क्या हकीकत में ED,CBI,CVC पारदर्शी एजेंसी हैं !

– अगर हो तो पिछले लोकसभा चुनाव में नागपुर जिले के उम्मीदवारों द्वारा किये गए नगद खर्च का लेखाजोखा संकलन,जाँच कर नियमानुसार कार्रवाई करें 

नागपूर :- याद रहे कि प्रत्येक लोकसभा या अन्य सार्वजानिक चुनावों में उम्मीदवारों के चुनावी खर्च सीमा केंद्रीय चुनाव आयोग तय करती हैं लेकिन विडम्बना यह है कि कोई भी उम्मीदवार इसका पालन नहीं करता और न ही चुनाव आयोग कोई कार्रवाई करती हैं. अर्थात केंद्र सरकार की उक्त एजेंसी के कथनी और करनी में बड़ा भारी फर्क हैं ?

अगर नहीं तो केंद्र सरकार की जाँच एजेंसी ED,CBI और CVC उक्त मामले में सिर्फ नागपुर जिले के दोनों लोकसभा क्षेत्रों से खड़े उम्मीदवारों के आय-व्यय की जाँच कर केंद्रीय चुनाव आयोग को कार्रवाई हेतु पहल करें।

दरअसल केंद्र सरकार ने ED,CBI,CVC को भले ही स्वतंत्र जाँच एजेंसी कहती आ रही,लेकिन तीनों एजेंसी केंद्रीय मंत्री के अधीनस्त सक्रिय है.वहीं वहीं कार्रवाई कर रही या करवाई जा रही जहाँ जहाँ से सत्ताधारी केंद्रीय नेतृत्व को खतरा महसूस होता हैं.

या फिर विपक्ष के दमदार,दमखम रखने वाले सफेदपोशों जिनके बल पर विपक्ष किसी भी स्तर पर हावी न हो,ऐसे सफेदपोश को ED,CBI,CVC कार्यालय बुलाकर अगले कुछ वर्ष के लिए ठंडा करने में भारी सफलता हासिल कर चुकी हैं.

राजनैतिक ‘हमाम में सभी नंगे हैं’,10 वर्ष पूर्व की राजनीति का परिदृश्य काफी बदल गया हैं,सत्ता में चुनिंदा ही रहे इसलिए बदले की राजनीति में ED,CBI,CVC अहम् भूमिका निभा रहे हैं.

केंद्र सरकार के दिग्गज नेता,नेतृत्वकर्ता उक्त तथ्यों को सिरे से नाकार कर पारदर्शी जाँच एजेंसी होने का दावा कर रही तो वे पिछले लोकसभा चुनाव में सिर्फ नागपुर शहर के सभी उम्मीदवारों के जायज नाजायज खर्च का लेखा जोखा खंगाले और केंद्रीय चुनाव आयोग को जाँच के लिए सिफारिश करें तो माने कि उक्त तीनों एजेंसी सच में निष्पक्ष,निडर व पारदर्शी हैं ?

उक्त तीनों एजेंसी को नागपुर जैसे लोकसभा क्षेत्र के पिछले लोकसभा चुनाव में खड़े सभी उम्मीदवारों के आर्थिक व्यवहारों को खंगालने के लिए सम्बंधित केंद्रीय मंत्री को आदेश देना होगा,जो फ़िलहाल सक्षम नहीं हैं.

अगर दिए तो ED और CBI को जो जानकारी मिलेगी,उसके बाद अगर केंद्रीय चुनाव आयोग ने कार्रवाई किया तो केंद्र के नेतृत्वकर्ताओं का रस्ते का कांटा हमेशा के लिए निकल जाएगा,बड़ी दावेदारी ख़त्म हो जाएगी,स्वयं के पक्ष के प्रति स्पर्धी की पब्लिसिटी का सहारा न लेना पड़ेगा,खुद के कामों का गुणगान कर खुद की पीठ थपथपाने में आसानी होगी।

विश्वसनीय सूत्रों की माने तो सत्तापक्ष से जुड़े पिछले लोकसभा में सत्तापक्ष के उम्मीदवार ने चुनाव आयोग द्वारा तय सीमा की खर्च का उल्लंघन किया।तय सीमा का खर्च मिडिया हाउसों,उनके प्रधानों,शहर प्रमुखों,विषय प्रमुखों,मिडिया से जुडी संगठनों पर ही उढेल दी,इन सभी को इतना लबालब कर दिया कि कोई पिछले 5 साल इनसे खिलाफत नहीं कर पाया।

ज्वलंत सवाल यह भी है कि जब तय सीमा का खर्च मीडिया और उनसे जुड़ो पर किया गया तो चुनावी क्षेत्र में सक्रिय राजनैतिक,सामाजिक,विभिन्न समाजों से जुड़े संगठन,मनपा से लेकर तथाकथित राष्ट्रीय नेते,विपक्ष के मजबूत जनाधार वाले नेताओं,अन्य संगठनों ने सत्तापक्ष के लोकसभा उम्मीदवार के लिए क्या निशुल्क काम किया ….. ?

इसका कड़वा जवाब हैं न,ना,नहीं…..

केंद्रीय जाँच एजेंसी ‘ऐसीतैसी’ बैंक (नागपुर शाखा) को भी खंगाले,जहां का व्यवहार मनीष संभालता है,और जहाँ से गाड़ियां फाइनांस हो रही पिछले 10 वर्षो में,वैसे प्रकल्प जो पिछले दिनों सवालिया निशान खड़े किये,CAG की रिपोर्ट और इनसे जुड़े उधोगपतियों को क्या केंद्रीय नेतृत्व ED,CBI, CVC सक्रिय कर ‘दूध का दूध,पानी का पानी’ करेगी या फिर विपक्ष का खुला वॉर/शब्द कि जो पक्ष का है या पक्ष से जुड़ गया वो ‘दूध का धुला’ शेष आरोपी,भ्रष्टाचारी को सही साबित करेगी।

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