– आजतक जिसने किया उन्हीं में से एक ने बाजी मारी
नागपुर :- विगत माह लोकसभा चुनाव को लेकर नागपुर के सांसद ने एक सार्वजनिक मंच से कहा था कि वे चाय-पानी का खर्च नहीं करेंगे,जिन्हें वोट देना हो दे अन्यथा घर बैठना पसंद करेंगे। अगर उन्हें तीसरी बार उनके पक्ष ने उम्मीदवारी दी तो….
उक्त सांसद के बयां में कोई दम नहीं था,उनकी कथनी और करनी में काफी बड़ा फर्क अमूमन सभी को भलीभांति मालूम है जो उन्हें या उनकी कार्यशैली को जानते हैं.इस सांसद ने पिछले दो लोकसभा चुनाव करोड़ों में खर्च कर जीती।जिस किसी ने प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष हाथ मड़ोड़ी,सभी को कम से कम पांच आंकड़ों में चाय-पानी का खर्चा सांसद के करीबियों द्वारा विधिवत दिया गया ताकि चुनाव आयोग या विपक्षी खेमे को खुलेआम लेन-देन न दिखे।
लाभार्थियों में सांसद के पक्ष के बड़े से बड़ा पदाधिकारी,चाय-पानी का खर्चा बांटने वाले से लेकर पक्ष के गली तक के मजबूत कार्यकर्ताओं का समावेश था.लाभार्थियों में सहयोगी पक्षों,वोट कटुआ उम्मीदवारों,विपक्ष के बड़े पदाधिकारियों, प्रभावी सामाजिक सह अन्य संगठनों के पदाधिकारियों का समावेश था.
उल्लेखनीय यह है कि चुनाव आयोग द्वारा तय खर्च सीमा से ज्यादा अर्थात दोगुणा खर्च उम्मीदवार ने मीडिया और मिडिया क्षेत्रों से जुड़े खुद के सलाहकार मंडली पर खर्च किए.फिर भी उम्मीदवार को मनमाफिक INPUT नहीं मिला,पिछले 2 लोकसभा चुनावों में.
उक्त खर्चो के बावजूद उक्त उम्मीदवार खुलेआम कह रहा कि इस बार चाय-पानी का खर्च नहीं देंगे या करेंगे। जबकि पिछले 2 चुनाव विकास या पक्ष या व्यक्तिगत छवि के कारण नहीं बल्कि खर्चा-पानी भरपूर करने के कारण जीते।इसी खर्चा-पानी में विपक्षी याने कांग्रेसी उम्मीदवार काफी पीछे रह गए.
जहाँ तक नागपुर शहर लोकसभा चुनाव का सवाल है यह चुनाव जाति की राजनीति से कोसों दूर रहती हैं,इसलिए नागपुर शहर का लोकसभा में अल्पसंख्यक समुदाय के उम्मीदवार अधिकांश प्रतिनिधित्व करते रहे है जैसे बनवारी लाल पुरोहित, विलास मुत्तेमवार,नितिन गडकरी आदि।
चुनाव आयोग की कार्यशैली पारदर्शी नहीं
देश का हो या राज्य का चुनाव आयोग अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करने में असमर्थ है,वह सत्तापक्ष के इशारे पर कठपुतली बन गई है.क्या उन्हें नागपुर जिले के पिछले 2 लोकसभा चुनाव में तय सीमा से कई गुणा अधिक खर्च होते नहीं दिखी,अगर चुनाव आयोग के प्रतिनिधि सिर्फ मीडिया हाउस,मिडिया प्रतिनिधियों,मिडिया संगठनों के पदाधिकारियों पर ही नज़र रखती तो दूध का दूध और पानी का पानी हो गया होता।मीडिया किसी भी उम्मीदवार का खासकर चुनावी मौसम में फ्री में प्रचार-प्रसार नहीं करती है.मीडिया मैनेज है तो पक्ष में भले कम लिखे लेकिन विपक्षी बम को भी सबूत रहने के बाद नहीं लिखती या दिखाती।जिले की मीडिया भी उम्मीदवारों के अनुरूप वर्षभर सक्रिय रहती हैं ,भले ही अलग-अलग खेमा बनाकर हो.
