संत मीरा बाई ने किया था सती प्रथा का विरोध

– मैं गिरधर गास्यां सती ना जास्यां

– महारासलीला मे मीरा बाई की असीम भक्ति का अनन्य चित्रण

नागपुर :- नागपुर महानगरपालिका तथा लोटस कल्चरल एण्ड सपोर्टिंग असोसिएशन द्वारा पूर्व महापौर दयाशंकर तिवारी के संयोजन में वृंदावन के जग प्रसिद्ध स्वामी कृष्ण मुरारी के निर्देशन में 12 जनवरी 2025 तक पंद्रह दिवसीय श्री कृष्ण चरित्र महा रास लीला का आयोजन भक्तिमय वातावरण में शुरू है आज का लीला प्रसंग मीरा बाई का होने के कारण आज प्रारम्भिक पूजन पूर्व महापौर दया शंकर तिवारी के साथ समस्त मातृ शक्ति ने किया. मुख्य रूप से मंदा पाटिल मंजू कुम्भलकर शोभा आंभोरे कमला पांडे पूजा मिश्रा सुधा यादव आभा चंदेल ने किया.

आज की लीला अंतर्गत भक्त मीरा बाई की अद्भुत लीला के दर्शन कर जनता निहाल हो गई. लीला अंतर्गत बताया गया कि मीरा बाई ने अपने पूर्व जन्म में बृज में गोपी के रूप में जन्म लिया था. बृज में ही उनका विवाह भी हुआ था. विवाह से पूर्व ही उनकी माता उन्हें ताकीद करती है कि कृष्ण के दर्शन नहीं करना क्योंकि जो भी उनका दर्शन करते है वो उन्हीं के होकर रह जाते हैं. एक प्रसंग अनुसार पूर्व जन्म की गोपी स्वरूपा मीरा कुछ गोपियों के साथ बृज में विचरण कर रही होती है तब श्री कृष्ण उन्हें अपना मुख दिखाने का आग्रह करते हैं. लेकिन वे अपनी माता के वचनों का स्मरण करके मुख दिखाने से मना कर देती हैं. उधर बृज वासियों द्वारा गिरिराज पूजन करने के कारण देवराज इंद्र मूसलाधार बारिश कर देते हैं. कृष्ण अपने हाथ की सबसे छोटी उंगली तर्जनी पर गिरिराज को धारण कर बृज की रक्षा करते हैं. श्री कृष्ण के इस अनन्य साधारण पराक्रम को देखकर गोपी रूप मीरा उनके दर्शन करने आती है. कृष्ण उन्हें अगले जन्म में प्राप्त होने का वचन देते हैं.

इसके बाद कलियुग में राजस्थान के मेढता ग्राम में मीराबाई जन्म लेती है. एक दिन गाँव में साधुओं की मंडली आती है. उनके पास श्री कृष्ण की प्रतिमा देखकर मीरा बाई उनसे उस प्रतिमा की मांग करती है. साधुओं के मना करने पर वह प्रण ले लेती है कि जब तक साधु उन्हें वह भगवान श्री कृष्ण की प्रतिमा नहीं देंगे तब तक वह अन्न जल ग्रहण नहीं करेंगी. उनके इस भगवान के प्रति प्रेम हट को देखकर साधु उन्हे वह प्रतिमा देने को राजी हो जाते है तथा वह प्रतिमा उनके सुपुर्द कर देते हैं.

मीरा बाई का विवाह राणा भोजराज के यहाँ संपन्न होता है. जब ससुराल में उनसे गण गौर पूजन करने को कहा जाता है तो वे कह देती है कि मेरो तो गिरधर गोपाल दूसरों न कोय जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोय

इस प्रकार वे श्री कृष्ण के अतिरिक्त अन्य किसी के भी पूजन से मना कर देती हैं उनके इस व्यवहार के कारण कृष्ण भक्ति के चलते उन्हें ससुराल में ना ना प्रकार की यातनाएं दी जाती है. पति के स्वर्ग वास होने के बाद उन्हें सती होने के लिए भी कहा जाता है तब वे एक पद लिखती है तथा स्पष्ट रूप से सती प्रथा का विरोध कर ये पद लिखा मैं गिरधर गास्यां सती ना जास्यां………

इसके बाद उनकी प्रताड़ना के तमाम प्रयास किए जाते है. कभी उनके ईश्वर की प्रतिमा चुरा ली जाती हैं, कभी उन्हें कांटों की सेज पर सुलाया जाता है, कभी उनके चरित्र पर घृणित लांछन लगाने का प्रयास किया जाता है, कभी उनके पास सांप भेजकर उन्हें सांप से डसाने की कोशिश की जाती है,तो कभी उन्हें विष देकर उनकी प्राण लीला समाप्ति का कुत्सित प्रयास होता है. इस तरह विभिन्न प्रकार से उन्हें मारने की अनवरत कोशिशें की जाती है लेकिन उनके आराध्य मुरलीधर की कृपा से सारे प्रयास व्यर्थ जाते है. उनकी अनन्य भक्ति के कारण उन पर श्री कृष्ण की असाधारण कृपा हमेशा बनी रहती है हर बार स्वयं श्री कृष्ण उन्हें बचा लेते हैं. अंत में उनकी कृष्ण भक्ति तथा श्री कृष्ण की उन पर असीम कृपा को देख कर चित्तौड़ वासी उनको चित्तौड़ में रोकने के लाखों प्रयास करते है लेकिन मीरा बाई वृंदावन की ओर प्रस्थान कर लेती है. कल की लीला में संत नरसी मेहता का चरित्र नानी बाइ का मायरो प्रसंग के दर्शन होंगे.

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