– DPE- MGB पर बनेगी बात या आंदोलन का नोटिस ?
नागपुर :- देश के कोयला कामगारों की नजर 30 नवम्बर को कोलकाता में होने जारी जेबीसीसीआई (Joint Bipartite Committee for the Coal Industry) की 7वीं बैठक पर टिकी रहेगी। दरअसल कोयला कामगारों को 11वें वेतन समझौते का बेसब्री से इंतजार है। 10वें वेतन समझौते को खत्म हुए डेढ़ साल होने जा रहे हैं और जेबीसीसीआई की छह बैठकें हो जाने के बाद भी इस पर अंतिम निर्णय नहीं लिया जा सका है। मामला डीपीई (Department of Public Enterprises) के ऑफिस मेमोरेंड्म और मिनिमम गारंटी बेनिफिट (MGB) पर आकर अटका हुआ है।
6वीं बैठक सीआईएल के प्रबंधन के अधिकतम 10 फीसदी एमजीबी के प्रस्ताव और यूनियन के 30 प्रतिशत एमजीबी की मांग पर आकर खत्म हुई थी। देखना यह होगा कि जेबीसीसीआई की 7वीं बैठक 6वीं मीटिंग जहां खत्म हुई थी, वहां से प्रारंभ होती है या फिर डीपीई की गाइडलाइन को लेकर चर्चा होगी। एचएमएस नेता और जेबीसीसीआई सदस्य शिवकुमार यादव ने कहा कि एमजीबी को लेकर हम कोई समझौता नहीं करेंगे। हमने 50 फीसदी एमजीबी मांगा था, लेकिन यूनियन ने कुछ कदम पीछे किए और 30 फीसदी एमजीबी देने की मांग रखी। जेबीसीसीआई के अन्य सदस्यों की भी कमोबेश यही राय है कि वेतन समझौता श्रमिक हित में होगा और वाजिब एमजीबी दिलाया जाएगा।
इधर, कहा जा रहा है कि सीआईएल प्रबंधन डीपीआई के 24/11/2017 को जारी ऑफिस मेमोरेंडम के दायरे में बंधा हुआ है। सीआईएल ने जेबीसीसीआई की तीसरी बैठक में ही डीपीई की गाइडलाइन की अड़चन को स्पष्ट कर दिया था। चारों यूनियन ने इस पर सहमति जताई थी और डीपीई की गाइडलाइन में छूट देने की मांग किए जाने पर चर्चा हुई थी। इसी परिप्रेक्ष्य में 7 सितम्बर, 2022 को सीआईएल के निदेशक (कार्मिक एवं औद्योगिक संबंध) विनय रंजन ने कोयला मंत्रालय को एक पत्र भेजा था। इसमें कोयला मंत्रालय को बताया गया था कि जेबीसीसीआई- की छह बैठकें हो चुकी हैं। प्रबंधन ने पत्र में कोयला मंत्रालय को बताया था कि जेबीसीसीआई के यूनियन सदस्यों को बताया जा चुका है कि डीपीई के कार्यालय ज्ञापन दिनांक 24/11/2017 में निहित प्रावधानों के तहत ही वेतन समझौते को अंतिम रूप दिया जाना है, जैसा कि डीपीई गाइडलाइन के तहत अन्य सीपीएसई में वेतन समझौता होता है।
सीआईएल निदेशक ने अपने पत्र में कहा था कि जब तक डीपीई की गाइडलाइन में छूट नहीं दी जाती कोयला कामगारों के 11वें वेतन समझौते को लेकर आगे बढ़ना संभव नहीं है। पत्र में कर्मचारियों और अधिकारियों के वेतन में ओवरलैपिंग की बात भी लिखी गई थी और कहा गया है कि ऐसा होने से कामगारों और अधिकारियों के मध्य वेतन संघर्ष की स्थिति निर्मित होगी।
