फोंडा :- गोवा में पुर्तगालियों ने प्राचीन भारतीय संस्कृति नष्ट करने के लिए अनेक मंदिरों का विध्वंस किया । विदेशी आक्रमणकारियों ने नष्ट किए हुए इन सर्व मंदिरों का जीर्णाेद्धार कर भारतीय संस्कृति का पुनरुज्जीवन करने का महत्त्वपूर्ण निर्णय गोवा सरकार ने लिया है । उसके अनुसार प्राचीन श्री सप्तकोटेश्वर मंदिरों का जीर्णाेद्धार गोवा सरकार ने स्वयं किया तथा अन्य मंदिरों का जीर्णाेद्धार करने के लिए एक समिति स्थापित कर आगे की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी है । गोवा सरकार का यह निर्णय अनुकरणीय है । देशभर में मुगल आक्रमणकारियों ने अनेक मंदिरों को उध्वस्त किया है, यह इतिहास उपलब्ध है । इसलिए गोवा सरकार के समान ही केंद्र सरकार देशभर में विदेशी आक्रमणकारियों ने तोडे हुए सर्व हिन्दू मंदिरों का जीर्णाेद्धार करने का निर्णय ले तथा देश की सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा करे, ऐसी महत्त्वपूर्ण मांग ‘वैश्विक हिन्दू राष्ट्र महोत्सव’ में की गई है, ऐसी जानकारी ‘महाराष्ट्र मंदिर महासंघ’ के समन्वयक सुनील घनवट ने आज पत्रकार परिषद में दी । वे ‘वैश्विक हिन्दू राष्ट्र महोत्सव’ के निमित्त आयोजित पत्रकार परिषद में बोल रहे थे ।
इस समय ‘काशी स्थित ज्ञानवापी मुक्ति के लिए न्यायालयीन संघर्ष करनेवाले’ सर्वाेच्च न्यायालय के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन, ‘गोमंतक मंदिर महासंघ’ के जयेश थळी, ‘ज्योतिर्लिंग श्रीक्षेत्र भीमाशंकर देवस्थान’ के अध्यक्ष अधिवक्ता सुरेश कौदरे एवं विदर्भ की ‘देवस्थान सेवा समिति’ के सचिव अनुप जायस्वाल उपस्थित थे ।
काशी के पश्चात मथुरा एवं किष्किंधा मुक्ति के लिए संघर्ष करेंगे ! – अधिवक्ता विष्णु जैन
इस अधिवेशन के कारण काशी स्थित ज्ञानवापी की मुक्ति के लिए संघर्ष निश्चित रूप से प्रारंभ हो चुका है । अब काशी के पश्चात मथुरा एवं किष्किंधा की मुक्ति के लिए संघर्ष प्रारंभ करने की जानकारी ‘काशी स्थित ज्ञानवापी मुक्ति के लिए न्यायालयीन संघर्ष करनेवाले’ सर्वाेच्च न्यायालय के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने दी । उन्होंने आगे कहा काशी के बाद मथुरा मामले में भी ‘वक्फ एक्ट’ और ‘प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट’ लागू नहीं होता, है ऐसा निर्णय उच्च न्यायालय ने दिया है । न्यायालय ने याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया है । साथ ही न्यायालय ने पुरातत्व विभाग को दोनों जगहों का सर्वे करने का भी आदेश दिया है । भगवान हनुमानजी की जन्मस्थली किष्किंधा के संबंध में कर्नाटक राज्य के कानून को उच्च न्यायालय द्वारा असंवैधानिक घोषित किया गया है। देश भर में विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा मंदिर को लेकर बनाए गए सभी कानून संविधान के अनुच्छेद 19, 21, 25, 26 एवं 27 का उल्लंघन करते हैं । इसलिए केंद्र सरकार को एक कानून बनाकर इन सभी कानूनों को निरस्त करना चाहिए तथा सभी मंदिरो को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करना चाहिए, ऐसा भी अधिवक्ता जैन ने कहा ।
इस अवसर पर सुनील घनवट ने कहा कि, हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन ने सदैव ही ‘मंदिर मुक्ति एवं मंदिर रक्षा’ की भूमिका ली है । इस अधिवेशन से अनेक मंदिरों के अभियान प्रारंभ हुए हैं । उदा. मध्य प्रदेश का भोजशाला मुक्ति आंदोलन, तिरुपती बालाजी स्थित अवैधानिक इस्लामिक अतिक्रमण हटाना; पंढरपुर, शिरडी, कोल्हापुर, तुळजापुर स्थित सरकार अधिग्रहित मंदिरों के भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष आदि प्रमुख अभियान हैं । मंदिर संस्कृति की रक्षा होने के लिए उसका जतन होना चाहिए और वह बढनी चाहिए । इसके लिए गोवा में ‘गोमंतक मंदिर महासंघ’ काम कर रहा है तथा महाराष्ट्र में ‘महाराष्ट्र मंदिर महासंघ’ कार्य कर रहा है । महाराष्ट्र में हमने 131 मंदिरों में वस्त्रसंहिता लागू की है । महाराष्ट्र के समान शीघ्र ही हम कर्नाटक, दिल्ली आदि राज्यों के मंदिरों के न्यासियों की बैठक आयोजित करनेवाले हैं ।
इस अवसर पर ‘गोमंतक मंदिर महासंघ’ के जयेश थळी ने कहा, पुर्तगालियों द्वारा उध्वस्त मंदिरों का जीर्णाेद्धार गोवा सरकार समयमर्यादा निश्चित कर समय पर पूर्ण करे । इस संबंध में सरकार ने जो समिति स्थापित की है, उस समिति को मंदिर महासंघ का पूर्ण सहयोग रहेगा । मंदिरों की जो समस्याएं हैं, उन्हें सुलझाने के लिए ‘मुंबई सार्वजनिक विश्वस्त संस्था अधिनियम’ में परिवर्तन करने के लिए ‘देवालय सेवा समिति’ ने कार्य प्रारंभ कर दिया है, ऐसी जानकारी समिति के सचिव अनुप जायसवाल ने दी ।
इस समय ‘ज्योतिर्लिंग श्रीक्षेत्र भीमाशंकर देवस्थान’ के अध्यक्ष अधिवक्ता सुरेश कौदरे ने कहा कि, आज मस्जिदों के इमाम तथा मुल्ला-मौलवियों को वेतन तथा मदरसों को अनेक राज्यों में सरकार अनुदान दे रही है । तब मंदिर के पुजारियों को वेतन क्यों नहीं दिया जाता ? आज पुजारियों की अनेक समस्याएं हैं । वंशपरंपरागत पुजारी एवं वहिवाटदार के अधिकार एवं कर्तव्य अबाधित रहने के लिए सरकार मुंबई सार्वजनिक विश्वस्त संस्था अधिनियम में सुधार करे । मंदिर न्यासी एवं पुजारियों के मध्य का विवाद सुलझाने के लिए ‘महाराष्ट्र मंदिर महासंघ’ के माध्यम से प्रयत्न करनेवाले हैं, ऐसा अधिवक्ता कौदरे ने कहा है ।