किन्नर से मिले,चिल्लर को भूल गए

– पार्टी के वफादार कार्यकर्ता,जिन्होंने दिन रात एक करके भाजपा को केंद्र में बहुमत से सत्ता में लाए,उन्हें किया नज़रअंदाज

नागपुर :- लोकसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान के समाप्ति दिन दूसरे चरण के मतदान क्षेत्र(वर्धा) में प्रचार करने के बाद अन्य क्षेत्र(परभणी) में प्रचार के लिए जाने के पूर्व नागपुर शहर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का रुकना गर्मागर्म चर्चा का विषय बना हुआ हैं,इस विषय पर तथाकथित देश-दुनिया के मशहूर समाचारपत्र/समाचार चैनल की चुप्पी से जितनी मुँह उतनी तर्क लगाई जा रही हैं.

गडकरी का शहर लेकिन मिले नहीं

इस दिन गडकरी खुद के लिए मतदान में अति व्यस्त थे,कि इसी बीच मोदी उसी रात नगर के राजभवन में रुकने पहुंचे।अगवानी प्रशासन के अलावा बड़े भाजपा नेताओं ने नहीं की.मोदी की अगवानी से लेकर,उनसे मिलने और अगली सुबह तक उन्हें उनके गंतव्य स्थल तक जाने के लिए विदा करने तक भाजपा की ओर एक प्रतिनिधि नियुक्त किया गया.लेकिन जब तक वे नागपुर में रहे गडकरी उनसे मिलने नहीं पहुंचे। मोदी बतौर गुजरात के मुख्यमंत्री रहते नागपुर में कभी कभार आते थे,वे गडकरी से मिलते भी थे,तब गडकरी राष्ट्रीय अध्यक्ष हुआ करते थे,अब जब पिछले 10 साल से मोदी PM हैं,गडकरी को फूटी आँख नहीं सुहाते,और मोदी भी अपने PM काल में उनके पर कतरने का कोई मौका नहीं छोड़ते,यहाँ तक कि विभाग गडकरी का और उद्धघाटन मोदी,क्रेडिट मोदी ले रहे थे,चुनाव के 6 माह पूर्व से गडकरी बदहवास होकर मोदी-मोदी हर मंच से करने लगे ताकि इस चुनाव में उनकी टिकट न काट दे.मोदी से गडकरी अपने शहर में नहीं मिले अगवानी सह स्वागत सत्कार नहीं किया,इसका असर आगामी भविष्य में जरूर दिख जाएगा।

रानी को तरजीह

मोदी का नागपुर में पिछले 10 वर्ष PM काल में पहली मर्तबा रुकना कई सवाल खड़े कर रहा.इस दौरान भाजपा के आम से लेकर स्वयंभू खास कार्यकर्ता मोदी के दर्शन को लालायित रह गए,लेकिन जिनके हाथ में धुरा था उन्होंने लालायित इन चिल्लरों की जगह ‘रानी’ को मोदी से विशेष तौर पर मुलाकात करवाए।मुलाकात करवाने के पीछे निःसंदेह बड़ा कारण रहा होगा। मिलवाने वाले का भी स्वार्थ रहा ही होगा,क्यूंकि उन्हें भी भविष्य में विधानसभा चुनाव लड़ना हैं,लड़ने के दौरान ‘रानी’ का महत्त्व को ध्यान में रख उन्हें मोदी से मुलाकात करवाई गई होगी।इस घटनाक्रम से पक्ष के लालायित चिल्लर(जिन्हें समझा गया) समझ नहीं मिलाया गया,वे सभी के सभी नाराज़ हो गए है,ये नाराज भी हिसाब चुकता करने का मौका ढूंढ़ रहे हैं.

400 पर में RSS की अहम् भूमिका

RSS के सींचे,उन्हीं के बल पर उन्हीं के नाम पर गुजरात में सक्रिय,गुजरात के वर्षो मुख्यमंत्री रहे,फिर उन्हीं के आशीर्वाद से देश का प्रधानमंत्री बनते ही RSS को सिरे से नज़रअंदाज करना शुरू कर दिए.पिछले 10 वर्ष पूर्व तक RSS के मुख्यालय से सम्पूर्ण देश की समीक्षा,सकारात्मक कार्यक्रम, उज्जवल भविष्य सम्बन्धी कार्यक्रम का सक्षम नेतृत्व किया जाता रहा था.इस दौरान जहाँ जहाँ भी राज्यों में भाजपा की सरकारें होती थी,वहां वहां का भी बहुतेक महत्वपूर्ण निर्णय, मंत्रिमंडल में कौन कौन रहेगा आदि आदि का निर्णय RSS ही लिया करती थी.क्यूंकि RSS अपर क्लास को तरजीह देती रही,अपर क्लास देश के ब्यूरोक्रेट्स में एकाधिकार रखते है,उन्हीं के सहयोग से देश-दुनिया में RSS सक्रिय थी.लेकिन जब से मोदी केंद्र का धुरा संभाले,उन्हें यह लगने लगा कि वे सर्वश्रेष्ठ है,सर्वज्ञानी है,भारत रूपी इस दुन्या के ईजादकर्ता वे ही हैं और इसे ही आधार मान अपने वश में जितने भी हथकंडे थे उसका खुद को सर्वोपरि सिद्ध करने में इस्तेमाल करते रहे आज तक.पिछले चुनाव तो गडकरी के इंफ़्रा डेवलपमेंट के नाम पर वोट मांगे और दूसरा टर्म प्राप्त कर लिए,जनमत को लगा सरकार कोई भी हो,किसी भी योजना को देशव्यापी/जनहितार्थ साकार करने में वक़्त तो लगता ही है,इसलिए दूसरा टर्म दिया गया.

दूसरा टर्म मिलते ही दूरदृष्टि का आभाव और RSS को सिरे से नज़रअंदाज करते हुए खुलकर ख्याली पुलाव पकाने भी लगे और खिलाने भी.इस दफे जनता के साथ मोदी को PM बनाने वाले सतर्क हो गए और चुनाव पूर्व जब RSS ने जनमत अपने सोर्स से किया तो खुद हैरान रह गए कि दक्षिण भारत में NIL,उत्तर भारत में पिछले चुनाव की बनस्पत आधा अर्थात सर्वे से छन कर निकला आंकड़ा कह रहा हैं कि 210 पार भाजपा नहीं जाएगी।यह सर्वे का आंकड़ा मतदान पूर्व की हैं.संभवतः इसकी जानकारी PM मोदी को भी दी गई,जिसकी मंत्रणा के लिए RSS प्रतिनिधियों से मंत्रणा करने के लिए उस 19 अप्रैल की रात मोदी जी नागपुर में रुके हो.ताकि RSS की ही मदद से और RSS को आधार मान बतौर PM मोदी हैट्रिक बना सके और RSS का परचम देश दुनिया में लहराने में अहम् भूमिका निभा सके ?

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