राजा परीक्षित -प्रजा को अपने पुत्र के समान मानते थे – ह. भ. प. गोरक्षनाथ भिल्लारे

कोंढाली :- यहाँ के प्राचिन श्री विठ्ठल रूक्मिणी मंदिर में आयोजित अखंड हरिनाम सप्ताह के अवसरपर पर ह भ प गोरक्षनाथ भिल्लारे महाराज द्वारा श्रीमद् भागवत कथा की महती विषद करते समय राजा परीक्षित के प्रसंग के साथ श्रीमद् भागवत कथा का महत्व बताया की-

राजा परीक्षित अर्जुन के पोते और अभिमन्यु के पुत्र थे। संसार सागर से पार करने वाली नौका स्वरूप भागवत का प्रचार इन्हीं के द्वारा हुआ। पांडवों ने संसार त्याग करते समय इनका राज्याभिषेक किया था। इन्होंने नीति के अनुसार पुत्र के समान प्रजा का पालन किया।

एक बार राजा परीक्षित आखेट हेतु वन में गये। वन्य पशुओं के पीछे दौड़ने के कारण वे प्यास से व्याकुल हो गये तथा जलाशय की खोज में इधर उधर घूमते घूमते वे शमीक ऋषि के आश्रम में पहुँच गये।

ऋषि शमीक के आश्रम में उनके पुत्र श्रृंगी एवं अन्य ऋषि कुमार एक साथ रहकर अध्ययन करते थे. सभी विद्यार्थी जंगल गए हुए थे तो शमीक ऋषि आश्रम में समाधि में लीन बैठे हुए थे, उसी समय प्यास से व्याकुल होते हुए राजा परीक्षित आश्रम में पहुचे. राजा ने आश्रम में इधर-उधर काफी पानी तलाश किया और शमीक ऋषि जो समाधि में बैठे हुए थे, उनके पास गए और बड़ी विनम्रता के साथ कहने लगे कि मुझे प्यास लगी है कृपया पानी दीजिए.

राजा ने अपने वचन तीन चार बार लगातार दोहराए लेकिन ऋषि समाधि में लीन थे इसलिए वह उठे नहीं. राजा को लगा कि ऋषि समाधि में लीन होने का ढोंग कर रहे हैं इस बात पर राजा को गुस्सा आ गया और पास ही पड़े एक मरे हुए साप को उठाकर ऋषि के गले में डाल दिया आश्रम से जाते हुए राजा परीक्षित को एक ऋषि कुमार ने दूर से देख लिया.

सभी ऋषि कुमार राजा के स्वागत के लिए उसी क्षण आश्रम में पहुंचे लेकिन जब आश्रम में पहुंचे तो राजा आश्रम से जा चुके थे. साधना में लीन बैठे शमीक ऋषि के गले में सभी ने मरा हुआ सांप देखा इतना देख कर उनके पुत्र श्रृंगी को क्रोध आ गया और हाथ में जल लेकर राजा को श्राप देते हुए कहा कि मेरे पिताश्री का अपमान करने वाले राजा परीक्षित की मृत्यु आज से 7 दिन के बाद नागराज तक्षक के काटने से ही होगी.

इस बीच अन्य ऋषि कुमारों ने शमीक ऋषि के गले से मरा हुआ साप निकाला तभी शमीक की साधना टूट गई. जब ऋषि शमीक ने उनसे बात पूछी तो उन्हें सारी बातें विस्तार से बता दी गई. उनकी बात सुनकर शमीक बोले बेटा एक साधारण से अपराध के लिए राजा परीक्षित को सर्पदंश से मृत्यु का श्राप देना उचित नहीं है. यह बहुत ही बुरा है यह हमें शोभा नहीं देता, बेटा अभी तुम्हें इन बातों का ज्ञान प्राप्त नहीं हुआ है इसीलिए तुम ईश्वर की शरण जाओ और अपने अपराध की क्षमा याचना करो.

इस सब के बीच राजा परीक्षित को भी राजभवन पहुंचते पहुंचते अपनी गलती का एहसास हो गया. ऋषि शमीक का एक शिष्य राजा परीक्षित के पास गया और कहने लगा हे राजन ब्रह्म समाधि में लीन शमीक ऋषि की ओर से आपका उचित आदर सत्कार नहीं हुआ जिसके लिए उन्हें अत्यंत खेद है. लेकिन आपने जो मरे सर्प को उनके गले में डाल दिया था, जिसके कारण उनके पुत्र ने आपको आज से 7 दिन के बाद मृत्यु का श्राप दिया उनका यह श्राप असत्य नहीं होगा.

अतः आपसे निवेदन है कि आप अपने इन 7 दिनों तक सच्चे मन से ईश्वर की आराधना में लगाएं ताकि मोक्ष मार्ग का आपको रास्ता मिले. श्राप की बात सुनकर राजा परीक्षित व्यासपुत्र शुकदेव मुनि के पास गए जहां राजा परीक्षित को शुकदेवजी ने सात दिन तक लगातार भागवत-कथा सुनाई थी, तभी से पुण्यप्रद श्रीमद् भागवत कथा 1 सप्ताह होने की परंपरा प्रारंभ हो गयी.

श्रीमद् भागवत की महती की जानकारी श्रीमद् भागवत पुराण कथा वाचक ह भ प गोरक्षनाथ भिल्लारे महाराज (बीड़) द्वारा कोंढाली के प्राचिनतम् श्री विठ्ठल रूक्मिणी मंदिर (ठवलेपूरा) कोंढली में आयोजित 21से28दिसंबर तक आयोजित अखंड हरिनाम सप्ताह के अवसरपर हजारों भाविकों के उपस्थितीमें श्रीमद् भागवत कथा के महती की जानकारी दी.

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