क्या भाजपा उम्मीदवार बदलेगी
चर्चा है कि मोदी-शाह अपने ही पक्ष के कट्टर प्रतिद्वंद्वी गडकरी का पत्ता काटने की जुगत लगा रहे हैं.ताकि तीसरे कार्यकाल के हीरो खुद रहे.पिछले 2 टर्म में गडकरी के विभागों के कामकाजों को दिखाकर देश में वाहवाही लूटी,दूसरे टर्म में तो विभाग गडकरी का और उद्घाटन मोदी करके खुद की पीठ थपथपा रहे हैं.
इसलिए उम्र/बीमारी या अन्य ख्वाब भरी आश्वासन देकर गडकरी को घर बैठाने का प्लान हो रहा है,इस क्रम में अगर गडकरी को तन-मन-धन से पक्ष में नहीं लिया गया और अचानक में भयानक निर्णय लेते हुए गडकरी की टिकट काटी गई तो आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा को लगभग एक दर्जन लोकसभा सीटों का पिछले 2 चुनावों के मद्देनज़र गंवानी पड़ सकती हैं या विरोधाभास में गिरा दी जाएगी।
गडकरी का पर्यायी कौन……..निःसंदेह दटके
अगर मोदी-शाह ने गडकरी की टिकट काटी तो यह भी विचार शुरू है कि गडकरी का गडकरी सा भाजपा के पास पर्यायी उम्मीदवार कौन हो सकता है.देवेंद्र फडणवीस कतई नहीं क्यूंकि वे अब राष्ट्रीय नेता है,उन्हें लोकसभा जैसे चुनाव में नागपुर शहर तक बांधना पक्ष के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता हैं.इसके बाद एक ही नाम है भाजपा MLC प्रवीण दटके।वे इसलिए भी उपयुक्त हो सकते है क्यूंकि इनके साथ जात-पात का झंझट नहीं है,इससे पहले पुरोहित,मुत्तेमवार, गडकरी भी इसी तर्ज पर लोकसभा पहुंचे।इसलिए भाजपा कुनबी-तेली उम्मीदवार का रिस्क लेकर चुनावी आफत मोल नहीं लेगी।
दटके उम्मीदवार रहे तो विपक्षी उम्मीदवार को काफी अड़चनों खासकर अंदुरुनी कलहों का सामना करना पड़ सकता है, क्यूंकि दटके का विरोधाभास पक्ष में वह भी उंगलियों पर गिनने लायक है,विपक्षी दलों में अच्छी-खासी पैठ हैं.इसका नज़ारा देखने को मिल सकता है बशर्ते लोकसभा की उम्मीदवारी मिले।
कांग्रेस ने ईमानदारी से उम्मीदवारी दी तो…… वंजारी उपयुक्त
नागपुर लोकसभा चुनाव की जब जब चर्चा होती है तो कांग्रेस पक्ष को हमेशा सक्षम उम्मीदवार न होने की चिंता सताने लगती है.क्यूंकि शहर में राजनीति करने वाले पूर्व कांग्रेसी सांसदों ने पर्यायी नेतृत्व पैदा नहीं होने दिया,राज्य की राजनीती करने वाले तथाकथित कांग्रेसी नेता राज्य से निकल कर देश का प्रतिनिधित्व करे,ऐसी न सोच रखी और न बन कर उभरे नतीजा हर बार सक्षम उम्मीदवारों का टोटा।
कांग्रेस ने स्थानीय स्तर तक कुनबी समुदाय तक खुद को सिमित रखा,चुनावी मामला आते ही दलित और मुस्लिम को गले लगाया ,वही दूसरी ओर तेली बहुल समुदाय कांग्रेस से दूर और भाजपा के करीबी रहे लेकिन वक़्त जब जब तेली समुदाय पर आई तो एकजुटता दिखाई,यही हाल हलवा समुदाय का भी रहा.
उक्त मामलों,मुद्दों का चिंतन समीक्षा कर यह निष्कर्ष सामने आया कि कांग्रेस ने ईमानदारी से उम्मीदवारी तय की तो MLC अभिजीत वंजारी सबसे उपयुक्त उम्मीदवार हो सकता है,इसे उम्मीदवारी दी गई तो भाजपा का परम्परागत तेली वोट बैंक वंजारी के पक्ष में पलट सकता है,लेकिन विडम्बना यह है कि कांग्रेस के कुनबी नहीं चाहेंगे की तेली समुदाय से उम्मीदवारी फाइनल हो या वंजारी को उम्मीदवारी दे दी भी गई तो कांग्रेसी कुनबी निष्क्रिय हो जायेंगे !