प्रशासन से त्रस्त होकर न्याय यात्रा पर निकले 81 साल के बुजुर्ग

– मृत्युपर्यंत जारी रहेगी मेरी न्याय यात्रा- बांबोड़कर

नागपुर :- भारतीय संस्कृति में बुजुर्गों को अत्यंत आदर देने की परम्परा रही है। समाज में उनके प्रति आदरभाव को देखते हुए महाराष्ट्र सरकार ने भी अमृत ज्येष्ठ नागरिक शुरू की है, जिसमें 75 वर्ष से अधिक आयु के नागरिकों को सरकारी बसों में यात्रा की निःशुल्क सुविधा है। यहां तक कि सरकार ने बुजुर्ग नागरिकों के लिए तीर्थयात्रा योजना भी शुरू की है, जिसमें उन्हें एसटी बसों में विविध तीर्थक्षेत्रों की निःशुल्क यात्रा करवाई जाती है। लेकिन उसी सरकार का प्रशासन इतना निष्ठूर हो गया है कि पिछले 45 साल से अपने न्यायिक अधिकार के लिए संघर्ष कर रहे नागरिकों के साथ न्याय नहीं कर पाया है। इसी कारण 81 वर्ष की आयु के बुजुर्ग विश्वनाथ बांबोड़कर ने अपने घर पर ही आमरण अनशन शुरू करते हुए अपनी संघर्ष न्याय यात्रा का आरंभ कर दिया है। लेकिन सरकार का कोई प्रतिनिधि तक उनके हालचाल पूछने नहीं पहुँचा है।

इस संघर्ष न्याय यात्रा शुरू करने का कारण उत्तर नागपुर के मौजा बिनाकी के नगर भूमापन क्रमांक 750 व 753 में 45 साल से मकान बनाकर निवास कर रहे वे 281 परिवार हैं, जो रजिस्ट्री के पात्र होते हुए भी उनकी रजिस्ट्री नगर भूमापन अधिकारी ने कराने से साफ इनकार कर दिया। 81 वर्षीय विश्वनाथ बांबोडकर बताते हैं कि द्वारकाप्रसाद बंसीधर चौधरी ने एक खेत खरीदा था और उसमें लेआउट डालकर प्लान स्वीकृति के लिए एनआईटी को प्रस्तुत किया था। जब एनआईटी ने डिमांड नोट निकालकर राशि जमा करने को कहा तो चौधरी ने प्रोसेस पूरी नहीं की। बाद में चौधरी ने 1979 में लेआउट फॉर वीकर सेक्शन ऑफ सोसाइटी नामक सोसाइटी बनाकर लोगों को पजेशन देकर सीलिंग एक्ट का नियम बताते हुए बिना रजिस्ट्री 281 प्लाट बेच डाले और इसका स्टाम्प पेपर पर इसार पत्र भी दे दिया। जिन्हें प्लाट बेचा था, उसकी सूची रेवेन्यू विभाग को सौंप दी थी। इस लिस्ट के आधार पर रेवेन्यू विभाग ने जमीन को गैरकृषि में परिवर्तित किया और वर्ष 1986-87 में 7 साल के एरियर्स और जुर्मान सहित राशि प्लाटधारकों से वसूल की। महानगर पालिका ने भी इसी आधार पर प्लाटधारकों से सम्पत्ति कर वसूलना आरंभ किया।

बांबोडकर बताते हैं कि आगे चलकर वर्ष 2007-08 में महाराष्ट्र सरकार ने सीलिंग कानून रद्द कर दिया। इसके चलते अब रजिस्ट्री के लिए विभागीय आयुक्त के परमिशन की जरूरत नहीं रही। अतः लोग प्लाट विक्रेता द्वारकाप्रसाद चौधरी के पास पहुँचे और रजिस्ट्री कराने का निवेदन किया। इस पर चौधरी ने अपनी वृद्धावस्था का हवाला देते हुए कहा कि मैं चल फिर नहीं सकता अतः मैंने अपने बेटे राजेश को पावर ऑफ अटार्नी दे दी है। उससे बात करें। जब लोगों ने बेटे से बात की तो उसने शर्त लगा दी कि तुम्हें जमीन की वर्तमान कीमत के हिसाब रेट देना होगा, तभी रजिस्ट्री करूंगा। यह सुनकर लोग अवाक् रह गए।

इसके एक वर्ष बाद द्वारकाप्रसाद 2009 में चल बसे और उनकी मृत्यु के साथ ही बेटे को दिए गए पॉवर ऑफ अटार्नी का पावर समाप्त हो गया।

अब प्लाट पर मकान बनाने वालों ने बांबोडकर के नेतृत्व में सरकार को बकाया मुद्रांक देने का निर्णय लिया और वर्ष 2011 में सह. जिला निबंधक व मुद्रांक अधिकारी के कार्यालय में निवेदन कर विलम्ब शुल्क सहित मुद्रांक राशि जमा करवाई और अपने इसार पत्र को सह निबंधक से इम्पाउंड करा लिया।

इसके बाद जब लोग म्युटेशन कराने पहुँचे तो नगर भूअभिलेख (भूमापन) अधिकारी ने उनका आवेदन यह कहते हुए निरस्त किया कि मृतक (चौधरी) के वारिस को ले आओ।

अंततः बांबोडकर ने नगर भूमापन अधिकारी के खिलाफ रेवेन्यू कोर्ट (न्यायाधिकरण) में अपील की। अपील पर न्यायालय ने 15 नवंबर 2011 को आवेदनकर्ताओं के तर्क को माना और फेरफार करने का आदेश दिया। इसके बावजूद नगर भूमापन अधिकारी टालमटौल करते रहे। बांबोडकर बताते हैं कि इसकी शिकायत जिलाधिकारी के मार्फत राजस्व मंत्रालय को भेजी गई। जिलाधिकारी ने भूमापन अधिकारी को पत्र भेजकर इसका अहवाल मांगा लेकिन दुर्भाग्य से उक्त अधिकारी सतीश हनुमंत पवार का तबादला हो चुका था। अब नये अधिकारी की समझ में नहीं आ रहा है कि वे अहवाल कैसे दें। इस प्रकार से बुजुर्गों का यह संघर्ष प्रशासन की अदूरदर्शिता के चलते यहीं पर अटक गया और वे असहाय महसूस करने लगे। अंततः बांबोडकर ने निर्णय लिया कि ऐसे अंधेर नगर चौपट राजा वाले प्रशासन के समक्ष गिड़गिड़ाने की बजाए आमरण उपोषण करते हुए दम तोड़ देना ही बेहतर है। इसी कारण पिछले पाँच दिनों से उन्होंने अन्न-जल त्यागकर अनशन जारी रखा है। देखना यह है कि बुजुर्गों को मुफ्त में तीर्थयात्रा भ्रमण कराने वाली यह सरकार बांबोडकर जैसे 81 वर्ष के बुजुर्ग की न्याय यात्रा को कितना महत्व देती है।

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