नागपुर :- असम की राजधानी गुवाहाटी जिले के कामाख्या शक्तिपीठ के दर्शन पूजन अर्चन एवं गंगासागर कोलकाता स्नान के लिए भक्तों का जत्था बुधवार 11 जनवरी को कामाख्या एक्सप्रेस से रवाना होगा। आल इंडिया शोसल आर्गेनाइजेशन के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ समाज सेवी पत्रकार टेकचंद्र शास्त्री के अनुसार देश के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक कामाख्या देवी मंदिर हैं. इस जागरुक और सिद्ध पीठ मंदिर देवस्थान में देश के कोने-कोने से श्रद्धालु आते हैं और मां के दर्शन करते हैं.
असम यात्रा में हम आपको आज देश के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक कामाख्या देवी मंदिर के दर्शनार्थ करीबन 65 भक्तगण पंहुच रहे हैं. इस मंदिर में देश के कोने-कोने से श्रद्धालु आते हैं और मां के दर्शन करते हैं. इससे पहले असम यात्रा में हमने आपको जोरहाट, गुवाहाटी, शिवसागर, डिब्रूगढ़, मानस राष्ट्रीय उद्यान, काजीरंगा नेशनल पार्क, माजुली द्वीप और धार्मिक समरसता के शहर हाजो की यात्रा कराई जाती है।.शक्तिपीठ कामख्या माई के मंदिर के बारे मे पौराणिक मान्यता है कि यहां श्रद्धाभाव से मां कामाख्या की पूजा अर्चना और स्मरण चिंतन करने से बांझ महिला व पुरुष के घर पर किलकारियां गूंजने लगती है।
शक्तिपीठ कामाख्या देवी मंदिर असम के नीलाचल पहाड़ी पर स्थित है. यह प्रसिद्ध मंदिर गुवाहाटी से करीब आठ किलोमीटर दूरी पर है. पौराणिक और धार्मिक मान्यता के अनुसार इस स्थान पर मां सती के योनि का भाग गिरा थी जिस वजह से यह प्रमुख शक्तिपीठ और पावन स्थल है. इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां दूर दूर से तांत्रिक सिद्धियों के लिए साधु- संत-महात्मा आते रहते हैं. मंत्र-तंत्र सिद्धि साधना के लिए यह जगह सबसे पावन और उपयुक्त मानी गई है.यहां सदैव सिद्ध साधु-संतों महात्माओं और तपस्वियों के समूह देखा जा सकता है। यह प्राचीनकाल से मुनि महात्माओं की तपोभूमि है।
इस शक्तिपीठ के बारे में पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार दक्ष प्रजापति के अपमान से क्रोधित होकर मां सती ने अपने शरीर को अग्नि में समर्पित कर दिया था. जिससे भगवान भोलेनाथ इतने क्रोधित हुए कि मां सती के शरीर को कंधे पर लेकर तांडव करने लगे. उनके ऐसा करने से पूरा ब्रह्मांड थरथरा उठा और सृष्टि में प्रलय की स्थित आ गई. तब जाकर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से मां सती के शरीर को कई भागों में विभक्त कर दिया. मां सती के शरीर का जो भाग जहां-जहां गिरा वहां शक्तिपीठ स्थापित हुआ. कामाख्या में मां सती का योनी भाग गिरा था. जिस वजह से यह शक्तिपीठ बेहद प्रसिद्ध है और इसकी काफी मान्यता है.
कामाख्या मंदिर में मां की कोई प्रतिमा नहीं है. यहां श्रद्धालु मंदिर में बने कुंड में पूजा करते हैं. जिसे फूलों से ढक कर रखा जाता है. यह भी मान्यता है कि मां सती जब रजस्वला होती हैं तब समीपस्थ ब्रह्मपुत्र नदी का पानी तीन दिन के लिए लाल हो जाता है. इस दौरान मंदिर के कपाट भी बंद कर दिये जाते है
पश्चात वापसी मे यह भक्तों का जत्था कामाख्या स्टेशन से कांचन गंगा एक्सप्रेस से सियालदह जंक्शन कोलकाता पंहुचेगा। जहां अंतिम रेलवे स्टेशन कागदीप से पीनी के जहाजों से 24 परगना दीप समीप स्थित कपिल मुनि आश्रम तट गंगासागर पर विधिवत गंगा भागीरथी संगम मे नांगा साधु संत समूह के साथ स्नान मे हिस्सा लिया जाएगा। तत्पश्चात 15 जनवरी को हावड़ा रेलवे जंक्शन से भक्तों का जत्था गीतांजली एक्सप्रेस से वापस नागपुर के लिए रवाना होगा।