“वर्ष की अंतिम सुबह बगीचों में…

– लड़कियों के पीछे भागता और बिगड़ता बचपन”

नागपुर :- वर्ष 2024 को आज विदाई की सुबह का समय बगीचों का दृश्य देख अचंभित हूं…,दृश्य देखा “बगीचों में लड़कियों के पीछे भागता व बिगड़ता बचपन”। मैदानों और झूलों की जगह लड़कों के छोटे-छोटे झुंड अब बगीचों में एक अलग तरह की “खेल” में व्यस्त नजर आते हैं। यह खेल है लड़कियों को ताकने, फब्तियां कसने और पीछा करने का।

इस बदलते परिदृश्य का सबसे बड़ा शिकार हैं वे मासूम लड़कियां, जो सुकून और ताज़गी की तलाश में बगीचे का रुख करती हैं। वे शायद ही अंदाज़ा लगा पाती हैं कि उनके शांत पल किसी की शरारती नजरों के निशाने पर हैं। लड़कों के लिए यह सब एक मज़ाक भर है, लेकिन इसके पीछे उनके बिगड़ते संस्कार और जिम्मेदारी की कमी उजागर होती है। ऐसा नहीं कि सिर्फ लड़के की इसके लिए जिम्मेदार है…लड़कियों की तरफ से मिलती सहमति भी इसके लिए जिम्मेदार है।

बगीचों में अब वह खेल-कूद नहीं दिखता, जहां लड़के और लड़कियां साथ हंसी-मजाक और दोस्ती करते थे। लड़के झुंड बनाकर अपनी ताकत और सामर्थ्य को गलत दिशा में लगाने लगे हैं। वे लड़कियों का पीछा करना, उन पर टिप्पणियां करना, और खुद को “हीरो” साबित करने की कोशिश करते नजर आ रहे थे।

इस समस्या के मूल में कई बातें हैं। समाज में बच्चों को सही संस्कारों की कमी, सोशल मीडिया पर दिखाए जाने वाले गलत आदर्श, और माता-पिता की उपेक्षा ने इस स्थिति को और गंभीर बना दिया है। घर में कोई यह सिखाने वाला नहीं कि दूसरों का सम्मान कैसे किया जाए। स्कूल और समाज भी इस दिशा में उदासीन हैं।

उन लड़कियों को इस स्थिति का सामना करने के लिए मजबूर होना पड़ता है जो स्वच्छ उद्देश्य से पार्क में आती है। कई बार वे डर के कारण पार्क जाना बंद कर देती हैं, जिससे उनकी आज़ादी और मानसिक शांति पर असर पड़ता है। वहीं, लड़कों के ऐसे व्यवहार को नजरअंदाज करना उनके लिए यह संकेत देता है कि ऐसा करना “सामान्य” है।

यह समझना जरूरी है कि बचपन का यह दौर केवल शरारतों और मौज-मस्ती के लिए नहीं, बल्कि सीखने और जीवनभर के संस्कारों की नींव रखने का है। अगर इस उम्र में लड़कों का व्यवहार इस तरह से बिगड़ता है, तो बड़े होकर वे समाज के लिए बोझ बन सकते हैं।

आने वाले नववर्ष की सुबह हमें यह संकल्प कर सुनिश्चित करना होगा कि बगीचे केवल ताजगी और आनंद के केंद्र बने रहें, न कि असभ्यता और असुरक्षा के। माता-पिता, शिक्षकों और समाज को मिलकर बच्चों को सिखाना होगा कि सम्मान और सह-अस्तित्व क्या होता है।

*बगीचों में सिर्फ फूल खिले, संस्कार भी खिलें—तभी बचपन सही मायने में महकेगा।*

– डॉ. प्रवीण डबली वरिष्ठ पत्रकार, योग थेरेपिस्ट, सामाजिक कार्यकर्ता

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