– प्रेरणा प्रवाह समारोह में पिता के महत्व पर डाला प्रकाश
नागपुर :- सिर्फ भारत एक ऐसा देश है जहाँ पर परिवार संस्था अब भी विद्यमान है। आज हमने आधुनिकीकरण के नाम पर हो रहे बदलावों को नहीं रोका तो आने वाले 15 सालों में बहुत बुरे परिणाम सामने आएंगे। माता-पिता नाम की संस्था में बच्चों को लालन-पालन के साथ ही संस्कार मिलते हैं जिससे मनुष्य का जीवन सुखी और सुरक्षित बना रहता है. आज कैरियर की भागदौड़ में हमारे युवा अपने पारिवारिक मूल्यों को खो रहे हैं. हमारे बच्चों में समय पर विवाह, सन्तानोत्पत्ति को लेकर जो रवैया देखा जा रहा है, वह भविष्य के भारतीय समाज के लिए घातक है. इसके कारण हमारी आगामी पीढ़ी को गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे. उक्त आशय के विचार जीवन प्रबंधन गुरु पंडित विजयशंकर मेहता ने “तुम पालनहार हमारे” विषय पर स्व. मदनलाल सोनी के जन्म शताब्दी वर्ष पर ‘प्रेरणा प्रवाह’ समारोह के दौरान माहेश्वरी भवन, उमिया इंडस्ट्रियल एरिया, भंडारा रोड में कहे।
उन्होंने आगे कहा कि परिवार व्यवस्था के संचालन और सामाजिक संस्कारों को देने में पिता की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हैं. एक संतान को अपने पिता का महत्व उनके चले जाने के बाद महसूस होता है. जिस समय मनुष्य एक भ्रूण के रूप में माँ के गर्भ में रहता है, उन नौ महीनों में पिता उसके विकास में साथ-साथ चलता है. श्रीमद् भागवत में महर्षि वेदव्यास ने शिशु के गर्भ में विकास का बहुत वैज्ञानिक वर्णन किया है. कई बार एक पिता अपनी संतान को बहुत कठोर व अप्रिय फैसलों के द्वारा संस्कारों में ढालता है.
भगवान श्रीराम में जो सत्यपालन, नैतिकता के संस्कार आए, वे राजा दशरथ से ही आए थे. राजा दशरथ ने श्रीराम को औपचारिक शिक्षा महर्षि वशिष्ठ से दिलवाई परंतु संसार के संघर्ष को देखने के लिए महर्षि विश्वामित्र के साथ भेजा था. हनुमानजी में जो परोपकार के संस्कार आए वे उनके पिता शिवजी से आए. भगवान परशुराम को संस्कार पिता जमदग्नि से मिले. भगवान श्रीकृष्ण जब गोकुल को छोड़कर एक राजपुरुष के रूप में आगे की ओर निकले तब बूढ़े पिता नंदबाबा उन्हें आखिरी सीख देने मथुरा तक पहुँचे थे. पिता एक ऐसी पुस्तक है, जिसे पुत्र या पुत्री धीरे-धीरे पढ़ पाता है. पिता को पढ़ने का नियम ही है कि इनके जीवन का रोज एक पन्ना पढ़ना होता है।हमें इस माता-पिता रूपी व्यवस्था को बचाना है, ताकि भारतीय समाज का भविष्य सुरक्षित रहे. माँ लालन करती है पर पिता पालन करते हैं। दोनों संयुक्त होकर एक पारिवारिक संस्था का निर्माण करते हैं। इस माता- पिता नाम की संस्था को बच्चों में संस्कार भरने जरूरी है।
सफ़लतार्थ श्याम सोनी, श्रीगोपाल सोनी, शरद सोनी, उषा सोनी, शीला सोनी, रूपाली सोनी, आयुषी सोनी, विहान सोनी सहित अन्य ने प्रयास किया।