माओवोदी नेता पर लिखी किताब को महाराष्ट्र का सर्वोच्च साहित्य पुरस्कार

– फिर 1 हफ्ते में ही सरकार ने लिया यूटर्न

मुंबई :- शीर्ष माओवादी रहे कोबाड गांधी (घांधी) की पुस्तक मुंबई ‘फ्रैक्चर्ड फ्रीडम’ के मराठी अनुवाद को दिया गया महाराष्ट्र सरकार का पुरस्कार रद्द कर दिया गया है। इसे विसंगति ही कहा जाएगा कि इस पुस्तक के छपने के बाद भाकपा (माओवादी-लेनिनवादी) ने पिछले साल अपने सर्वोच्च पोलित ब्यूरो से कोबाड गांधी को निकाल दिया था। वह वर्ष 2009 से 2019 तक नक्सली गतिविधियों के समर्थन के आरोप में जेल में बंद रहे। छूटने पर ‘फ्रैक्चर्ड फ्रीडम’ पुस्तक लिखी, जिसमें पुलिस के खुद पर और दिवंगत पत्नी अनुराधा पर किए गए कथित अत्याचारों को लिखा गया है। लेखिका अनघा लेले ने ‘फ्रैक्चर्ड फ्रीडम तुरुंगातील आठवणी व चिंतन’ नाम से इसका मराठी अनुवाद किया है। इस पुस्तक को महाराष्ट्र सरकार के मराठी भाषा पुरस्कारों के लिए नामित किया गया था। कुछ दिन पहले इस अनुवाद को प्रतिष्ठित लक्ष्मण शास्त्री जोशी पुरस्कार देने की घोषणा की गई थी।

पूर्व माओवादी नेता कोबाड गांधी के संस्मरण ‘फ्रैक्चर्ड फ्रीडम’ के मराठी अनुवाद के लिए साहित्यिक पुरस्कार की घोषणा एक हफ्ते पहले ही की गई थी। इस फैसले को पलटते हुए पुरस्कार की जांच समिति को खत्म कर दिया गया है।

भंग की गई कमिटी

मराठी भाषा और स्कूली शिक्षा विभाग के मंत्री दीपक केसरकर ने जांच के बाद पुरस्कार रद्द करने की घोषणा कर दी। इतना ही नहीं, पुस्तक को सरकारी पुरस्कार देने की सिफारिश करने वाली समिति भी भंग कर दी गई है। उन्होंने पत्रकारों को बताया कि यह मामला संवेदनशील है। नक्सली विचारों का उद्दात्तीकरण हमें मंजूर नहीं है। पुरस्कारों के लिए बनाई गई विशेषज्ञ समिति की यह जिम्मेदारी बनती थी, वे इस बात को सरकार के सामने रखते। इसलिए समिति को तत्काल प्रभाव से भंग कर दिया गया है।

ऐसे उतार-चढ़ाव

मुंबई के उच्च शिक्षित समृद्ध पारसी परिवार में जन्मे 71 वर्षीय वामपंथी विचारक की जिंदगी वैसे भी उतार-चढ़ाव भरी रही है। देश के प्रतिष्ठित दून स्कूल, मुंबई के सेंट जेवियर्स कॉलेज और कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के बाद लंदन में चार्टर्ड अकाउंटेंट की पढ़ाई करके वहीं मल्टीनैशनल कंपनी में काम किया। लंदन में ही कट्टर वामपंथियों के प्रभाव में आए और लौटने के बाद नागपुर में बसकर माओवादी गतिविधियों में लिप्त हो गए। दस साल जेल में रहने के बाद लौटने पर व्यवस्था के विरोध में जो पुस्तक लिखी, वही पुराने माओवादी साथियों को आंदोलन को बदनाम करने वाली लगी। नवंबर 2021 में संगठन ने एक बयान जारी करके उनसे किनारा कर लिया था।

शिवसेना के नेता को हटाया

सरकारी आदेश में कहा गया है, ‘राज्य सरकार का मराठी भाषा विभाग स्वर्गीय यशवंतराव चव्हाण के नाम पर पुरस्कार देता है। इन राज्य स्तरीय साहित्यिक पुरस्कारों के लिए विभिन्न श्रेणियों के तहत राज्य के भीतर और बाहर की प्रविष्टियों पर विचार किया जाता है… वर्ष 2021 के लिए प्राप्त प्रविष्टियों में से विजेताओं का चयन करने के लिए एक जांच समिति का गठन किया गया था। अवॉर्ड की घोषणा 6 दिसंबर को हुई थी। अब स्क्रूटनी कमेटी… को खत्म कर दिया गया है। इसी तरह, पुस्तक के मराठी अनुवाद के लिए पुरस्कार, ‘फ्रैक्चर्ड फ्रीडम: ए प्रिजन मेमॉयर’ को खत्म कर दिया गया है। राज्य के मराठी भाषा विभाग का नेतृत्व मंत्री दीपक केसरकर कर रहे हैं, जो शिवसेना के शिंदे गुट से ताल्लुक रखते हैं।’

लेखक गांधी ने दी सफाई

अधिकारियों ने कहा कि 35 श्रेणियां हैं जिनमें पुरस्कार दिए जाते हैं। 33 पुरस्कारों की घोषणा की गई और घांडी की पुस्तक को लेखक/अनुवाद के लिए ‘तर्कतीर्थ लक्ष्मणशात्री जोशी पुरस्कार’ के लिए चुना गया, जिसमें 1 लाख रुपये की पुरस्कार राशि है। जैसे ही पुरस्कार की घोषणा की गई, आलोचकों के साथ सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएं आईं और सरकार से फैसले को पलटने का आग्रह किया। वहीं इस पर गांधी ने कहा कि सोशल मीडिया पर उनके बारे में झूठ फैलाया जा रहा है। मार्च 2021 में रिलीज होने के बाद से पुस्तक का अंग्रेजी संस्करण अमेजन पर सबसे अधिक बिकने वाला रहा है।

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