मिहान को छोड़ दिया गया लावारिस, CM शिंदे ने नहीं ली एक भी बैठक 

DCM के निर्णय पर अमल नहीं

VCMD बोल कर मुकर रहे, बढ़ी नाराजगी

नागपुर :- मिहान की जटिल समस्याओं को दूर करने की जिम्मेदारी एमएडीसी के छोटे-छोटे अधिकारियों पर डाल दी गई है जो वर्षों से हल नहीं हो रही हैं.

करोड़ों निवेश करने वाले रात-दिन परेशान हाल हैं. ऐेसे में उम्मीद थी कि राज्य के मुख्यमंत्री और महाराष्ट्र एयरपोर्ट विकास कंपनी (एमएडीसी) के अध्यक्ष कुछ समय निकालकर करोड़ों रुपये निवेश करने वाले उद्यमियों को राहत प्रदान करेंगे लेकिन 8 माह बीतने के बाद भी सीएम को बैठक लेने की फुर्सत नहीं मिली.

डीसीएम ने विधानसभा सत्र के दौरान कुछ बैठकें की थीं और आदेश-निर्देश जारी किया था. बावजूद इसके अधिकारियों ने उनके आदेश-निर्देश को भी ठंडे बस्ते में डाल दिया है. अब रही बात वीसीएमडी की, तो वे नागपुर आते नहीं. आने का आश्वासन दिया था लेकिन अब तक मुहूर्त निकल नहीं पाया है. बीच मंझधार में निवेशक फंसे हुए हैं. करोड़ों का दांव खेल वे खुद को असहज समझ रहे हैं.

सीएम अगर बैठक लेते तो निश्चित रूप से नीचे दबाव रहता लेकिन उनके बैठक नहीं लेने से शायद गलत संदेश अधिकारियों के बीच गया है. अधिकारियों के साथ मिहान परिसर में 2-2 बैठकें स्टेकहोल्डर्स की हो चुकी हैं. कई स्टेकहोल्डर्स ने एमएडीसी के अधिकारियों पर काम नहीं करनेसीधा आरोप लगाया था. इसके बाद एमएडीसी के 2-3 अधिकारियों के साथ स्टेकहोल्डर्स की बैठक हुई जिसका भी सुफल नहीं निकला. मामला जस का तस पड़ा हुआ है. जानकारी के अनुसार बैठक के बाद अधिकारी मुंबई चले गए और उनके साथ ही समस्याओं वाली फाइल भी चली गई. एक भी स्टेकहोल्डर का समाधान नहीं निकला.

उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की सलाह पर बनी बिजनेस एडवाइजरी कमेटी (बीएसी) ने पहल की और 23 जनवरी को हुई बैठक बुलाई. बैठक के पूर्व उपाध्यक्ष दीपक कपूर ने आश्वासन दिया था कि ताबड़तोड़ समस्याओं का निदान निकालेंगे. बैठक में समस्याएं सुनी गईं. इसके बाद उन्होंने नागपुर आकर बैठक लेने का आश्वासन भी दिया था.

आज फरवरी का दूसरा सप्ताह शुरू हो चुका है लेकिन उपाध्यक्ष का आना तय नहीं हो पाया है. अब बीएसी के सदस्यों को भी लगने लगा है कि मामले को केवल टाला जा रहा है, जबकि बीएसी के सदस्यों ने अपने पत्र में स्पष्ट रूप से कहा था कि इन मुद्दों को उपमुख्यमंत्री के समक्ष रखेंगे. इससे स्पष्ट होता है कि एमएडीसी के अधिकारियों में मिहान को लेकर कोई गंभीरता है ही नहीं. लाखों-करोड़ लाखों-करोड़ निवेश करने वाले उद्यमियों को सहूलियत देने के लिए भी कोई रूपरेखा नहीं है.

इज ऑफ डूइंग केवल कागजों पर

मिहान के मामले में इज ऑफ डूइंग बिजनेस महज कागजी है क्योंकि यहां पर एक-एक फाइल को क्लियर करने में 2-2, 3-3 वर्ष लग रहे हैं. छोटे-छोटे निर्णय लेने में 3-4 माह लगना सामान्य है. सड़क, सुरक्षा, शौचालय जैसे मामले भी नागपुर कार्यालय निपटाने में सक्षम नहीं है. हर फाइल मुंबई भेजना मजबूरी है. न यहां पर निर्णय लेने वाले अधिकारी बैठाए जा रहे हैं और न ही मिहान को ‘उड़ान’ भरने दिया जा रहा है. सपने देखने की आदत हमारी और बढ़ती जा रही है.

गडकरी की पहल भी थमी

1 जुलाई 2022 को केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने समस्याओं के निवारण के लिए सभी बड़े अधिकारियों के साथ बैठक का आयोजन किया था लेकिन सरकार बदली और बैठक स्थगित हो गई. बैठक होती तो निश्चित रूप निश्चित रूप से ‘जिम्मेदारी’ तय हो जाती. अलग ‘अथॉरिटी’ बनाने के पक्ष में कई विधायकों का पत्र भी गडकरी को मिला था जिसके बाद एजेंडा तय किया गया था. न तो जिम्मेदारी तय हो पाई और न ही अथॉरिटी बनाने पर चर्चा हुई. राज्य के अधिकांश वरिष्ठ सचिवों को लेकर बैठक करने का टाइम निश्चित रूप से आ गया है ताकि मिहान की समस्याओं का समाधान हो और विदर्भ के युवाओं को रोजगार मिल सके.

 

 

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