– दोनों एजेंसी की हालात-ए-सूरत गोसीखुर्द प्रकल्प जैसी – जनसम्पर्क विभाग
नागपुर – नागपुर महानगरपालिका जब से खुद की जिम्मेदारी निभाने के बजाय नाना प्रकार के बहाने बनाकर ठेकेदार कंपनी को काम सौंप रखा हैं,तब से शहर के करदाता नागरिकगण अड़चन में आ गए हैं.प्रशासन की नीति को ही भांप कर जनसंपर्क विभाग से जुड़े एक विवादास्पद कर्मी ने कहा था कि OCW हो या SMART CITY इन दोनों का हाल गोसीखुर्द प्रकल्प जैसा होने वाला है,अर्थात सरकारी निधि वर्षों तक फूंकी जाएगी और प्रकल्प कभी पूर्ण नहीं होगा।अर्थात मनपा ने एक नहीं बल्कि 2-2 सफ़ेद हाथी पाल लिए हैं ?
OCW में अंदरूनी कलह
OCW का निर्माण VIOLIA के बिना पर हुआ.तज्ञ कर्मी-अधिकारी का दावा करने वाले मनपा के पूर्व अधिकारी व कर्मी पर आश्रित हैं.मनपा जिन्हें तरजीह नहीं देती थी,OCW में उनको तज्ञ का दर्जा दिया हैं,गर वे सचमुच तज्ञ हैं तो मनपा को उनकी गुणवत्ता क्यों नहीं समझ में आई.समय रहते समझ आ गई होती तो मनपा का सालाना करोड़ों का राजस्व बच गया होता।
OCW में खुद के वजूद को लेकर अंदरूनी कलह चल रही हैं,एक-दूसरे का पर काटने के लिए एक-दूसरे के विरोधियों को हवा दे रहे हैं.विभागीय सूत्रों के अनुसार इस चक्कर में तरजीह देने के बिना पर शोषण भी आपसी समझौते के तहत हो रहा हैं.इस चक्कर में मनीष नगर केंद्र बिंदु बना हुआ हैं.इसी शह-मात के खेल में अंदरूनी घटनाएं छन-छन के बाहर आ रही हैं.
नतीजा OCW का मूल उद्देश्य भटक गया हैं,OCW प्रशासन का ध्यान शहर में नहीं होने के कारण अवैध नल कनेक्शन में बढ़ोतरी हो रही है,जिसमें OCW जोनल कर्मियों का बड़ा योगदान हैं.बड़े बड़े बकायेदारों को इन्हीं के मार्फ़त फार्मूला दी जाती है कि कैसे कैसे हथकंडे अपनाने से बकाया चुकाने से बचा जा सके.
OCW सिर्फ एक ही काम बड़ी मुस्तैदी से कर रही कि रोजाना कहाँ कहाँ जलापूर्ति बंद रहेगी और कब तक बंद रहेगी। यह भेजने और लिखने के लिए भी एक तथाकथित नुमाइंदा बैठा रखा हैं,जो अन्य मसाले भी परोस रहा हैं ?
SMART CITY कागजों पर
स्मॉर्ट सिटी के गठन बाद बड़े बड़े दावे किये गए थे,कॉर्पोरेट कंपनी के तर्ज पर गठन कर मनपा से दोगुणा वेतन श्रेणी पर कर्मी तैनात किये गए थे,इस क्रम में मनपा के जुगाड़ू कर्मियों ने भी हाथ धो लिए,किसी ने तब मुख्यमंत्री की सिफारिश पर अपना जुगाड़ कर लिया और स्मार्ट सिटी अर्थात अन्नदाता को गोसीखुर्द करार किया।
पहले 3 वर्ष स्मार्ट सिटी कागजों पर ड्राइंग बना बना कर वाह वाही लूट खुद की पीठ थपथपाती रही.जब जमीन पर काम करने की बारी आई तो पहले CEO चलते बने,उसके बाद मौके का फायदा उठाकर तत्कालीन विवादास्पद आयुक्त मुंडे ने कई काम स्मार्ट सिटी का अपने रिश्तेदार को बाँट दिए,इनके कार्यकाल में कर्मियों शोषण का प्रयास किया गया ‘स्मार्टली’ लेकिन असफल होने के साथ ही साथ मामला सार्वजानिक हो गया और अंत में तत्कालीन आयुक्त को मनपा छोड़ना पड़ा.
उसके बाद से अबतक कोई भी मामले में स्मार्ट सिटी को सफलता नहीं मिली,सिर्फ और सिर्फ मिले निधि की तिलांजलि दी जा रही.
और तो और नए CEO और उनके विरोधी सह समर्थक अपनी रोटी सेकने में लगे है,फ़िलहाल इलेक्ट्रिक बसों के टेंडर शर्तो का उल्लंघन करने में मदमस्त हैं.स्मार्ट सिटी द्वारा खरीदी गई 15 बसों भुगतान टाटा को करने में काफी अड़चन लाए,अब दूसरे 25 बसों के लिए भी ऐसे ही अड़चन ला सकते हैं.
कुल मिला कर स्मार्ट सिटी प्रकल्प जनसंपर्क विभाग अधिकारी के हिसाब से सही मायने में ‘गोसीखुर्द’ साबित हो रही हैं.
उल्लेखनीय यह है कि मनपा में प्रशासक तैनात है,उनकी मनमानी चलने से शहर अस्वस्थ्य होता जा रहा हैं !