सावनेर– स्थानीय अरविंद इंडो पब्लिक स्कूल में सुरों के शहंशाह मोहम्मद रफी का जन्मदिन पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। स्कूल के प्राचार्य राजेंद्र मिश्र ने सदन को संबोधित करते हुए मोहम्मद रफी के जीवन से जुड़ी कुछ घटनाएं बतायी। कैसे 13 वर्षीय रफी ने पार्श्व गायन शुरू किया और मुंबई में गायन क्षेत्र में एक स्वर्णिम अध्याय रचा। उनका जन्म 24 दिसंबर को अमृतसर जिले के कोटा सुल्तान सिंह गांव में 1924 को हुआ था। रफी साहब एक ऐसे गायक थे जिनकी आवाज पर हर तरह के गाने दिल छू लेते थे। फिर चाहे गाना मस्ती भरा हो या फिर दुख भरे नगमे, भजन हो या कव्वाली। रफी साहब ने करीब 28000 गानों को अपनी मधुर आवाज दी है। मात्र 7 वर्ष की उम्र में वह एक फकीर का पीछा किया करते थे। रफीक फकीर की आवाज की नकल करते।’नीलकमल’ फिल्म के गीत ‘बाबुल की दुआएं लेती जा’से जनप्रियता मिली। गुलाबी आंखें, बहारों फूल बरसाओ ‘जैसे गीतों को गाने वाला रफी हिंदुस्तान का सबसे बेहतरीन गायक था। उनकी आवाज के दर्द का जादू ही था जो सुनने वाले के दिल में उतर जाता था। 31 जुलाई 1980 को रफी सभी को रोता – बिलखता छोड़ इस दुनिया से चले गए। नौशाद के संगीत में फिल्म बैजू बावरा के गीत ने उन्हें जबरदस्त कामयाबी दिलायी। राष्ट्रीय पुरस्कार, फिल्म फेयर अवार्ड से सम्मानित मोहम्मद रफी ने मशहूर गायक अभिनेता किशोर कुमार के लिए भी अपनी आवाज दी। वी एक बेहतर गायक होने के साथ-साथ शानदार इंसान भी थे। उन्हें पहला ब्रेक पंजाबी फिल्म गुलबलोच में मिला था। मौत से पहला रिकॉर्ड किया आखिरी गाना ‘ आसपास ‘ फिल्म का था गीत के बोल थे शाम फिर क्यों उदास है दोस्त, तू कहीं आस पास है दोस्त’
स्कूली विद्यार्थियों ने रफी के गीत की वीडियो बनाकर स्कूल के साथ साझा किए। कुछ नहीं लेख लिखे और आदरांजली दी।