सीआईएल के इस पत्र के आलोक में कोयला मंत्रालय ने वित्त मंत्रालय के लोक उद्यम विभाग को कार्यालय ज्ञापन दिनांक 24/11/2017 में निहित प्रावधानों में छूट देने की अनुशंसा की थी। बताया गया है कि पत्र में 8वें वेतन समझौते के दौरान भी इस तरह की छूट दी गई थी।
इधर, बताया गया है कि वित्त मंत्रालय के लोक उद्यम विभाग द्वारा कोयला मंत्रालय के पत्र पर कोई संज्ञान नहीं लिया गया है। लिहाजा प्रबंधन 30 नवम्बर को होने जा रही जेबीसीसीआई की बैठक में छूट नहीं मिलने संबंधी मुद्दे को ला सकता है। चुंकि डीपीआई से इस संदर्भ में कोई निर्देश नहीं मिला है ऐसे में वेतन समझौते संबंधी सकारात्मक चर्चा की संभावना कम दिख रही है। प्रबंधन 10 फीसदी एमजीबी पर ही अटका रह सकता है।
BMS डीपीई को मुद्दा नहीं मानता
एक प्रमुख यूनियन भारतीय मजदूर संघ (BMS) डीपीई की गाइडलाइन को वेतन समझौते में बाधा नहीं मान रहा है। बीएमएस के कोल प्रभारी के.लक्ष्मा रेड्डी ने साफ तौर पर कहा था कि यह कोई मुद्दा नहीं है। हाल ही में अखिल भारतीय खदान मजदूर संघ (ABKMS) के महामंत्री सुधीर घुरडे ने भी कहा था डीपीई को लेकर अन्य यूनियन द्वारा गुमराह किया जा रहा है। वेतन समझौते में डीपीई की गाइडलाइन कोई अड़चन नहीं है। घुरडे ने निदेशक कार्मिक विनय रंजन के बीसीसीएल दौरे के दौरान मीडिया के दिए गए उस बयान का भी हवाला दिया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि वेतन समझौते में डीपीई की गाइडलाइन कोई बाधा नहीं है। निदेशक कार्मिक के अनुसार कंपनी के अधिकारियों और कर्मचारियों के बीच वेतन विसंगति के मामले को डीपीई से अवगत करा दिया गया है और इस संदर्भ में डीपीई से दिशा निर्देश मांगा गया है। कोल सेक्टर को सबसे बड़ा श्रमिक संगठन एचएमएस सहित सीटू, एटक के नेता बीएमएस नेताओं के बयान से कतई वास्ता नहीं रखते हैं।
आंदोलन के डर से ही सरेंडर हो सकता है प्रबंधन
सूत्रों की मानें तो जेबीसीसीआई 7वीं बैठक कोई खास नतीजा लेकर नहीं आ रही है। क्योंकि सीआईएल प्रबंधन डीपीई के ऑफिस मेमेरेंड्म का उल्लंघन शायद ही करेगा। डीपीई से छूट संबंधी को निर्देश मिलने के बाद प्रबंधन एमजीबी पर कुछ आगे बढ़ सकता है, लेकिन छूट संबंधी कोई निर्देश अभी नहीं मिलना बताया गया है। ऐसे में आज होने जा रही बैठक में रार की स्थिति बन सकी है।
यूनियन को बनाए रखनी होगी एकता
हालांकि अभी चारों यूनियन में एकता जैसी स्थिति बनी हुई है, लेकिन डीपीई के मामले में बीएमएस ने अलग राह पकड़ रखी है। प्रबंधन डीपीई की गाइडलाइन के अनुसार चर्चा पर अड़ा तो एचएमएस, सीटू, एटक मुखालफत कर सकते हैं, लेकिन डीपीई के मामले में बीएमएस के साथ रहने की संभावना कम दिख रही है। क्योंकि बीएमएस का सीधे तौर पर केन्द्र की सत्ता में काबिज भाजपा के पितृ संगठन राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ से है। बीएमएस के कोल प्रभारी केन्द्र सरकार के खिलाफ नहीं जाना चाहते है।