प्रदूषण विभाग से एनओसी नहीं ली गई , विभाग मौन

– कृष्णा पिंग एलाइस खदान कंपनी ने अवैध उत्खनन के साथ कर दिया विस्थापित , पीड़ितों ने न्याय की लगाई गुहार 

छिन्दवाडा :- कृष्णा पिंग एलाइस खदान कंपनी ने प्रदूषण विभाग से एनओसी नहीं ली गई । वरिष्ठ अधिकारी को गुमराह करने के लिए कृष्णा पिंग एलाइस खदान कंपनी के डायरेक्टर परिक्षेत्र के बाहरी लेबरों को लाकर अधिकारियों को ऐसा दिखाते हैं कि यहां कोई भी समस्या नहीं है। और बाहरी ही लेबरों को झूठ बुलवाते हैं । जबकि वरिष्ठ अधिकारियों ने वहां का दौरा किया तो सच का सच और झूठ का झूठ सामने साबित होगा । कंपनी के लिज़ के बाहर के खेतों में अतिक्रमण कर किसानों के खेतों में खोदी हुई मिट्टी यो को डम्प किया जा रहा है । अभी तो भी जागे मध्यप्रदेश शासन अन्यथा किसानों की तिव्र आंदोलन करने की चेतावनी की है । कंपनी की बड़ी-बड़ी लोडेट गाड़ियां कुडम गांव के बीच में से चलती है जबकी कंपनी लिज़ मंजूर ( सैंन्सन ) करते वक्त कंपनी के डायरेक्टर गांव के 200 मीटरबाहर से रोड कंपनी से लेकर मेन रोड हाईवे तकरोड बनाना जाएगा यह लिखित में देने के बाद भी वर्ष 2002 से आज तक किया नहीं गया । गांव वाले कंपनी सेे बोहत ट्र त्रस्त हैैं । इसी कड़ी में कुछ वर्षों पहले तीन लोगों की में जान गई। फिर भी कंपनी ने रोड बाहर से नहीं बनाया ग्रामवासियों कि और से प्रशासन से मांग करतेेे हैं कि कंपनी ने 200 मीटर बाहर स रोड बनाया नहीं तो गांव से गाड़ियां का आनाा जाना तत्काल बंद कराई जाये ऐसी मांंग ग्रामवासियों ने की है ।

छिन्दवाडा विस्थापित आदिवासी विस्थापितों का एक समूह आज सौंसर के कच्चीढाना से निकलकर जिला प्रशासन से मिला और ज्ञापन सौंपा । 175 से भी ज्यादा आदिवासी परिवार आज अपने ही जमीन से बेघर करके नई बस्ती जा पहुंचे है जहां पर वे आज भी दलित , शोषित तो है ही साथ विस्थापित होने का दंश झेल रहे है । आदिवासी विस्थापितों की ओर से आज जिला प्रशासन को ज्ञापन सौंपते हुए प्रेस वार्ता में अधिवक्ता नरेश कड़वे ने मीडिया से रूबरू होते हुए बताया कि कच्चीढाना के लोग एससी , एसटी है और वे संवैधानिक हित की लड़ाई लड़ रहे है । आदिवासी की कृषि भूमि पर जमीन पर अतिक्रमण करते हुए कृष्णा पिंग माइनिंग कंपनी ने उनकी जमीन छीन ली और अतिक्रमण करते हुए उनकी पुरानी बस्ती को उठाकर नई बस्ती बना दी और नई बस्ती के पट्टे भी नहीं दिए गए । ग्रामवासियों का कहना हैै । कि यद्यपि यह मामला कोर्ट में लंबित है फिर भी पुर्नवसित बस्ती में मंदिर , मस्जिद , आंगनवाडी जैसी सुविधाएं भी प्रदान नहीं की है । बार बार शिकायत करने के बाद भी प्रशासन का ध्यान इन गरीब आदिवासियों तक नहीं पहुंचा ।

निर्वासित बस्ती में कंपनी ने नहीं उपलब्ध कराई बुनियादी सुविधाएं 

कंपनी द्वारा पुर्नवसन के नाम पर जो मकान बनाकर दिए गए है उनका न तो उन्हें न तो पट्टा दिया गया है और न ही मूलभूत सुविधाएं प्रदान की गई है । बिजली , नल , नाली , मंदिर , मस्जिद , स्कूल , छायादार वृक्ष जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित करते हुए आज भी विस्थापितों की जिंदगी जी रहे 175 से लेकर 250 परिवार उपेक्षा का शिकार हो रहे हैं । कृष्णा पिंग एलायंस कंपनी के द्वारा भोले भाले व्यक्तियों को तंग और परेशान किया जा रहा है । कंपनी के डायरेक्टर संजीव खंडेलवाल और मैनेजर अनिल भापकर निरंतर झूठे अपराधिक केस में फंसाने की धमकी देते है , साथ ही इन आदिवासियों का आरोप है कि एसडीओपी सौंसर भी कंपनी के साथ है और उन्हें कभी भी झूठे मामले में फंसा सकते हैं ।

कंपनी ने शासकीय स्टॉपडैम को भी किया तहस नहस

गांव के उपसरपंच चंद्रशेखर सोमकुंवर ने बताया कि कंपनी द्वारा राजीव गांधी जलग्रहण मिशन के तहत बनाए गए दो स्टॉपडैम को भी तहस नहस करते हुए खुदाई कर डाली 2005 में बने शासकीय डैम अब नदारद है । वहीं फैक्ट्री से निकला हुआ गंदा पानी जल प्रदूषण के साथ साथ रहवासी बस्ती में भी गंदगी फैला रहा है । शासकीय स्कूल के पास ही मशीनों से हो रहे ध्वनि प्रदूषण से बच्चे अब पढने की स्थिति में नहीं है । ग्रामीणों को बरगलाकर ली गई जमीन के मालिक आज भी लगभग 250 आदिवासी परिवार इस कंपनी के अत्याचारों से परेशान है और जिला प्रशासन के आगे न्याय की गुहार लगा रहे है । गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के सचिव ने बताया कि 27 नवंबर 2021 को की गई शिकायत के उपरांत भी आज तक एसडीओपी सौंसर द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गई है । अपनी आंखों के सामने अपनी जमीन को तहस नहस होता देख ये आदिवासी गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के सानिध्य में एक बड़ा आंदोलन करने की कार्ययोजना बना रहे है । अगर शासन इनकी मांगों की तरफ गंभीरता से विचार नहीं करता है तो निश्चित रूप से यह मामला किसी बड़े गंभीर परिणाम की परिणीति में बदल सकता है । कृषक रामकृष्ण धुर्वे ने बताया कि आज भी उनके पास में पांच एकड़ कृषि भूमि तो है परंतु माइनिंग द्वारा खोदे गए गड्ढे और प्रदूषण के कारण अब वह कृषि योग्य नहीं बची है । झूठ बोलकर कंपनी द्वारा 15 से 20 एकड़ का रकबा धोखाधड़ी और झूठे वादे के साथ गरीब आदिवासियों से छलकपट के माध्यम से लिया गया है और दहशत के साएं में लगभग दो सौ परिवार शासन से न्याय की गुहार लगा रहे है । आज यह प्रश्न उठ रहा है कि क्या इन गरीब आदिवासियों की लड़ाई किसी सार्थक निर्णय पर पहुंच पाएगी और इन गरीबों को न्याय मिल पाएगा या फिर वही कंपनी के पूंजीपति अपनी प्रभाव दबाव से ग्रामीणों को दबाने में सफल हो जाएंगे ।

 

 

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