– मनपा के तथाकथित प्रवक्ता ने अपने अल्पकालीन नियुक्ति काल पर दिया था बयान,जो हकीकत साबित हो रहा
नागपुर :- केंद्र सरकार की पहल पर देश के चुनिंदा शहरों को स्मार्ट सिटी बनाने की योजना आंकी गई थी,जिसमें सत्ताधारी पक्ष की शिफारिश पर नागपुर को भी शामिल किया गया था, इस योजना के तहत ‘नोडल एजेंसी’ नागपुर महानगरपालिका को सैकड़ों करोड़ रूपए योजना को सफल बनाने के लिए दिए गए लेकिन विडंबना यह है कि योजना के अनुरूप रत्तीभर ‘डेवलपमेंट’ नहीं हो पाया दूसरी ओर मिला अनुदान का बड़ा हिस्सा खर्च हो चूका हैं,अर्थात बंदरबांट हो चूका हैं.इसका अंदाजा उक्त तथाकथित प्रवक्ता को था इसलिए उन्होंने जो बयान तब दिया था,आज सच साबित हो रहा हैं.
याद रहे कि स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट नागपुर मनपा के अधीन आते ही उसे मनपा मुख्यालय के सबसे ऊपरी हिस्सा अर्थात छठा व सांतवा फ्लोर दिया गया.प्रकल्प को कंपनी एक्ट में पंजीकृत कर प्रकल्प के हिसाब से उच्च से उच्च मासिक वेतन श्रेणी में भर्तियां की गई,इस क्रम में मनपा के मूल कर्मी जो जुगाड़ू थे उन्हें प्रतिनियुक्ति पर प्रकल्प का हिस्सा बनाया गया.कुछ भर्तियां सत्ताधारी पक्ष के सिफारिशों पर की गई.बाहरी प्रोफेशनल और मनपा के गैर प्रोफेशनल कर्मियों ने शुरुआत से स्मार्ट सिटी प्रकल्प को हकीकत में न बदलते हुए कागजी घोड़े दौड़ा दौड़ा कर मासिक वेतन उठाते रहे.
सफेदपोश और खाकीधारी की जुगलबंदी के कारण सत्ताधारी सफेदपोश के सिफारिश पर प्रकल्प सम्पूर्ण शहर के बजाय पूर्व नागपुर को विकसित करने की योजना तैयार की गई.प्रकल्प के नियमावली के अनुसार प्रकल्प बाधितों को आजतक न्याय नहीं मिला।न ही प्रकल्प का मुख्य उद्देश्य पूरा क्या 25 % भी पूरा नहीं हुआ.
स्मार्ट सिटी के तहत सम्पूर्ण शहर में CCTV लगाए गए,स्मार्ट बस स्थानक और उसमें अत्याधुनिक कीओस्क स्थापित किये गए.CCTV बहुतेक चौराहों पर बंद है,क्यूंकि नियोजन आभाव में पहले लगाए गए फिर उखड़े गए फिर अन्य जगह लगाए जा रहे.बस स्थानकों के शत प्रतिशत कीओस्क बंद पड़े है,अर्थात शुरू ही नहीं किये गए.इसकी मुख्य वजह है स्मार्ट सिटी में तज्ञ अधिकारियों के बजाय जुगाड़ुओं की भीड़ हैं.
इसके बाद प्रकल्प पूर्ण होने के बाद प्रकल्प में आवाजाही की सुविधा हेतु परिवहन की व्यवस्था की जनि थी,लेकिन प्रकल्प पूरी होने में दशक लगने वाली है,बावजूद उधर ध्यान देने के बजाय स्मार्ट सिटी के अधिकारियों ने ऊपरी कमाई के उद्देश्य से 40 इलेक्ट्रिक बस उतारने का टेंडर आनन्-फानन में जारी कर अपने व्यक्तिगत उद्देश्य से वाकिफ करवा दिया।
क्यूंकि स्मार्ट सिटी में सभी की नियुक्तियां अधिकतम 3-3 वर्ष के कॉन्ट्रैक्ट पर आधारित है लेकिन इनसे प्रकल्प को क्या फायदा हुआ उसका अंकेक्षण कर आगे का कार्यकाल बढ़ाने जैसी पहल के बजाय सफेदपोश और स्मार्ट सिटी के अधिकारियों के सिफारिश पर अमूमन सभी ऐश कर रहे और सरकारी राजस्व को चुना लगा रहे…….. शायद इसे ही कहते है अंधेर नगरी चौपट राजा।
अब पिछले कुछ सप्ताह से स्मार्ट ट्रैफिक बूथ लगाने का उद्योग शुरू हैं.
उल्लेखनीय यह है कि एमओडीआई फाउंडेशन ने उक्त तथाकथित प्रवक्ता को केंद्र सरकार से उसकी सफल भविष्यवाणी के लिए सम्मानित करने की गुजारिश की हैं.