– कुछ माह पूर्व सार्वजानिक मंच से हुंकार भरे थे कि ‘चाय-पानी पर खर्च नहीं करूँगा,भले वोट मत दो’,अब देखना यह है कि ‘कथनी व करनी’ में समानता हैं या नहीं
नागपुर :- भाजपाइयों सह विपक्षी चहेतों द्वारा विकासपुरुष कहे जाने वाले एवं लोकसभा चुनाव में नागपुर शहर से तीसरी दफा बतौर भाजपा उम्मीदवार नितिन गडकरी का एक सार्वजानिक मंच से पिछले दिनों एक सम्बोधन काफी गर्मागर्म चर्चे में आ गया था कि वे इस बार चुनाव में ‘ बिना चाय चाय -पानी का खर्चा’ दिए लड़ेंगे फिर पक्ष के कार्यकर्ता हो या आम जनता उन्हें वोट देना हो तो दे,वर्ना मत दे,लेकिन वे ‘वोट के लिए नोट’ नहीं देंगे।इस सम्बोधन के बाद पक्ष के नीचे से लेकर ऊपर तक के स्थानीय कार्यकर्ता सकते में आ गए है कि पिछले 2 लोस चुनावों मनमाफिक ‘चाय-पानी का खर्चा’ मिला ,इस बार किस मुख से डिमांड करेंगे और न डिमांड किये तो अपने अपने चुनावी क्षेत्रों में मतदाताओं को कैसे संभालेंगे ?
याद रहे कि नागपुर शहर में लोकसभा मतदान में कुनबी व तेली मतदाता प्रभावी रहे,उसके बाद दलित व अल्पसंख्यक मतदाता।अब तक जितने भी लोस चुनाव हुए कुछेक उम्मीदवार ही सामाजिक समीकरण से ऊपर उठकर मत लिए और विजयी हुए.शेष को कुनबी व तेली समुदाय को पक्ष में लेकर ही चुनावी जंग में भाग लिए.कुनबी कांग्रेस तो तेली मतदाता भाजपा के पक्ष में देखा गया.
उक्त भाजपा उम्मीदवार पिछले 2 लोकसभा चुनाव लड़े व विजयी हुए.जबकि जातिगत इनका समुदाय अल्प हैं.
पिछले दोनों चुनावों में इनके खासमखास समर्थकों,चुनावी मोर्चा संभालने वालों में ‘चाय – पानी का खर्चा’ देने में जरा भी ढिलाई नहीं की,अमूमन सभी कुनबे को संतुष्ट किया।नतीजा पहले चुनाव में आसानी से बड़ी मार्जिन से जीते,दूसरे चुनाव में खासमखास ,भरोसेमंदों ने ‘चाय पानी’ का खर्चा उठाया लेकिन सम्मान जनक तरीके से लाभार्थियों तक नहीं पहुँचाया नतीजा जीते जरूर लेकिन जीत की मार्जिन ‘घसर’ गई.
इस दफे पहले ही घोषणा कर दिए कि किसी को ‘चाय-पानी’ का खर्चा नहीं देंगे।इस दफे मामला और गड़बड़ाने की उम्मीद हैं ?
खर्च सीमा से कई गुणा ज्यादा खर्च करते रहे हैं !
चुनावों के दौरान भाजपा उम्मीदवार अपने खासमखास,चुनावी मोर्चा सँभालने वालों के मार्फ़त ‘चाय-पानी’ का खर्चा नगदी में वितरित करते रहे हैं.इसके सबसे बड़े लाभार्थी मीडिया हाउसेस,मिडिया की संघठन के प्रमुख पदाधिकारी,मिडिया के प्रमुखों का कुनबा,राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय मीडिया प्रतिनिधियों सह मिडिया का अंतिम व्यक्ति तक कम से कम 5 आंकड़ों का लाभार्थी रहा हैं.इनका टोटल किया जाये तो चुनाव आयोग द्वारा तय खर्च सीमा पार हो जाता हैं.शेष ‘चाय पानी ‘ का खर्च की गणना नहीं।इसके अलावा सामाजिक संघठन,विपक्षी पार्टी, अन्य पार्टी के धुरंदरों सह इनके द्वारा ही खड़ा किये गए वोट कटुआ उम्मीदवारों का खर्चा अलग,इसके अलावा अपनी ही पार्टी के मजबूत कार्यकर्ताओ,पदाधिकारियों का खर्च कम नहीं किया जाता।बिना ‘चाय पानी’ के खर्च दिए एक भी मीडिया फ्री में उम्मीदवारों का गुणगान नहीं करता है,यह कड़वा सत्य हैं।
पक्ष अंतर्गत गली से लेकर दिल्ली तक विरोधी सक्रिय
गडकरी को घर बैठाने के लिए पक्ष अंतर्गत दिल्ली में प्रतिस्पर्धी नेताओं के इशारे पर गल्ली तक के कार्यकर्ताओं का इस्तेमाल पिछले 2 चुनावों में किया गया ताकि दिल्ली स्तर का स्पर्धा हमेशा के लिए ख़त्म हो जाए.लेकिन गडकरी नेता से ज्यादा व्यवसायी है,इन्हें मतदाता,कार्यकर्ता का नब्ज भलीभांति मालूम है,इसलिए मतदान के अंतिम सेकेण्ड तक ‘चाय पानी’ में कमी नहीं करते ,वह भी ‘सीटमेटिक’.
पिछले दोनों लोकसभा चुनावों में इसलिए बीच बीच में लथड़ जाते रहे रहे क्यूंकि इनके सलाहकार मंडली ‘टेबल स्टोरी’ ज्यादा सुनाती और उसका दुष्परिणाम गडकरी को भुगतना पड़ता हैं.
उल्लेखनीय यह है कि स्वाभिमानी कार्यकर्ता या समर्थक फिर व्यक्तिगत हो या पक्ष निहाय इनके दर नहीं भटकता,इसलिए उनकी क्रेडिट आसपास के स्थाई सलाहकार उठा लेते है !