाना खाया है, अब बदलाव आना तय है!” जनता तालियाँ बजा रही थी, और नेता जी के चेहरे पर एक संतोष भरी मुस्कान थी। पीए ने पीछे से कहा, “नेता जी, आपने खाना खाकर बड़ा काम कर दिया, अब पाँच साल आराम से निकाल सकते हैं!”
लेकिन दूसरे ही दिन दूसरे नेताजी जो अलग पार्टी के थे वे भी दलित मजदूर के घर पहुंच गए…साथ में खाना खाया…फोटो खिंचवाई… सोशल मीडिया…अपने चाटुकारों के माध्यम से अखबारों में चमकाई…और संदेश दिया अब बदलाव निश्चित है…पहला छलावा था…यह विश्वास है। फिर जनता कनफुज….आखिर किसान के घर खाने से…दलित मजदूर के घर खाने से बदलाव कैसे संभव हैं….आज भी यह प्रश्न निरुत्तर बना है!
– डॉ. प्रवीण डबली,वरिष्ठ पत्रकार