सत्य में देखा जाए तो सोमरस कोई शराब नहीं है अपितु सोमलता के पौधा का रस है
वैदिक काल में ऋषियों-मुनियों का चमत्कारी आविष्कार- सोमरस एक ऐसा पदार्थ है, जो संजीवनी की तरह कार्य करता है। यह जहां व्यक्ति की जवानी बरकरार रखता है वहीं यह पूर्ण सात्विक, अत्यंत बलवर्धक, आयुवर्धक व भोजन-विष के प्रभाव को नष्ट करने वाली औषधि है।
।।स्वादुष्किलायं मधुमां उतायम्, तीव्र: किलायं रसवां उतायम।
उतोन्वस्य पपिवांसमिन्द्रम, न कश्चन सहत आहवेषु।।- ऋग्वेद (6-47-1)
अर्थात : सोम बड़ी स्वादिष्ट है, मधुर है, रसीली है। इसका पान करने वाला बलशाली हो जाता है। वह अपराजेय बन जाता है।
शास्त्रों में सोमरस लौकिक अर्थ में एक बलवर्धक पेय माना गया है, परंतु इसका एक पारलौकिक अर्थ भी देखने को मिलता है। साधना की ऊंची अवस्था में व्यक्ति के भीतर एक प्रकार का रस उत्पन्न होता है जिसको केवल ज्ञानीजन ही जान सकते हैं।
सोमं मन्यते पपिवान् यत् संविषन्त्योषधिम्।
सोमं यं ब्रह्माणो विदुर्न तस्याश्नाति कश्चन।। (ऋग्वेद-10-85-3)
अर्थात : बहुत से लोग मानते हैं कि मात्र औषधि रूप में जो लेते हैं, वही सोम है ऐसा नहीं है। एक सोमरस हमारे भीतर भी है, जो अमृतस्वरूप परम तत्व है जिसको खाया-पिया नहीं जाता केवल ज्ञानियों द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है।
कण्व ऋषियों ने मानवों पर सोम का प्रभाव इस प्रकार बतलाया है- ‘यह शरीर की रक्षा करता है, दुर्घटना से बचाता है, रोग दूर करता है, विपत्तियों को भगाता है, आनंद और आराम देता है, आयु बढ़ाता है और संपत्ति का संवर्द्धन करता है। इसके अलावा यह विद्वेषों से बचाता है, शत्रुओं के क्रोध और द्वेष से रक्षा करता है, उल्लासपूर्ण विचार उत्पन्न करता है, पाप करने वाले को समृद्धि का अनुभव कराता है, देवताओं के क्रोध को शांत करता है और अमर बनाता है’।
सोम विप्रत्व और ऋषित्व का सहायक है। सोम अद्भुत स्फूर्तिदायक, ओजवर्द्धक तथा घावों को पलक झपकते ही भरने की क्षमता वाला है, साथ ही अनिर्वचनीय आनंद की अनुभूति कराने वाला है।
अल्प ज्ञानियों की धाराएं गलत है कि पिछले कई अरसों से अज्ञानी जनों तथा अल्प ज्ञानीजनों ने कपोल कल्पित अवधारणाएं पाल रखी है कि सोमरस शराब को कहते हैैं ? परंतु सोमरस शराब नहीं अपितु सोमलता की बेला के रस को सोमरस कहते है? परिणामत: यह दुर्लभ मानी जाती है। इसलिए कि सोमरस ऋषियों-मुनियों और देवी देवताओं का अमृत मत पेय पदार्थ है। जिसका पानी करने से मनुष्य सौभाग्यशाली बलशाली और परम् ज्ञानी हो जाता है। वशर्तें सोमलता के रसपान के जिज्ञासु मनुष्य को पूर्णतः प्राकृतिक नियमों का कठोरता पालन करना पडता है तब कहीं एसी दुर्लभ हिमालयीन सोमलता के रस को प्राप्त किया जा सकता है। यह सोमलता की बेलाओं के पौधे ब्रम्हगिरी, हिमालय,सुमेरु पर्वत,कैलाश मानसरोवर,अमरकंटक, पचमढ़ी की हरीत वादियों तथा किस्किंधा पर्वतों में पाया जाता हैं|
सहर्ष सुचनार्थ नोट्स:-
कृपया उक्त दुर्लभ हिमालयीन सोमरस पान के लालच में न पड़ें,क्योंकि प्राकृतिक नियमों का कठोरता से पालन करना सभी के लिए संभव नहीं है। तदहेतु किसी वनस्पति विज्ञान और आयुर्वेदिक चिकित्सा विशेषज्ञों की सलाह जरुरी है।
प्रस्तुति:-टेकचंद्र शास्त्री, संपर्क:-9822550220,व्हाट्सएप:9230558008,